हम सभी हर वर्ष चैत्र मास की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा या प्रथम तिथि को हिंदू नववर्ष मनाते हैं। भारी भूल और अज्ञानतावस आज भारत की हिंदू जनता 1 जनवरी को ही अपना नववर्ष मानने लगी है जोकि गलत है। 1 जनवरी को नववर्ष मनाना अंग्रेजी ईसाई संस्कृति का प्रतीक है। अंग्रेजी औपनिवेशिक काल के दौरान भारत के धर्म, अध्यात्म, कला और संस्कृति को भारी चोट पहुँचाई गई जिसका परिणाम हम सभी भुगत रहे हैं।

आज जहाँ अंग्रेजी ईसाई संस्कृति 2022 वाँ वर्ष मना रही हैं जिसे ईसा के जन्म से प्रारंभ किया गया था वही हम कलियुग का 5124 वाँ वर्ष मना रहे हैं अर्थात् कलियुग को आये हुये 5124 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। विक्रम संवत् भी ईसाई पंचांग से आगे है जो 2079 वर्ष पूर्ण कर चुका है अर्थात् हम हर मायने में पश्चिम से आगे है, हम उनसे श्रेष्ठ है और भारत का विश्व का गुरु हैं।

हमारे हिंदू नववर्ष मनाने के पीछे आखिर क्या कारण है आईये हम सब जानते हैं….. आज ही के दिन परमपिता ब्रम्हा जी ने सृष्टि की रचना आरंभ की थी; आज ही के दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक भी हुआ था और सम्राट युधिष्ठिर भी आज ही के दिन सिंहासनारूढ़ हुए थे। आज ही के दिन से सभी भारतीय संवत्सरों का शुभारंभ होता है । आज ही के दिन से वासंतेय नवरात्रि का आगमन भी होता है और आज के ही दिन महाराज चंद्रगुप्त द्वितीय और जिन्हें हम सम्राट विक्रमादित्य के नाम से जानते हैं उन्होंने शकों को पराजित कर विक्रम संवत् का शुभारंभ किया था।

हिंदू नववर्ष आस्था, उल्लास और उमंग का त्यौहार हैं इसे प्रत्येक हिंदू को मनाना चाहिए। यह वर्ष का प्रथम त्यौहार हैं। जिसमें हिंदूजन अपने घरों में भगवान का पूजन-अर्चन करते हैं और अपने घरों की छत में भगवा ध्वज लगाते हैं । आज के ही दिन से कार्यालयों और प्रतिष्ठानों में नववर्ष प्रारंभ होता है। हम सभी हिंदुओं को अपने धर्म, अध्यात्म, कला और संस्कृति पर गर्व होना चाहिए क्योंकि हम विश्व के सिरमौर है और सबसे आगे हैं।

 

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