दिल्ली दंगों की साजिश और षड्यंत्र की तफ्तीश जैसे जैसे आगे बढ़ती जा रही है , वैसे वैसे एक बार फिर से वही सब सच साबित होता जा रहा है जिसे बार बार कहा जाता रहा है यानि ,दंगों और मज़हबी फसादों के पीछे हमेशा ही समाज के कुछ सफ़ेद भेड़ (जो असल में भेड़ की खाल ओढ़े भेड़िए होते हैं ) की खतरनाक और नीच सोच , नफरत ही होती है | ये वो गिद्ध होते हैं जो इन दंगों को भड़का कर ,उनमें गिरी लाशों को नोच नोच कर अपना पेट और धंधा चलाते हैं |
हाल ही में समाचारों में आया कि अभी कुछ माह पूर्व ,राजधानी दिल्ली में साजिशन करवाए गए दंगों के पीछे सीताराम येचुरी , योगेंद्र यादव जैसे राजनेताओं और उमर खालिद और पूर्व निगम पार्षद ताहिर हुसैन (खालिद और हुसैन को गिरफ्तार कर चुकी है पुलिस ) जैसे कट्टर अलगाववादी सोच वाले जेएनयु के पूर्व छात्र नेता की सोच ,भाषा ,और व्यवहार , पेट्रोल को आग दिखाने जैसा था | हालाँकि दिल्ली पुलिस द्वारा दायर पूरक आरोपपत्र में , इन सबकी भूमिका का पूरा खुलासा नहीं हुआ है ,मगर पुलिस जांच में इन्हें भी चिन्हित तो कर ही दिया गया है |
दिल्ली पुलिस की इस जाँच से पहले ही बौखलाए और पुलिस को इस जांच से हटाए जाने की मांग करने वाले एक ख़ास गुट ने इस खबर के मीडिया में आते ही अपना तयशुदा रुदाली गान शुरू कर दिया है | इनका तर्क है कि ये सब तो अहिंसक आन्दोलनों और प्रदर्शनों का हिस्सा रहे कुछ बड़े नाम हैं जिनका दंगों से कोई लेना देना नहीं है | अच्छा जी , सच में क्या “Big Name or Big Shame ” |
इन सबको एक बार थोड़ा सा पीछे देखना चाहिए जहाँ , 1984 के सिक्ख दंगों में पुलिस द्वारा आरोपित और बाद में अदालत द्वारा सज़ा पाए सभी कांग्रेसी नेता , जगदीश टाइटलर , सज्जन कुमार , एच के एल भगत भी उस जमाने के कांग्रेस के इन वर्तमान में आरोपित नए नए पैदा हुए राजनेताओं से भी बड़े नाम और कद वाले थे | जबकि इन्हीं बड़े नामों के उकसावे पर कांग्रेसियों ने इंसानियत को शर्मसार करने वाली सब गिरी हुई हरकत की थी |
एक धड़ा , बार बार ये आरोप लगा रहा है कि फिर ऐसा है तो भाजपा के तेज़ तर्रार और निडर नेता कपिल मिश्रा को पुलिस ने क्यों बार बार क्लीन चिट दे दी | अदालत और और विधिक समूहों ने इस पर परोक्ष/प्रत्यक्ष टिप्पणी करते हुए उन्हें आईना दिखाते हुए कहा कि , आग के दोनों तरफ दो व्यक्ति दो अलग केन में कुछ लिए खड़े हों , और एक के हाथों में पेट्रोल और दूसरे के हाथों में पानी हो तो ,समाज और कानून का अपराधी किसे माना समझा जाएगा , ये अंदाज़ा लगाना सहज है |
कभी इस देश के संप्रभु और निष्पक्ष कानून के कारण पूर्व स्वतंत्रता का आनंद लेने वाले ये तमाम सफेदपोश भेड़िए , देश , समाज और शहरों को जला कर , नष्ट करके “लेके रहेंगे आजादी , लड़ के लेंगे आजादी ” की तख्ती टाँगे जिहाद कर रहे थे , और इनकी नियति इन्हें आज सचमुच ही इन्हें इस मोड़ पर ले आई है की अब कानून के शिकंजे और जेल तक से आजादी के लिए इन्हें न सिर्फ तरसना होगा बल्कि “कागज़ नहीं दिखायेंगे , कागज़ नहीं दिखाएँगे कहने वालों को अब सालों तक कागज़ों को दिखा दिखा कर ही ज़िन्दगी चलानी होगी |
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