माँ भवानी दुर्गा की प्रतिमा विसर्जन के लिए मूर्ति के साथ खड़े कुछ श्रद्धालु चुपचाप खड़े हैं और एक तरफ से पुलिस भागती हुई आती है और सबको मारने लगती है , मुंगेर का ये वीडियो क्लिप पूरे दो दिनों से सबके मन को व्यथित किये हुए हैं | लेकिन लोगों ने सिर्फ इस वीडियो और बाद में पुलिस की बर्बबरतापूर्ण अपराध के बारे में सुना देखा |

असल में सच इससे कहीं अधिक पीड़ादायी और अफसोसनाक है | जानिये मुंगेर के एक स्थानीय निवासी : अनुपम सिंह

मुंगेर ,गंगा तट  पर स्थित बिहार का एक शहर जिसके पास बेशक अच्छे बुरे और भी कारण हों प्रसिद्द होने के मगर निश्चित रूप से जो एक है वो है दुर्गा पूजा और उससे भी अधिक माँ दुर्गा की प्रतिमाओं की परिक्रमा और विसर्जन |

शहर में पूजा के लिए प्रतिमा का निर्माण बड़ी दुर्गा माँ छोटी दुर्गा माँ , बड़ी काली माता कर छोटी काली माता के प्रतीक स्वरूपों में स्थापित की जाती हैं | दस दिनों की नवरात्रि की पूजा के उपरान्त इन सभी प्रतिमाओं को इसी क्रम में एक विशेष नगर परिक्रमा करते हुए विसर्जन करने की गौरवशाली परम्परा रही है | इसके लिए न सिर्फ सैकड़ों सालों से विशेष मार्ग तय है बल्कि 32 कहारों द्वारा माता की पालकी को विसर्जन के लिए ले जाने की परंपरा है |

इस निर्धारित मार्ग के बीच बीच में , पहले से स्थापित मिलन , आरती आदि के लिए जगह  तय हैं जहां रुक रुक भक्त गण इन परम्पराओं को निभाते हुए पूरा करते हुए विसर्जन के मार्ग पर बढ़ते हैं | किन्तु कोरोना महामारी के मद्देनज़र इस बार इन सबसे भी परहेज़ ही रखा गया था |

मुंगेर दुर्गा पूजा समिति की सबसे बड़ी अधिकारी स्वयं उस जिले का पुलिस अधीक्षक होता है | समिति के सदस्यों ने मुंगेर में उसी दिन चुनाव की तारीख को न रखे जाने के आग्रह पर कुछ सुनवाई न होते देख , विसर्जन के कार्यक्रम में ही फेरबदल की योजना पुलिस के सामने रखी |

विसर्जन वाली संध्या को जब समिति के सदस्यों ने प्रतिमा विसर्जन और परिक्रमा की तैयारी शुरू की तो वो मूर्ति अपने स्थान से टस से मस भी नहीं हुई और अंततः अपने उसी पुराने समय यानि ४ बजे नगर परिक्रमा का कार्यक्रम शुरू हुआ |

विधानसभा चुनावों के कारन पूरा शहर BSF और CRPF की बटालियनों से भरा हुआ था जो श्रद्धालुओं से जल्दी जल्दी विसर्जन यात्रा पूरी करने के लिए उकसा रहते थे | माता की पालकी को थामे श्रद्धालु नौ दिनों से व्रत में थे और उस समय नंगे पाँव ही प्रतिमा को उठाये हुए थे , चमड़े आदि की कोई वस्तु नहीं |

एक निर्धारित स्थान पर मूर्ति को रोका गया किन्तु वहां फिर से पुलिस कार्यकर्ताओं को जल्दी जल्दी आगे जाने को कहने लगी | श्रद्धालुओं द्वारा लाख कोशिशों के बावजूद भी , प्रतिमा नहीं उठी | ऐसे में पुलिस बल को लगा की कार्यकर्ता जानबूझ कर ये देर कर रहे हैं | आखिरकार थक हार कर भक्तों ने पुलिस बल को ही कहा कि वे ही प्रयास करके देखें | पुलिस बल द्वारा पुरे 17 बार प्रयास करने के बावजूद भी प्रतिमा अपने समय के अनुसार ही पुनः परिक्रमा के लिए उद्धत हुई |

