बसंत पंचमी यानी नई चेतना का प्रारंभ होने या नव ऋतु का आगमन होना ,बसंत पंचमी भारतवर्ष में हिन्दुओं का प्रसिद्ध त्योहार एंव उत्सव है इस दिन विद्या की देवी माँ सरस्वती की पूजा का विधान है बसंत पंचमी के पर्व से ही ‘बसंत ऋतु’ का आगमन होता है। भारत में माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को सरस्वती की पूजा का दिन माना गया है। हिंदू धर्म में माँ सरस्वती वाणी और अभिव्यक्ति की अधिष्ठात्री हैं। बसंत को ऋतुओं का राजा अर्थात् सर्वश्रेष्ठ ऋतु माना गया है। इस समय पंचतत्त्व अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप में प्रकट होते हैं। पंच-तत्त्व- जल, वायु, धरती, आकाश और अग्नि सभी अपना मोहक रूप दिखाते हैं। शांत, ठंडी, मंद वायु, कटु शीत का स्थान ले लेती है तथा सब को नवप्राण व उत्साह से स्पर्श करती है। पत्रपटल तथा पुष्प खिल उठते हैं।
,आकाश स्वच्छ है, वायु सुहावनी है सूर्य रुचिकर है तो जल पीयूष के समान सुखदाता और धरती, तो मानो साकार सौंदर्य का दर्शन कराने वाली प्रतीत होती है। विहंग भी उड़ने का बहाना ढूंढते हैं।
किसान की लहलहाती जौ की बालियों और सरसों के फूलों की खुश्बू अलग ही प्रतीत होती है, जहाँ प्रकृति के नव-सौंदर्य को देखने की लालसा सभी के मन मे प्रकट होने लगती है । सच! प्रकृति तो मानो उन्मादी हो जाती है। हो भी क्यों ना! पुनर्जन्म जो हो जाता है। श्रावण की पनपी हरियाली शरद के बाद वृद्धा के समान हो जाती है, तब बसंत उसका सौन्दर्य लौटा देता है। नवगात, नवपल्लव, नवकुसुम के साथ नवगंध का उपहार देकर विलक्षण बना देता है। छटा निहारकर जड़-चेतन सभी में नव-जीवन का संचार होता है। बसंत ऋतु का अपना अलग एवं विशिष्ट महत्त्व है। इसीलिए बसंत ऋतुओं का राजा कहलाता है। इसमें प्रकृति का सौन्दर्य सभी ऋतुओं से बढ़कर होता है। वन-उपवन भांति-भांति के पुष्पों से जगमगा उठते हैं। गुलमोहर, चंपा, सूरजमुखी और गुलाब के पुष्पों के सौन्दर्य से आकर्षित रंग-बिरंगी तितलियों और मधुमक्खियों के मधुरस पान की होड़-सी लगी रहती है। इसमें प्रकृति का सौंदर्य सभी ऋतुओं से बढ़कर होता है. इस महीने में फूलों पर बहार आ जाती है, खेतों में सरसों का सोना चमकने लगता है, जौ और गेहूं की बालियाँ खिलने लगती है, आम के पेड़ों पर बौर आ जाते हैं और हर तरफ रंगबिरंगी तितलियाँ मंडराने लगती हैं
बसंत ऋतू आते ही मानो प्रकृति का कण कण खिल उठता है. मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं. हर दिन नइ उमंग से सूर्योदय होता है और नइ चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्र्वासन देकर चला जाता है.
वसंत पंचमी मूलरूप से प्रकृति का उत्सव है। इस दिन से धार्मिक, प्राकृतिक और सामाजिक जीवन के कामों में बदलाव आने लगता है। लेकिन सिर्फ़ प्रकृति का ही नहीं, यह आध्यात्मिक दृष्टि से अपने को समझने, नए संकल्प लेने और उसके लिए साधना आरंभ करने का पर्व भी है।
स्वास्थ्य की दृष्टि से यह ऋतु बड़ी ही उपयुक्त है। इस ऋतु में प्रात:काल भ्रमण करने से मन में प्रसन्नता और देह में स्फूर्ति आती है। स्वस्थ और स्फूर्तिदायक मन में अच्छे विचार आते हैं।
सभी विद्याओं से खेती बाड़ी तक महत्व:-
भारत वर्ष में जहाँ जहाँ खेती बाड़ी होती है वहां वहां इस पर्व का विशेष महत्व है. किसान इस पर्व को बहुत महत्व देते हैं क्योंकि उनकी फसलों से पुराने पत्ते गिरते हैं और उसकी जगह नए पत्ते उगते हैं. फसलें खेतो में लहलहाती हुई नई ऋतु का आभास करवाती है
बसंत पंचमी पर्व का महत्व शिक्षा से लेकर संगीत में विशेष रूप से है बसंत पंचमी का महत्व एक सैनिक के लिए अपने शस्त्रों के लिए विजयादशमी, विद्वानों के लिए जिस प्रकार गुरू पूर्णिमा, एक व्यापारी के लिए दीपावली जितना महत्व रखते है, वैसा ही इंतजार कलाकारों के लिए बसंत पंचमी का होता है। चाहे कोई कवि हो या लेखक, गायक हो अन्य प्रकार की रचना विद्या का ज्ञाता, सभी बड़ी बेसब्री से बसंत पर्व का इंतजार करते है ,बसंत पंचमी अथवा ऋषि पंचमी के दिन सभी उल्लास और उमंग में डूबकर माँ की पूजा करते हैं तथा ज्ञान और बुद्धि की याचना करते है
बसंत पंचमी के दिन ही हिन्दुओं के अनुसार बच्चों के शिक्षण कार्य की शुरुआत की जाती है. इसलिए बसंत पंचमी का शिक्षा जगत के लिए विशिष्ट महत्व है।
- पवन सारस्वत मुकलावा
कृषि एंव स्वंतत्र लेखक
सदस्य लेखक , मरुभूमि राइटर्स फोरम
DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.