कई बार आश्चर्य होता है कि वेब सीरीज लिखने वाले ये महान लेखक क्या इसी देश में रहते हैं या विदेश में अपने बंगले में बैठकर ही अपने कुत्सित एजेंडा वाले स्क्रिप्ट लिख डालते हैं! क्या उन्हें इस देश की कोई समझ है भी या नहीं? या फिर स्क्रिप्ट लिखने वाले ‘वरुण ग्रोवर’ टाइप के लोग जान बूझ कर अर्बन नक्सल और टुकड़े-टुकड़े गैंग के एजेंडा वाली स्क्रिप्ट लिखते हैं। ये कोई संयोग नहीं हैं की हिन्दू आस्था पर चोट करने वाले सीरीज जैसे: लीला, मृत्युलोक, आश्रम, सेक्रेड गेम्स, आदि निरंतर लिखे जा रहे हैं। इसके पीछे एजेंडा साफ दिखता हैं। एजेंडा हैं – हिन्दू भावनाओं से खिलवाड़ का, देवी-देवताओं के अपमान का, सेना को गलत तरीके से दिखाने का। गुंजन सक्सेना सीरीज में वायु सेना को नारी विरोधी दिखाने का प्रयास हो या एकता कपूर का सेना के परिवार को गंदी नजर से दिखाने का घिनौना प्रयास। वेब सीरीज का कोई सेंसर भी नहीं है तो इनको जो पसंद आए वो परोस सकते हैं। ऐसा लगता हैं की कई देश-विरोधी शक्तियां इनको फन्डिंग करती हैं। यह गहरी चिंता का विषय है। इसकी जांच होना चाहिए की क्या ये सोची समझी साजिश है?
इन सारे वेब सीरीज में कहीं भी कोई एक कैरेक्टर भी आपको शाकाहारी नहीं मिलेगा। हर पात्र मीट खाता है या मीट कितना स्वादिष्ट होता है इसकी बात करता है। आपने अगर ध्यान नहीं दिया तो फिर से देखिए। कहीं पर भी एक भी कैरेक्टर शाकाहारी नहीं मिलेगा। भारत में लगभग 50% लोग शाकाहारी हैं। वेब सीरीज देखें तो लगता है की एक भी शाकाहारी व्यक्ति नहीं बचा इस देश में। ऐसा लगता है की देश में सारे शाकाहारी या जैन भोजनालय बंद हो गए हैं। चाहे वो मिर्जापुर का पुरोहित त्रिपाठी परिवार हो या पाण्डेय परिवार, सब अपने घर में मिल बैठ के मटन और चिकन खाते हैं। मेरे 40 साल के अनुभव में पूर्वांचल में एक ऐसा पुरोहित परिवार नहीं मिला जो अपने घर की रसोई में बैठ कर मांसाहार करता हो। परिवार के सदस्य अगर खाते भी हैं तो बाहर खाते हैं और वो भी कभी-कभार। घर के अंदर अनुमति नहीं मिलती। यहाँ तक की इन घरों के कुत्ते भी शाकाहारी बन जाते हैं। इसके अपवाद जरूर होंगे, लेकिन वो अपवाद हैं। अपवाद को सामान्य करके दिखाने के पीछे उद्देश्य साफ हैं। दिखाना ये हैं सब मांसाहार करते हैं, चाहे वो हिन्दू पुरोहित परिवार ही क्यों ना हो। इसी तरह हर सीरीज में जब अच्छे खाने की बात होती है तो हीरो और हीरोइन को अपनी माँ के हाथ का बना मटन ,नहीं तो चिकन ही याद आता हैं। कहीं भी पालक पनीर, शाही पनीर, साग आलू, राजमा, तड़का दाल, छोले, परांठा, हलवा आदि जो की हमारे रोजमर्रा के अच्छे खाने में गिने जाते हैं, उनका नाम ही नहीं लिया जाता। यह कौन से लोग हैं और कहाँ की बात करते हैं? यह हमारे समाज का तो सही चित्रण नहीं है। ऐसा लगता की यह एक प्रकार का ‘मांसाहार जिहाद’ है, जिसका उद्देश्य मांसाहार को सामान्य दिखाकर हमारी शाकाहारी भोजन की सात्विक परंपरा पर चोट करना है।
