सेकुलर, लिबरल, जेएनयू और बॉलीवुड से यदि हिन्दु धर्म पर चर्चा की जाए तो सब के सब हिन्दु धर्म मे हज़ारो बुराइयाँ गिनवा देंगे। हिन्दु धर्म मे महिलाओं का सम्मान नहीं है।दलितों का सम्मान नहीं है। बहुत सारे देवता हैं। केवल ब्राह्मणों का सम्मान होता है। शूद्रो को वेद पढ़ने का अधिकार नहीं है इत्यादी जैसी हज़ारो बातें कहकर आपको चुप करा देंगे। ये लोग दूसरे किसी भी धर्म मे व्याप्त बुराई के बारे मे कभी कोई चर्चा नहीं करेंगे। यहां तक की उनकी बुराई बाहर आने भी नहीं देंगे।अगर हम दूसरे धर्मों के बारे में चर्चा शुरू करेंगे तो हमारे राष्ट्रवादी लोग भी डिबेट छोड़ कर भाग जाते हैं। दूसरे धर्मों की बुराई सालो से हमसे छुपाई जाती रही है।आइये पता करते हैं क्या सच में हिन्दू धर्म बुरा है ?
सबसे पहले बात करते हैं महिलाओं की। हिन्दु धर्म में महिलाओं का जितना सम्मान होता है उतना दुनिया के किसी भी अन्य धर्म मे नहीं होता है। क्या दुनिया के किसी भी अन्य धर्म मे पराई महिला को “बहन” कह कर सम्बोधित किया जाता है? भारत के अलावे किसी भी अन्य समाज मे बच्चो के मन मे ये बात डाली जाती है के गाव और आस पड़ोस की लड़कियाँ या लड़के तुम्हारे भाई बहन है? क्या किसी भी अन्य समाज मे ऐसा बोला जाता है के पराई स्त्री को देखना छूना पाप है? क्या किसी अन्य धर्म मे स्त्री की पूजा होती है? क्या किसी अन्य धर्म मे कुवारी कन्या की पूजा होती है? क्या ऐसा कोई धर्म है जिसमे शादी को जनम जनम का बन्धन माना गया है और पत्नी को आधा शरीर, जिसकी वजह से औरतो को इतना तो विश्वास होता है के मेरा पति मुझे छोडेगा नहीं। फिर हिन्दु धर्म पर ये कलंक के यहाँ महिलाओं का सम्मान नहीं होता, कहाँ से आया? सती प्रथा, बाल विवाह, बलात्कार, पर्दा प्रथा इत्यादी जैसी बुराई कहाँ से आई इस पर शोध होना चाहिए।
अब आते हैं दलित यानी शूद्र पर। हमारे सेकुलर, लिबरल , जेएनयू वाले कहते हैं के शूद्रो को उच्च शिक्षा का अधिकार नहीं था। उन्हे वेद पढ़ने का अधिकार नहीं था। इस पर ये पूछना चाहिए के किसी 10वी पास लड़के को किसी कंपनी मे मैनेजर की नौकरी मिल सकती है क्या? नहीं ना। उसे कोई छोटा मोटा काम करना होगा। मैनेजर के लिये यदि योग्यता कम से कम स्नातक है तो उसे स्नातक पास करना होगा। इस पर आप क्या कहेंगे? छोटा मोटा काम करने वाले को स्नातक की पढ़ाई का अधिकार नहीं था? या स्नातक की पढ़ाई नहीं करने की वजह से उसको छोटा मोटा काम करना पड़ा? महर्षि बाल्मीकि , वेदव्यास इत्यादी दलित ही थे अगर उन्हे उच्च शिक्षा का अधिकार नहीं था तो फिर उन्होने पढ़ाई कैसे की? और बिना पढ़े रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यो का निर्माण कोई कर सकता है? रामायण मे जातिवाद जैसे शब्दों का कही पर भी वर्णन नहीं मिलता है। भगवान राम भी दलित शबरी के जूठे बेर खाते हैं। निशाद राज को अपना मित्र मानते हैं जो की जातिवाद के न होने का प्रमाण है। अगर इन ग्रंथो मे ऐसा कोई सन्दर्भ दिखता भी है तो क्या उस पर शोध नहीं होना चाहिए । हम सदियो तक विदेशी आक्रांताओं के गुलाम रहे हैं। क्या ये सम्भव नहीं है के हमारे ग्रंथो मे मिलावट की गई हो और मनगढ़न्त बातें जोड़ दी गई हो? ठीक उसी तरह जैसे शिवलिंग का अर्थ “शिव का प्रतीक”होता है को भगवान शिव के शारिरीक अंग से जोड़ कर देखा जाता रहा है। 33 कोटि यानी प्रकार के देवता को 33 करोड़ देवता माना जाता रहा है।
बॉलिवुड मे केवल हिन्दु सन्तो , पण्डितो को ही विलन के रूप मे दिखाया जाता रहा है। क्या किसी और धर्म के सन्तो ने धर्म परिवर्तन के अलावे कोई अन्य परोपकार किया है समाज का? अगर किया भी है तो उनके नाम पर धर्म परिवर्तन का भी रिकॉर्ड है। विदेशी धर्मो के किसी भी महान सन्त की जीवनी को उठा लिजिये उन्होने परोपकार के साथ साथ धर्म परिवर्तन अवश्य करवाया होगा। हिन्दू धर्म के सन्त हैं महर्षि दधीची जिन्होने ये सुनने मात्र से के उनकी हड्डियो से कोई अश्त्र बनाकर किसी राक्षस का वध हो सकता है, अपने प्राण त्याग दिये थे।हम अगस्त्य और पतंजलि को क्यों भूल जाते हैं जिन्होंने पूरी दुनिया को योग दिया? हम उन ऋषियों के बारे में क्यों भूल जाते हैं जिन्होंने आयुर्वेद दिया?बॉलीवुड हिन्दू धर्म के इन संतो के बारे में क्यों नहीं दिखाता है. बॉलीवुड को उन संतो के भी बारे में दिखना चाहिए जिनके परोपकार का प्रमुख उद्देश्य धर्म परिवर्तन है।
वसुधैव कुटुम्बकम यानि सारी दुनिया के लोग आपके कुटुंब हैं, सर्वे भवन्तु सुखिनः यानी सभी लोग सुखी रहे, सत्यमेव जयते, अहिंसा परमो धर्मः इत्यादि जैसे वाक्य किसी भी दूसरी भाषा में हैं ?क्या किसी भी दूसरे धर्म में ऐसी अवधारणा है ? अपने बच्चो को ये सिखाने वाला धर्म गलत कैसे हो सकता है? इसीलिए ये लोग जब भी हिन्दू धर्म के बारे में कुछ भी बकवास करे तो उनको इन सब बातों का भी अध्ययन करना चाहिए ।
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