“काकोरी षड्यंत्र” केस में जिन चार क्रांतिकारियों को फाँसी की सजा हुई थी वो थे, रामप्रसाद बिस्मिल जी, रोशन सिंह जी, अशफ़ाक़ जी और राजेंद्र लाहिड़ी जी।
रामप्रसाद जी बिस्मिल के बारे में आपने इस लेख श्रृंखला की चौथी कड़ी में पढा था,
https://t.co/121AAHeSLQ
आज Forgotten Indian Freedom Fighters लेख की चौदहवीं कड़ी में हम उस महान क्रांतिकारी के बारे में पढ़ेंगे जो काकोरी केस में दोषी भी नही थे फिर भी उन्होंने हँसते हँसते अपने प्राणों का बलिदान कर दिया।
उन महान क्रांतिकारी का नाम है – ठाकुर रोशन सिंह।

काकोरी विजय के चार नायक

रोशन सिंह का जन्म 22 जनवरी 1892 को उत्तरप्रदेश के शाहजहांपुर जिले में हुआ था। बचपन से बलिष्ठ शरीर के रोशन सिंह में साहस एवं देशभक्ति कूट कूटकर भरी हुई थी। इनका पूरा परिवार आर्य समाज से जुड़ा हुआ था इसलिए घर में हमेशा देशभक्ति का माहौल रहता था।

गांधी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन में रोशन सिंह ने भी बढ़ चढ़कर भाग लिया था। उसी दौरान बरेली जिले में एक पुलिस वाले के साथ हुई झड़प के कारण बरेली गोलीकांड के तहत उन्हें दो साल कारावास की सजा दी गयी।
इसी कारावास सजा के दौरान रोशन सिंह की मुलाकात एक अन्य क्रांतिकारी पंडित रामदुलारे त्रिवेदी से हुई और इन्हीं रामदुलारे जी की मदद से वो पंडित रामप्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आए।

जब 05 फरवरी 1922 की “चौरा चौरी जनाक्रोश” के कारण गांधी ने आंदोलन वापिस ले लिया, इस फैसले ने क्रांतिकारियों के मन में निराशा उत्पन्न कर दी।
इसके बाद शाहजहांपुर में ही रामदुलारे त्रिवेदी, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी और रामप्रसाद बिस्मिल जी ने एक गुप्त बैठक की जिसका मुख्य उद्देश्य था – राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी क्रांतिकारी पार्टी का निर्माण, जो अस्त्र शस्त्र से सुसज्जित हो।
इसी रणनीति के तहत ठाकुर रोशन सिंह को भी पार्टी में शामिल किया गया।

अब पार्टी का गठन तो हो गया था, पार्टी के पास देश पर मर मिटने वाले युवाओं की कमी नही थी लेकिन कमी थी पार्टी संचालन के लिए पैसों की।
इसलिए पार्टी ने एक डकैती का प्लान बनाया और उसे नाम दिया – “एक्शन”
एक्शन प्लान के तहत पीलीभीत जिले के बमरौली गांव में 25 दिसंबर 1924 को बलदेव प्रसाद के डकैती डाली गई, बलदेव प्रसाद शक्कर निर्माता था और गरीबों को ब्याज पर रुपये देकर अवैध रूप से सूद वसूल करता था।
इस प्लान के तहत क्रांतिकारियों को सोने चांदी के जेवर और चार हज़ार रुपये प्राप्त हुए।
एक पहलवान था मोहनलाल, जो इस प्लान में ठाकुर रोशन सिंह की गोली से मारा गया।
बाद में इस मोहनलाल की मौत ही रोशन सिंह के लिए फाँसी की सजा का कारण बनी।