यही बात उस गुस्सैल पुलिस अधीक्षक को नागवार गुजरी और उन्होंने बड़ी दुर्गा माँ की प्रतिमा को पीछे छोड़ कर अन्य प्रतिमाओं को आगे लेकर जाने का फरमान सुना दिया | पहले से ही परेशान भक्तों ने पुलिस की इस मनमानी के विरूद्ध उनसे शिकायत की | 

बस इसके बाद फिर क्या था पुलिस ने आव देखा न ताव और डंडों लाठियों से टूट पड़ी श्रद्धालुओं पर | जब मन उससे भी नहीं भरा तो अनेक राऊंड गोलियां चला दीं | मिनटों में ही ऐसा हाहाकार और भगदड़ मची की हर तरफ लग रहे देवी माँ के जयकारे चीख पुकार में बदल गए | 

जैसे तैसे घायल अवस्था में बड़ी दुर्गा माँ को विसर्जन के लिए पहुंचाया गया | न तो बीच में महा आरती हुई न ही अन्य प्रतिमाओं के विसर्जन मिलन का कार्यक्रम | परमपराओं के अनुसार विसर्जन से पहले सभी माताओं की प्रतिमाओं से स्वर्ण आभूषण आदि हटा लिए जाते हैं , किन्तु ये सब कुछ आपाधापी की भेंट चढ़ गया | 

इतना ही नहीं छोटी दुर्गा माँ , जिनकी पालकी भी विसर्जन के लिए 32 कहारों के कंधों पर ही परिक्रमा करती है उसे नगर निगम के गंदे ट्रैक्टर में लाद कर गंगा तट पर पहुँचा दिया गया और फिर जेसीबी की मदद से उसे सीधा फेंक दिया गया | बड़ी काली माता की टूटी फूटी प्रतिमा को विसजर्न के लिए लाया देख कर सभी भक्तजनों के सब्र का बाँध टूट गया | दुर्गा पूजा विसर्जन के शान्तिपूर्ण कार्यक्रम के साथ पुलिस की ऐसी बर्बरता ने हम मुंगेर वालों को पूरी तरह से दुखी निराश और घायल कर दिया है | 

इसके आगे , ताज़ा समाचार मिलने तक ,नगर की पुलिस अधीक्षक व जिलाधिकारी से काम काज की सारी शक्तियां वापस ले ली गई हैं , घायल और अपमानित मुँगेर का गुस्सा आखिरकार आज फूट पड़ा और उन्होंने आज मुंगेर के तीन पुलिस थाने समेत बहुत कुछ फूँक डाला | जांच की घोषणा हो गई है | 

ये घटना बहुत सारे सवाल खड़ी करती है :-

क्या विसर्जन के दिन और चुनाव के दिन को अलग अलग करने से ऐसे हादसे की संभावना को कम किया जा सकता था ? 

देश की पुलिस और सुरक्षा बल के लोग आखिर कब ? कब जाकर संवेदनशील होंगे ? कब उन्हें ये एहसास होगा कि वे किसी दूसरे दुश्मन देश के लोगों से नहीं निपट रहे हैं ? 

वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों में इन परिस्थतियों में किस तरह का कैसा व्यवहार करना चाहिए ?? संवेदनशील समय पर लोगों की जान माल की सुरक्षा पहला कर्त्वय होना चाहिए ? न कि गोली बन्दूक चलवाना 

हिन्दू आज अपनी सहिष्णुता ,सहनशीलता के कारण धीरे धीरे इंसान से हाड मांस के एक कायर लोथड़े में बदलता जा रहा है शायद इसलिए जो पुलिस छः महीने तक शाहीन बाग़ जैसे सड़कों को नहीं खुलवा सकी उसने हिन्दुओं को दो मिनट में गोली मार कर खत्म कर दिया ? आसान होता है किसी के लिए भी हिन्दू को मार देना ? है न ? 

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