आप कभी छत पर सोए हैं ??? खुले आकाश के नीचे !

रात में जब आप छत पर आकाश की ओर मुंह करके ऊपर अनंत की ओर देखने की कोशिश करें तो एक अद्भुत संसार ,सोचता हूँ उसे संसार भी कहना ठीक होगा क्या ,मगर ये जो आदि से लेकर अनंत तक दिखाई देता है वो सिर्फ एक अनुभूति है ।

अक्सर ये कहते हुए सुना है कि मरने के बाद सब तारा बन जाते हैं |विज्ञान कहता है नहीं बकवास है ये ,गैस के गोले हैं सब बस ..मगर फिर विज्ञान ये भी नहीं बताता कि अगर अभी के बाद तारा नहीं बनता तो फिर क्या बनता है कुछ  बनता भी है या नहीं पता नहीं है | खैर ,हम इस मौत की बातें क्यों करें हम तो जीवन और जीवन संस्कृति की बातें करने चले थे तो उसी की बातें करते हैं ।।

 संस्कृति यानि संस्कारों से युक्त दिनचर्या ऐसी आदर्श स्थिति जिसका निर्वाह करते हुए मनुष्य पूरे जीवन चक्र को बिता कर सिर्फ इसलिए भी उस जीवन मरण चक्र से बाहर निकलने का हकदार हो जाता है, क्योंकि उसका जन्म संस्कारों को ग्रहण कर जीवन को संस्कृति में बदलने के लिए ही हुआ है ||

संस्कृति मिलती है या कहें पनपती है संस्कारों से संस्कार आते हैं शिक्षा से शिक्षा वह हमें तब मिलती है जब हमारे अंदर ज्ञान की अनुभूति हो और ज्ञान की अनुभूति करने वाला और कोई नहीं वह गुरु होता है गुरु ऐसा होना चाहिए जो आदमी से थोड़ा सा ज्यादा होकर एक इंसान हो |कहने का तात्पर्य यह है हमारे जैसा आप के जैसा उनके  आदर्शों में ,व्यवहार में ,चरित्र में ,वाणी में ,जीवन शैली में ,हर दृष्टिकोण में मानवता को  स्थापित करने वाला वह गुरु कहलाने का हकदार है फिर चाहे वह ईश्वर हो या मानव के रुप में जन्म देने वाली कोई  आत्मा ||


सबसे दिलचस्प बात यह है कि अपने भीतर समेट कर रखने यवाले ईश्वर को ना पहचानने वाला इंसान ही सबसे ज्यादा उसकी तलाश में यहां वहां मारा मारा फिरता है | विज्ञान की खोजें  की जा रही  हैं ,योग मनोयोग शारीरिक मानसिक सामाजिक जाने कैसे-कैसे प्रयोजनों से इन सब को साधने की कवायद की जा रही है जबकि जीवन संस्कृति को समझने का सबसे सरल उपाय है कि आप मनुष्य जीवन को समझ और जब गुरु को तलाशते हैं तो फिर तो प्रकृति में आपके आसपास मौजूद हरण आपसे ज्यादा श्रेष्ठ और आपसे ज्यादा आदरणीय माना जाना चाहिए ।

ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि यह खुद बखुद समय ने इतिहास में प्रमाणित किया हुआ है और जिन की बात कर रहा हूं उन्होंने खुद भी साबित  किया हुआ है| आप अपने आसपास देखिए क्या दिखाई देता है ? आकाश धरती मिट्टी पानी इनमें से कौन सी ऐसी चीज है जिसे आप अपना गुरु नहीं मान सकते हैं | जिसे इष्ट नहीं  समझ सकते जिसमें ईश्वर का निवास नहीं मान सकते तो फिर इन सब को अपना दोस्त , मित्र , सखा , परिवार , और ईष्ट मानकर उनकी यथावत सेवा करने की बजाए हम उनमें यथेष्ट प्रकार से विषाक्त पदार्थों को सिर्फ इसलिए घोल रहे हैं कि हम मानव विकास और विज्ञान के नाम पर साधक से उपभोगी  बन कर रह जाएं और सच में देखा जाए तो यही है भी……….शेष चर्चा …अगली क़िस्त में

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