मै एमबीए का छात्र रह चुका हूं तो जाहिर है कि मेरे दोस्तो में ज्यादातर लोग पढ़े लिखे और मॉडर्न जमाने से जुड़े हुए होंगे,अच्छे लोग है अपने कार्य में मेहनत करते है अपने परिवार का ख्याल रखते ज़िन्दगी को खुल के जीते है पिकनिक पे जाते है रेस्टोरेंट में फैमिली डिनर के लिए भी जाते है,आपको को बता दू कि उनमें अधिकतम हिन्दू है और कभी कभी मंदिर भी जाते है।

जब भी कभी मिलते है तो बहुत से मुद्दों में बातचीत होती है जैसे देश में क्या चल रहा है,पेट्रोल, महंगाई, सोशल मीडिया, स्कूल कॉलेज के दिन इत्यादि,पर एक बात जो सिर्फ मुझे अजीब लगती है जिसमें कभी ज्यादा चर्चा नहीं होती वो है “हिंदुत्व”।

पता नहीं क्यों मेरे हिंदुत्व की बात करते ही मै पुराने ख्यालात का बोरिंग बाते करने वाला असांप्रदायिक और कट्टरवादी बन जाता हूं ? क्या मैकडोनाल्ड या उस जैसे बड़े रेस्तोरां या पढ़े लिखो के बीच हिंदुत्व की बात करना इतना गलत है कि हमारे युवा उसे गंभीरता से स्वीकार्य ही नहीं करते।

आप खुद ही सोचिए जब हम एक मुस्लिम युवा को दाढ़ी बढ़ाए सर पर जालीदार टोपी पहने देखते है तो यही सोचते है ना कि वो एक कट्टर मुस्लिम है पर कभी ये क्यो नहीं सोचते कि वो वहीं कर रहा होता है जो उसे उसके परिवार द्वारा सिखाया गया,वो अपनी दुकान बंद कर सकता है पर नमाज के लिए जाना नहीं, मै यहां कतई मुस्लिमो से हमारी तुलना नहीं कर रहा परन्तु क्या हम वो करते है जो हमारे परिवार या हमारे बड़ों ने हमें सिखाया… ?

जी बिल्कुल नहीं क्योंकि हमने शनिवार को बजरंग बली के दिन से ज्यादा वीकेंड मानना शुरू कर दिया है हम उस दिन मंदिर नहीं जाएंगे लेकिन चूंकि वीकेंड है तो हफ्ते भर की थकान उतारने बार एंड रेस्टोरेंट में जरूर जाएंगे, जब कोई हमारे देवी देवताओं पर हास्यास्पद टिप्पणी करे तो हमने उसे अपमान से ज्यादा सेंस ऑफ ह्यूमर मनाना शुरू कर दिया है चूंकि हम उनकी बातो में नहीं हंसे तो पिछड़े हुए कहलाएंगे और पश्चिमी वातावरण के हिसाब से बहुत पीछे नजर आएंगे।

याद रखे इंदौर में हुए कॉमेडी शो में हमारी आस्था का मजाक उड़ाने वाला सिर्फ मुनव्वर फारूकी नहीं था उससे कहीं ज्यादा भागीदारी वहां बैठे ठहाके मार के हसने वाले हमारे ही हिन्दू भाई बहनों की भी थी जो पश्चिमी वातावरण में रहना ही अपना सौ भाग्य मानते है और उस वातावरण ने उन्हें इतना सहनशील बना दिया है कि उन्हें देवी देवताओं का अपमान,मूर्ति तोड़ने की घटनाएं और राम भक्तो के ऊपर पथराव से जरा भी फर्क नहीं पड़ता।

हमारी इसी कमजोरी का फायदा उठा के हमारी धार्मिक आस्थाओं को निरंतर ठेस पहुंचाई जाती है,हमारे तीज त्योहारों को मानने के ठंग में आपत्ती जताई जाती है – दीवाली में प्रदूषण, होली में पानी की बरबादी और जन्माष्टमी में हादसे होने जैसे बाते तथाकथित बुद्धि जीवियो द्वारा की जाती है वो कभी बकरीद में लाखो बेहुबान जानवरो के कत्लेआम के विषय में नहीं बोलते क्योंकि वो जानते है कि वो समुदाय हमारी तरह सुनकर चुप बैठने वाला समुदाय नहीं है वो सड़कों पे आ सकता है और कई राजनैतिक पार्टियों को नुकसान पहुंचा सकता है।

2014 – जब से मोदी जी ने केंद्र में सरकार बनाई इन विषयो में जागरूकता बढ़ी है किन्तु उससे ज्यादा अराजकता का स्तर भी बढ़ा है हाल ही में आंध्र प्रदेश में श्री राम की मूर्ति तोड़ दी गई, आप यकीन नहीं कर पाएंगे कि पूरे आंध्र प्रदेश में पिछले 19 महीनों में मंदिरों पे हमले कि 120 घटनाएं हो चुकी है।

दिल्ली में अतिक्रमण के नाम पे हनुमान मंदिर को गिरा दिया गया जबकि पूरे दिल्ली शहर में अतिक्रमण करती मजारे आपको मिल जाएंगी सड़कों पे मजार है,खेल मैदानों में मजार है यहां तक कि रेलवे स्टेशनों के प्लेटार्म में तक मजार है,किन्तु गिराया जाता है सिर्फ हनुमान जी का मंदिर।

जय श्री राम।

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