इससे पहले की आप इसे संयोग या अनावश्यक विवाद मान कर आगे बढ़ जाएँ, गौर कीजिए की इसका छोटे बच्चों और किशोरों पर क्या प्रभाव पड़ता हैं। उनके हीरो और हेरोइन मीट खातें हैं और चटखारे ले कर खाते हैं। इससे उनमें भी मांसाहार के प्रति उत्सुकता बढ़ती हैं। अगर बच्चा मांसाहार करने लगे तो उसकी प्रवृति में बदलाव आता है। तामसी और सात्विक भोजन का प्रभाव हमारे सोच और कर्म पर पड़ता हैं। यह बिल्कुल सच हैं की हम जो खाते हैं उसका हमारे व्यवहार और सोच पर बहुत असर पड़ता है। दूसरे इस क्रम में बच्चा अपने माँ बाप से और धर्म कर्म से भी दूर हो जाएगा. शायद यही इस जिहाद का उद्देश्य है। एक तरफ हमारे देश में ये लोग मांसाहार जिहाद में लगे हैं वही पूरी दुनिया में शाकाहार के प्रति जागरूकता और उत्सुकता बढ़ती ही जा रही हैं। इस्राइल में 10% लोग अब शाकाहारी हो गए हैं। आयरलैंड में साल में दो बार शाकाहारी मेला लगता हैं। ज्यादातर स्थानीय महिलायें लाल मांस खाना छोड़ चुकी हैं। लगभग हर देश में यह क्रांति की तरह फैल रहा है। हर बड़े शहर मे शाकाहारी लोगों की संस्था है जो बड़े उत्साह से नियमित रूप से मिलती है। अभी इस हफ्ते ही ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने अपने कैन्टीन में लाल मांस का सेवन निषिद्ध कर दिया। दुनिया को पता है की शाकाहार के स्वास्थ्य संबंधी लाभ कुछ कम नहीं हैं। शाकाहारी को हार्ट अटैक का खतरा मांसाहारी की तुलना में 10 गुना कम होता है। क्रमशः यही कैंसर और अन्य घातक बीमारियों पर भी लागू होता है। जब आप एक जानवर को खाते हो तो उसका जटिल डीएनए आपके शरीर में आता है जिससे आप को रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। बहुत सारी वैज्ञानिक शोध ये दिखा रहें हैं की शाकाहारी होना सेहत के लिए सबसे लाभकारी है। संयोग नहीं की प्रकृति में पाए जाने वाले सबसे बड़े और लंबी उम्र वाले जानवर भी शाकाहारी हैं। शाकाहार के फायदे के ऊपर एक पूरी किताब लिखी जा सकती है।
शाकाहारी होने से वातावरण प्रदूषण पर भी बहुत नियंत्रण होता है। आप पूछोगे कैसे? तो इसको संक्षेप में ऐसे समझा जा सकता है। एक भेंड या बकरी पूरा जीवन घास पौधे खाती है। उसको एक बार में ही खा लिया जाए तो उसके पूरे जीवन का कार्बन फुटप्रिन्ट उस एक भोजन में खप जाता हैं। वहीं शाकाहारी खुद पेड़ पौधे खाते हैं तो उनका कार्बन फुटप्रिन्ट मांसाहार के वनस्पत बहुत कम होता हैं। कहते हैं की 1 मांसाहारी और 20 से 25 शाकाहारी का कार्बन फुटप्रिन्ट एक बराबर होता है। यहाँ तक कहा गया है की अगर दुनिया में सब मीट खाना छोड़ दें तो दुनिया भर के सारी कारों से निकलने जितना प्रदूषण कम हो सकता है। तो जो लोग हिन्दू को वातावरण की रक्षा के लिए पटाखे और पानी का इस्तेमाल ना करने का उपदेश देते हैं वो ही अपनी वेब सीरीज में मांसाहार को क्यों बढ़ावा देते हैं ये मेरी समझ से परे है। अगर सच में वातावरण को प्रदूषण से बचाना है तो शाकाहारी बनने की प्रेरणा दो। पर या तो इनका उद्देश्य वातावरण की रक्षा ना होकर किसी भी तरीके से हिन्दू आस्था पर चोट करना है और या ये लोग अव्वल दर्जे के मूर्ख हैं जिनको कार्बन फुटप्रिन्ट की कोई समझ नहीं है। दोनों ही परिस्थितियों में इनको अपने व्यवहार और अक्ल में सुधार करना चाहिए. इस ‘मांसाहार जिहाद’ पर नकेल लगनी चाहिए वरना इसके दूरगामी परिणाम वातावरण पर और अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेंगे।
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आज से चालीस वर्ष पुरानी फिल्मों में भी शाकाहार को दरिद्रता और मांसाहार को वैभव के प्रतीक के रूप में दर्शाया जाता रहा है ?