प्रत्येक वर्ष 12 मार्च को विश्व अग्निहोत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन वैदिक परंपराओं में विशेष स्थान रखने वाली अग्निहोत्र विधि के प्रति जागरूकता बढ़ाने और इसके लाभों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए समर्पित है। अग्निहोत्र, जो कि एक वैदिक यज्ञ प्रक्रिया है वह न केवल आध्यात्मिक शुद्धि बल्कि पर्यावरण एवं स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत लाभकारी मानी जाती है। वातावरण की शुद्धि के लिए प्रतिदिन ‘अग्निहोत्र’ करने की अवधारणा भारतीय संस्कृति में है। अग्निहोत्र की उपासना से वातावरण शुद्ध होकर एक प्रकार का सुरक्षाकवच उत्पन्न होता है । अग्निहोत्र में किरणोत्सर्ग से भी सुरक्षा करने का सामर्थ्य है। इसके लिए ऋषिमुनियों ने यज्ञ का प्रथमावतार ‘अग्निहोत्र’ यह उपाय बताया है। प्रतिदिन अग्निहोत्र करने से वातावरण के हानिकारक विषाणुओं की मात्रा अत्यधिक घटती है । यह भी अब वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा सिद्ध हो चुका है। प्रतिदिन अग्निहोत्र करना, यह केवल आपातकाल की दृष्टि से ही नहीं, अपितु अन्य समय के लिए भी उपयुक्त है । ’विश्‍व अग्निहोत्र दिवस’ निमित्त सनातन संस्था द्वारा संकलित इस लेख से पाठकों को अग्निहोत्र के विषय में जानकारी मिलेगी तथा अग्निहोत्र करने का महत्त्व और लाभ से भी अवगत होंगे।

अग्निहोत्र क्या है ? : अग्निहोत्र अर्थात अग्न्यन्तर्यामी (अग्नि मेें) आहुति अर्पण कर की जानेवाली ईश्‍वरीय उपासना । सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय की जानेवाली सूर्य की उपासना अर्थात अग्निहोत्र ! एक पात्र में गाय के गोमय से बने उपले और 2 चुटकी अखंड चावल, देशी गाय के घी की सहायता से प्रज्वलित किए जाते हैं । उसके उपरांत 2 मंत्र बोलकर आहुति दी जाती है । आज मनुष्य का जीवन अत्यधिक दौड़-भाग का और तनावग्रस्त हो गया है। ऐसी परिस्थिति में मानवजाति के कल्याण के लिए ऋषिमुनियों ने अग्निहोत्र का मार्ग उपलब्ध करवाया है । श्रद्धापूर्वक उसका अवलंबन करने से निश्‍चित ही लाभ होगा ।

अग्निहोत्र करने का महत्त्व : त्रिकालज्ञानी संतों ने बताया है कि, आगे आनेवाला काल भीषण आपातकाल है। बल्कि अभी से ही आपातकाल प्रारंभ हो चुका है । वर्तमान में ऐसी स्थिति है कि, तीसरा विश्‍वयुद्ध कभी भी हो सकता है । दूसरे महायुद्ध की अपेक्षा अब संसार के सभी देशों के पास महासंहारक अण्वास्त्र हैं । इसलिए वे एक दूसरे के विरुद्ध प्रयोग किए जाएंगे । इस युद्ध में यदि अण्वास्त्रों का उपयोग किया गया, तो उनसे रक्षा होने तथा अण्वास्त्रों के किरणोत्सर्ग को नष्ट करने का उपाय भी होना चाहिए । किरणोत्सर्ग से सुरक्षा करने का सामर्थ्य भी इस अग्निहोत्र में हैं । अग्नि की सहायता से कोई भी यह उपाय अर्थात अग्निहोत्र कर सकता है। यह अग्निहोत्र का विशेष महत्त्व है।

