‘देवकर्म में सर्व विधियां देवता का आवाहन करने के लिए होती हैं, जबकि पितृकर्म में प्रत्येक विधि पितरों का आवाहन करने के लिए की जाती है । इस दृष्टि से दर्भ की सहायता से उस विशिष्ट वस्तु पर जल छिडककर वैसा संकल्प किया जाता है । उन विशिष्ट तत्त्वों की तरंगों की गति के लिए पूरक दिशा में कर्म करने से, उसकी फलप्राप्ति अधिक होती है । देवकर्म करते समय देवताओं का आवाहन करने पर, ब्रह्मांड में कार्यरत उन विशिष्ट देवताओं की तरंगों का देवयान मार्ग से पृथ्वी कक्षा में आगमन होता है ।  सात्त्विक चैतन्यमय तरंगों का भ्रमण सदा दक्षिणावर्त दिशा में, अर्थात सीधी दिशा में होने के कारण देवकर्म करते समय सदा जल की सहायता से सीधा मंडल बनाकर अथवा सीधी परिक्रमा कर उन विशिष्ट देवताओं की तरंगों का आवाहनात्मक स्वागत किया जाता है । इसे ही ‘प्रदक्षिण कर्म’ कहते हैं ।  इसके विपरीत पितृयान से पृथ्वी की कक्षा में आगमन करनेवाले पितर, वामवर्त दिशा में (घडी की सुइयों की विपरीत दिशा में) कार्यरत रज-तमात्मक तरंगों की सहायता से श्राद्धस्थल पर आगमन करते हैं । इसलिए विशिष्ट पिंड पर अथवा पितरों से संबंधित सामग्री पर विपरीत दिशा में जल का मंडल बनाकर अथवा जल छिडक कर और संकल्प कर, विशिष्ट दिशा के लिए पूरक कर्म किया जाता है । इसे ही ‘अप्रदक्षिण कर्म’ कहते हैं ।’

श्राद्ध में भोजन परोसने की पद्धति

पितृपात्र में (पितरों के लिए परोसी गई थाली में) उलटी दिशा में (घडी के कांटे की विरुद्ध दिशा में) भस्म की रेखा बनाएं ।

भोजन केले के पत्ते पर अथवा मोहा नामक वृक्ष के पत्तों से बनी पत्तल पर (उपलब्धता के अनुसार) परोसें ।

श्राद्धीय ब्राह्मणों की थाली में नमक न परोसें ।

पका अन्न (लड्डू इत्यादि) हाथ से ही परोसें; परंतु भाजी-तरकारी (सब्जी), कचूमर (सलाद), चटनी इत्यादि पदार्थ कभी भी हाथ से न परोसें । उसके लिए चम्मचों का उपयोग करें ।

थाली में पदार्थ परोसने का क्रम, स्थान एवं उसका आधारभूत शास्त्र

श्राद्ध के दिन थाली के बाएं, दाएं, सामने एवं मध्य, इन चारों भागों में (चौरस) पदार्थ बताए हैं ।

आरंभ में थाली में देसी घी लगाएं ।

मध्यभाग में चावल (भात) परोसें ।

दाईं ओर खीर, भाजी-तरकारी परोसें ।

बाईं ओर नीबू, चटनी एवं कचूमर परोसें ।

सामने सांबार, कढी, पापड, पकौडी एवं उडद के बडे, लड्डू जैसे पदार्थ हों ।

अंत में चावल पर देसी घी एवं बिना तडके की दाल परोसें ।

शास्त्र : ‘पितरों के लिए थाली में सदैव उलटी दिशा में अन्न पदार्थ परोसने से रज-तमात्मक तरंगें उत्पन्न होकर मृत आत्मा के लिए अन्न ग्रहण करना संभव होता है ।’

भोजन परोसते समय एक को कम एवं दूसरे को अधिक, एक को अच्छा तो दूसरे को निकृष्ट, ऐसा न करें । श्राद्ध के दिन तो ऐसा भेदभाव बिलकुल भी न करें ।

श्राद्धविधि पूर्ण हुए बिना छोटे बच्चे, अतिथि अथवा अन्य किसी को भी अन्न न दें ।

संदर्भ : सनातनका ग्रंथ -‘श्राद्ध का महत्त्व एवं शास्त्रीय विवेचन’

श्रीचेतन राजहंसराष्ट्रीय प्रवक्तासनातन संस्था

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