अजीबो गरीब देश है भारत। यहाँ एक वर्ग विशेष की तो हर भावनाओं का भरपूर ख़याल रखा जाता है यहाँ तक कि उनके नाम पे कोई तथ्यात्मक TV कार्यक्रम के एपिसोड का नाम रखना तक अपराध माना जाता है एवं कोर्ट तुरंत कार्यवाही करते हुए प्रोग्राम प्रशारन करने से रोक देती है वही दूसरी तरफ़  अगर कोई हिंदुओ की भावना को आहत करे तो ये अपराध नहीं माना जाता। क्या क़ानून का दोहरा मापदंड है? 

पत्रकार सुष्मिता सिन्हा द्वारा अपने यूटूब विडीओ में दंगे भड़काने के उदेश्य से हिंदू देवी देवता पर किए गए अपमानजनक  टिप्पणी पर किए गए FIR में दिल्ली पुलिस ने साकेत कोर्ट में दायर अपने ATR (Action Taken Report) में  सुष्मिता सिन्हा को क्लीन चिट देते हुए कहा कि यह कोई क्रिमिनलअफ़ेन्स नहीं है।

याद होगा कुछ सप्ताह पूर्व एक पत्रकार सुष्मिता सिन्हा द्वारा तीज ब्रत कथा पुस्तक व इसमें लिखे कथाओं पे अभद्र टिप्पणी करते हुए यूटूब विडीओ शेयर किया , इतना ही नहीं वो उस धार्मिक पुस्तक को शौचालय में प्रयोग होने वाले टिशू/टॉलेट  पेपर तक बनाके रखने की बात कही और इन्स्टग्रैम पर एक फ़ोटो शेयर किया जिसमें उस पुस्तक (जिसमें हिंदू देवी देवताओं के चित्र है ) को अपने शौचालय में टिशू/टॉलेट पेपर की जगह रखा दिखाया था।

इससे आहत बहोत सारे हिंदुओ ने ट्विटर व अन्य सोशल मीडिया पर आवाज़ भी उठाई थी। जिस पर हिंदू IT सेल के सदस्य आशुतोष गुप्ता ने FIR रेजिस्टर ना करने के लिए  SHO (गोविंदपुरी) सहित सुष्मिता सिंह पर धार्मिक भावना आहत करने का FIR दर्ज करवाई थी ।

पिछले साल जुलाई में राँची की एक १९ वर्षीय लड़की ऋचाभारती  ने एक समुदाय विशेष के पोस्ट के जवाव में किए पोस्ट पर राँची पुलिस ने महज़ ३ घंटे के अंदर कार्यवाही करते हुए अरेस्ट किया था और राँची कोर्ट के जुडिसियल मजिस्ट्रेट मनिष कुमार सिंह द्वारा  ५ क़ुरान बाँटने का आदेश दिया गया था जिसका विरोध होने के बाद ७०००/- रुपए और दो स्योरिटी के साथ बेल मंज़ूर की गयी थी।

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