अग्निहोत्र के लाभ: अग्निहोत्र करने से चैतन्यदायी और औषधीय वातावरण उत्पन्न होता है। अग्निहोत्र से वनस्पतियों को वातावरण से पोषण द्रव्य मिलते हैं। ‘अग्निहोत्र के भस्म का भी कृषि और वनस्पतियों की वृद्धि पर उत्तम परिणाम होता है। ‘फलस्वरूप अधिक पौष्टिक और स्वादिष्ट अनाज, फल, फूल और सब्जियों की उपज होती है।’ – होमा थेरेपी नामक हस्तपत्रक, फाइवफोल्ड पाथ मिशन, 40, अशोकनगर, धुले। अग्निहोत्र से निर्मित वातावरण का बालकों के मन पर उत्तम परिणाम होकर उन पर अच्छे संस्कार बनते हैं । चिड़चिड़े और हठी बालक शांत और समझदार बन जाते हैं । बालकों में अध्ययन करते समय सहजता से एकाग्रता आती है। मंद बुद्धि के बालकों पर हो रहे उपचार से अधिक साकारात्मक परिणाम मिलते हैं । अग्निहोत्र से अदम्य इच्छाशक्ति निर्माण होता है, मानसिक रोग ठीक होता है और मानसिक बल प्राप्त होता है। नियमित अग्निहोत्र करनेवाले विभिन्न स्तरों के स्त्री-पुरुष, बालक-वृद्धों को जीवन की ओर देखने का सकारात्मक दृष्टिकोण, मन की शांति, आत्मविश्‍वास और अधिक कार्य कुशलता आदि गुण उत्पन्न होते हैं।

अग्निहोत्र साधना के रूप में प्रतिदिन नित्यनियमित करना आवश्यक होना : अग्निहोत्र करना नित्योपासना है । यह एक व्रत है । ईश्‍वर ने हमें यह जीवन दिया है साथ ही हमें प्रतिदिन पोषक कुछ न कुछ देते रहते हैं । इस हेतु प्रतिदिन कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए अग्निहोत्र करना हमारा कर्तव्य है तथा यह साधना के रूप में प्रतिदिन करना आवश्यक है ।

अग्निहोत्र की कृति: अग्निहोत्र करते समय पूर्व दिशा की ओर मुख कर बैठें । अग्निहोत्र के लिए अग्नि प्रज्वलित करने हेतु हवनपात्र में उपले का एक छोटा टुकडा रखें । उस पर उपले के टुकडों को घी लगाकर उन्हें इस प्रकार रखें (उपलों के सीधे-आडे टुकडोें की 2-3 परतें) कि भीतर के रिक्त स्थान में वायु का आवागमन हो सके । तत्पश्‍चात उपले के एक टुकडे को घी लगाकर उसे प्रज्वलित करें तथा हवनपात्र में रखें । कुछ ही समय में उपलों के सभी टुकडे प्रज्वलित हो जायेंगे । अग्नि प्रज्वलित होने के लिए वायु देने हेतु हाथ के पंखे का उपयोग कर सकते हैं। अग्नि प्रज्वलित करने के लिए मिट्टी के तेल जैसे ज्वलनशील पदार्थों का भी उपयोग न करें । अग्नि निरंतर प्रज्वलित रहे अर्थात उससे धुआं न निकले, इसका ध्यान रखें।

अग्निहोत्र मंत्र : अग्नि की ज्वाला को मंत्ररूपी तेज का अनुष्ठान प्राप्त होने के कारण अग्नि से उत्पन्न होनेवाली तेज तरंगें सीधे आकाशमंडल के देवताओं से संधान साधकर संबंधित देवताओं के तत्त्वों को जागृत कर वायुमंडल की शुद्धि करती हैं । मंत्रों के उच्चारणों से उत्पन्न होनेवाले कंपन वातावरण तथा उसमें विद्यमान जीव एवं वनस्पतियों के लिए फलदाई होता है। मंत्रों का उच्चारण अग्निहोत्र-स्थान में गूंजनेवाले नादमय पद्धति से स्पष्ट स्वर में करना चाहिए ।

