कार्तिक अमावस्या को लक्ष्मी पूजन किया जाता है। सामान्यतः अमावस्या अशुभ मानी जाती है; यह नियम इस अमावस्या पर लागू नहीं होता है । यह दिन शुभ माना जाता है; परंतु समस्त कार्यों के लिए नहीं ।अतः इसे शुभ कहने की अपेक्षा आनंद का दिन, प्रसन्नता का दिन कहना उचित होगा ।
इस दिन का इतिहास अब हम समझ लेते हैं। इस दिन की कथा इस प्रकार है – श्रीविष्णु ने लक्ष्मी सहित सर्व देवताओं को बलि के कारागृह से मुक्त किया एवं उसके उपरांत ये सर्व देवता, क्षीरसागर में जाकर सो गए । अब हम यह त्योहार मनानेकी पद्धति जानकर लेते है ! ‘प्रातःकाल में मंगलस्नान कर देवपूजा, दोपहर में पार्वण श्राद्ध एवं ब्राह्मण भोजन और संध्याकाल में अर्थात प्रदोष काल में फूल-पत्तों से सुशोभित मंडप में लक्ष्मी, श्री विष्णु इत्यादि देवता एवं कुबेर की पूजा, यह इस दिन की विधि है।
लक्ष्मीपूजन के समय वर्ष भर आय-व्यय लेखा की बही श्रीलक्ष्मी के समक्ष रखें एवं उनसे प्रार्थना करें, ‘हे लक्ष्मी ! आपके आशीर्वाद से प्राप्त धन का उपयोग हमने सत्कार्य एवं ईश्वरीय कार्य के लिए किया है । उसका लेख-जोखा आपके सामने रखा है । आप अपनी सहमति देकर कृपा करें। अगले वर्ष भी हमारे कार्य आपकी कृपा से व्यवस्थित रूप से हो पाए।
मेरे पालन-पोषण हेतु मुझे चैतन्य देनेवाले, मेरे प्रत्येक कार्य में सहभागी भगवान मुझ में वास कर कार्य करते हैं । तब वे भी भागीदार हैं । मैंने वर्ष भर क्या उपलब्धि की एवं उसका विनियोग कैसे किया, उसी पाई-पाईका लेखा इस आय-व्यय बही में दर्ज किया है । जांचने के लिए आज वह आपके समक्ष रखा है । आप साक्षी हैं । मैं आपसे कुछ नहीं छुपा सकता । जब से आप मेरे निकट आए हैं, तब से मैंने आपका आदर ही किया है । आपका विनियोग प्रभुकार्य के लिए ही किया है; क्योंकि उसमें प्रभु का भी भाग है । हे लक्ष्मीदेवी, आप निष्कलंक एवं स्वच्छ हैं, इसलिए मैंने आपका उपयोग बुरे कार्योंके लिए कभी नहीं किया ।
लक्ष्मी पूजन के दिन नया झाड़ू लाकर उसकी पूजा करना तथा उससे झाड़ू लगाया जाता है, इसका क्या शास्त्र है ? – इसको अलक्ष्मी निःसारण कहते है, आईये इसका महत्त्व जान लेते हैं ! यद्यपि गुणों की निर्मिति की हो, फिर भी उन्हें महत्ता तब प्राप्त होती है जब दोष नष्ट होते हैं । यहां लक्ष्मी प्राप्ति का उपाय बताया, उसी प्रकार अलक्ष्मीका नाश भी होना चाहिए; अतः इस दिन नए झाडूका विक्रय करते हैं । इसे ‘लक्ष्मी’ कहते हैं ।
इसमें ‘नए झाडूसे मध्यरात्रि घर का कूडा सूप में भरकर बाहर फेंकना चाहिए, ऐसा कहा गया है । इसे अलक्ष्मी अर्थात कचरा अथवा दारिद्र्य निःसारण कहते हैं । सामान्यतः रातको कभी भी घर नहीं बुहारते और न ही कूडा फेंकते हैं; केवल इसी रात यह करना चाहिए । कूडा निकालते समय सूप बजाकर भी अलक्ष्मी को खदेड देते हैं ।
दीपावली के विशेष दिनों में अभ्यंगस्नान क्यों करते हैैं ? – शक संवत अनुसार आश्विन कृष्ण चतुर्दशी तथा विक्रम संवत अनुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी नरक चतुर्दशी के नाम से जानी जाती है । भगवान श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर को उसके अंत समय दिए वर के अनुसार इस दिन सूर्योदय से पूर्व जो अभ्यंगस्नान करता है, उसे नरकयातना नहीं भुगतनी पडती । अभ्यंगस्नान अर्थात सुगंधित तेल एवं उबटन लगाकर किया गया स्नान । बलिप्रतिपदा के दिन भी प्रातः अभ्यंगस्नान के उपरांत सुहागिनें अपने पति की आरती उतारती हैं ।
दीपावली के दिनों में अभ्यंगस्नान करने से व्यक्ति को अन्य दिनों की तुलना में 6 प्रतिशत सात्विकता अधिक प्राप्त होती है । सुगंधित तेल एवं उबटन लगाकर शरीर का मर्दन कर अभ्यंगस्नान करने के कारण व्यक्ति में सात्विकता एवं तेज बढता है । नरक चतुर्दशी के दिन अभ्यंगस्नान करने से शक्ति का 2 प्रतिशत, चैतन्य का 3 प्रतिशत, आनंदका 1 दशमलव दो पांच प्रतिशत एवं ईश्वरीय तत्त्व का 1 प्रतिशत मात्रा में लाभ मिलता है ।
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