क्रम संख्या 9 पर ठाकुर रोशन सिंह

हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के क्रांतिकारी सदस्यों ने 09 अगस्त 1925 को ऐतिहासिक काकोरी कांड की घटना को अंजाम दिया।
ऐसा बताते है कि ठाकुर रोशन सिंह इस घटना में शामिल नही थे, बल्कि 36 वर्ष के ठाकुर रोशन सिंह की उम्र के ही केशव चक्रवर्ती काकोरी कांड में शामिल थे, उनकी शक्ल रोशन सिंह से मिलती थी।
अंग्रेजी हुकूमत ने माना कि रोशन सिंह ही डकैती में शामिल थे। केशव बंगाल की अनुशीलन समिति के सदस्य थे, फिर भी पकडे़ रोशन सिंह गए।
चूकि रोशन सिंह बमरौली डकैती में शामिल थे और इनके खिलाफ सारे साक्ष्य भी मिल गये थे अत: पुलिस ने सारी शक्ति शठाकुर रोशन सिंह को फाँसी की सजा़ दिलवाने में ही लगा दी।
अंततः काकोरी षड्यंत्र के लिए अंग्रेजों ने अशफ़ाक़, ‘बिस्मिल’, राजेंद्र लाहिड़ी के साथ रोशन सिंह को भी जिम्मेदार माना।
इसी के तहत ब्रिटिश अदालत ने दफा 120 (बी) और 121 (ए) के तहत 5-5 साल की सजा और 396 के अन्तर्गत फाँसी की सजा उनको सुनाई।

ठाकुर रोशन सिंह  ने 6 दिसंबर 1927 को इलाहाबाद में नैनी की मलाका की काल-कोठरी से अपने एक मित्र को पत्र लिखा था,
“इस सप्ताह के भीतर ही फांसी होगी, आप मेरे लिये रंज हरगिज न करें। मेरी मौत खुशी का सबब होगी। यह मौत किसी प्रकार के अफसोस के लायक नहीं है। दुनिया की कष्ट भरी यात्रा समाप्त करके मैं अब आराम की जिन्दगी जीने के लिये जा रहा हूं”

पत्र समाप्त करने के पश्चात उसके अन्त में उन्होंने अपना यह शेर भी लिखा था,
“जिन्दगी जिन्दा-दिली को जान ऐ रोशन!
वरना कितने ही यहाँ रोज फना होते हैं।”

19 दिसंबर 1927 का वो दिन आया, जब ठाकुर रोशन सिंह फांसी के तख़्ते पर चढ़ने जा रहे थे।
ठाकुर साहब ने अपनी काल-कोठरी को प्रणाम किया और गीता हाथ में लेकर निर्विकार भाव से फाँसी घर की ओर चल दिये। फाँसी के फन्दे को चूमा फिर ज़ोर से तीन बार “वन्दे मातरम्”का उद्घोष किया और “वेद-मन्त्र” का जाप करते हुए फन्दे से झूल गये।

बताते हैं कि ठाकुर रोशन सिंह फांसी के पहले ज़रा भी उदास न थे। वो अपने साथियों से कहते रहते थे कि उन्हें फांसी दे दी जाए, कोई बात नहीं, उन्होंने तो जिंदगी का सारा सुख उठा लिया, लेकिन बिस्मिल, अशफाक और लाहिड़ी जिन्होंने जीवन का एक भी ऐशो-आराम नहीं देखा, उन्हें इस बेरहम ब्रिटिश सरकार ने फांसी पर चढ़ाने का फैसला क्यों लिया?

ठाकुर रोशन सिंह के अंतिम समय की तस्वीर

मृत्यु के आखिरी क्षणों तक भी उनके चेहरे पर सिर्फ गर्व था। फाँसी के बाद ठाकुर साहब के चेहरे पर एक अद्भुत शान्ति दृष्टिगोचर हो रही थी। मूँछें वैसी की वैसी ही थीं बल्कि गर्व से कुछ ज्यादा ही तनी हुई लग रहीं थी।
भारत माँ के इस महान वीर सपूत को हमारा शत् शत् नमन।।
जय हिंद
????

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.