मन्त्रोंच्चारण

  1. सूर्योदय के समय बोले जानेवाले मंत्र :
    सूर्याय स्वाहा सूर्याय इदम् न मम।
    प्रजापतये स्वाहा प्रजापतये इदम् न मम।।
  2. सूर्यास्त के समय बोले जानेवाले मंत्र :
    अग्नये स्वाहा अग्नये इदम् न मम।
    प्रजापतये स्वाहा प्रजापतये इदम् न मम।।

मंत्र बोलते समय भाव कैसा हो ? :
मंत्रों में सूर्य’, अग्नि’, प्रजापति’ शब्द ईश्‍वरवाचक हैं । इन मंत्रों का अर्थ है, ‘सूर्य, अग्नि, प्रजापति इनके अंतर्यामी स्थित परमात्मशक्ति को मैं यह आहुति अर्पित करता हूं । यह मेरा नहीं है’ ।

अग्नि में हवनद्रव्य छोडना : चावल के दो चुटकी दाने हथेली पर अथवा तांबे की थाली में लेकर उस पर गाय के घी की कुछ बूंदें डालें । सटीक सूर्योदय के (या सूर्यास्त के) समय प्रथम मंत्र बोलें तथा स्वाहा शब्द के उच्चारण के उपरांत दाहिने हाथ की मध्यमा, अनामिका तथा अंगूठा जोड़कर मुद्रा बनाएं (अंगुठा आकाश की दिशा में रखें) तथा चुटकी में अक्षत-घी का मिश्रण लेकर अग्नि में छोडें । अब दुबारा मंत्र बोलें तथा स्वाहा: शब्द बोलने के पश्‍चात दाहिने हाथ से पहले की भांति अक्षत-घी का मिश्रण अग्नि में छोडें एवं प्रजापति को प्रार्थना कर, उनके ही चरणों में कृतज्ञता व्यक्त कर हवन का अंत करें।

मंत्र का उच्चारण कौन करे ? : घर का एक व्यक्ति अग्निहोत्र करे और उस समय अन्य सदस्य वहां उपस्थित रहकर आहुति देनेवाले के साथ अग्निहोत्र के मंत्र बोल सकते हैं । – डॉ. श्रीकांत श्रीगजाननमहाराज राजीमवाले

अग्निहोत्र के उपरांत की जानेवाली क्रिया:
ध्यान : प्रत्येक अग्निहोत्र के उपरांत जितना संभव हो, उतने मिनट ध्यान के लिए सुरक्षित रखें । यथासंभव हवन की अग्नि शांत होने तक ध्यान के लिए बैठें ।
विभूति (भस्म) निकालकर रखना : अगले अग्निहोत्र से कुछ समय पहले हवनपात्र की विभूति (भस्म) निकालकर कांच अथवा मिट्टी के पात्र में रखें । इस भस्म का उपयोग वनस्पतियों के लिए खाद के रूप में तथा औषधियां बनाने के लिए किया जा सकता है। – ‘होम थेरेपी’ नाम का हस्तपत्रक, फाइवफोल्ड पाथ मिशन, 40, अशोकनगर, धुले।

आवाहन : ‘अग्निहोत्र’ हिन्दू धर्म द्वारा मानवजाति को दी हुई अमूल्य देन है । अग्निहोत्र नियमित करने से वातावरण की बड़ी मात्रा में शुद्धि होती है । साथ ही यह करनेवाले व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि भी होती है । इसके साथ ही वास्तु और पर्यावरण की भी रक्षा होती है । समाज को अच्छा स्वास्थ्य और सुरक्षित जीवन जीने के लिए सूर्यादय और सूर्यास्त के समय ‘अग्निहोत्र’ करना चाहिए । अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रान्स जैसे 70 देशों ने भी अग्निहोत्र को स्वीकार किया है तथा उन्होंने विविध विज्ञान मासिकों में उसके निष्कर्ष प्रकाशित किए हैं । इसलिए वैज्ञानिक दृष्टि से सिद्ध हुई यह विधि सभी लोगों को मनःपूर्वक करना चाहिए । संदर्भ : सनातन संस्था का ग्रंथ ‘अग्निहोत्र’

 श्री. चेतन राजहंस राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था

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