किसान आंदोलन, महंगाई और कोरोनावायरस जैसे सुर्खियाँ बटोरती खबरों के बीच एक अजीब सी कौंध दिखाई दे रही है और वह है विश्व के सबसे बड़े प्रजातांत्रिक देश के सत्ता प्रमुख का पूर्ण सनातनी रूप में होना और दिखनाभी।
नेहरू अपनी सार्वजनिक लोकप्रियता को बनाए रखने के लिए हिंदू मुस्लिम भाई भाई और हिंदी चीनी भाई भाई के प्रणेता रहे और सनातन के पीठ पर अघोषित धर्मनिरपेक्षता का बूट रगड़ते रहे और लालबहादुर को अवसर हीं नहीं मिला जबकि इंदिरा गांधी ने जब से अपना पल्लू सिर से उतारा उनके गले का रुद्राक्ष सनातन का फैशन बनकर उनके कंधों पर दिखता रहा। वैसे वे भी समाजवादी सेकुलरिज्म का समोसा हीं बनाती रहीं।
इसके बाद के सारे प्रधानमंत्री यानी अटल बिहारी बाजपेयी तक इस ऊहापोह में दिखे कि हिंदू दिखूं कि मुस्लिम दिखूं परंतु नरेंद्र मोदी ने हिंदू दिखने का निर्णय लिया और साथ ही देश की सत्ता में अपना वर्चस्व साबित करने का भी। इनके साथ योगी आदित्यनाथ दो कदम आगे निकले उन्होंने भगवा भी धारण किया क्योंकि वह सन्यासी थे, हैं और रहेंगे।
नरेंद्र मोदी का पूर्ण सनातनी रूप में एक सत्ता प्रमुख के अंदाज में हिंदू दिखना शायद महाराज हर्षवर्धन पुष्यमित्र शुंग और हेमचंद्र के बाद शायद पहली बार ऐसा है कि भारत के सत्ता प्रमुख ने भगवा पहना और उसी रूप में गंगा स्नान किया।
राम जन्मभूमि के शिलान्यास के समय दंडवत देते मोदी का चित्र यह दिखाता है कि भारत में धर्म सापेक्ष राजनीति का सूत्रपात हो चुका है और काशी में उनका ये सनातनी रूप कई भावी परिणामों का ट्रेलर हो सकता है।
जहां तक लेखक का अपना मत है भारत मैं हर्षवर्धन और पुष्य मित्र के बाद लगभग शक , कुषाण, हूण , मुगल और यूरोपीय आक्रांताओं ने कभी भी सनातनी शासकों को पनपने नहीं दिया। आजादी पाने के बाद भी भारतीय सत्ता अर्ध-अंग्रेजों के पास हीं रही जो चमड़ी से भूरे भूरे और विचारों से अहिंदू थे। याद करेंगे तो पाएंगे कि साहित्य, कला और मनोरंजन का क्षेत्र सदैव नवोदित पाकिस्तान से भाग कर आए हुए लोगों से हीं भरा हुआ मिलता था और है भी।
हिंदू निंदक सनातनी होना सत्ता प्राप्ति की कुंजी रही थी। अफसोस है कि एक मूर्धन्य नेता अटल बिहारी वाजपेयी भी इस सेकुलरी उहापोह से बाहर नहीं निकल पाये।
अपने दूसरे कार्यकाल के पहले महीने में अनुच्छेद 370 और 35a शिथिलीकरण, राम जन्मभूमि विवाद के निश्चित रूप से निपटाने का उपयुक्त वातावरण बनाना, मुसलमानों में ट्रिपल तलाक को गैर कानूनी घोषित करवाना, नागरिकता कानून को एक्टिवेट करना और इसके साथ साथ अयोध्या और काशी के मुद्दे पर एक सत्ता केंद्र का पूर्ण सनातनी स्वरूप में दिखना , इस प्रधानमंत्री का वह कृतित्व है जो उसे धर्म रक्षा के लिए विष्णु के लिए गए अवतारों के समकक्ष खड़ा कर देता है या कहे तो उससे भी थोड़ा ऊपर क्योंकि विष्णु के अवतारों को म्लेच्छों के साथ हर 5 साल पर लोकसभा चुनाव और लगभग हर साल भारत के चार पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव में कभी लिप्त नहीं रहना पड़ा।
सामान्य मनुष्य को ईश्वर की सत्ता देना उचित नहीं है लेकिन भारतीय कानून संहिता के दायरे में रहकर मोदी के किए गए यह काम उसे कल्कि अवतार तो नहीं पर उस अवतार के वरदान के रूप में साबित जरूर करते हैं।
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