त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत हिंदू धर्म का एक अविभाज्य अंग है । इनको मनाने के पीछे कुछ विशेष नैसर्गिक, सामाजिक, ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक कारण होते हैं तथा इन्हें उचित ढंग से मनाने से समाज के प्रत्येक व्यक्ति को उनके व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन में अनेक लाभ होते हैं । इससे पूरे समाज की आध्यात्मिक उन्नति होती है । इसीलिए त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत मनाने का शास्त्राधार समझ लेना अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
होली – होली भी संक्रांति के समान एक देवी हैं । षड्विकारों पर विजय प्राप्त करने की क्षमता होलिका देवी में है । विकारों पर विजय प्राप्त करने की क्षमता प्राप्त होने के लिए होलिका देवी से प्रार्थना की जाती है । इसलिए होली को उत्सव के रूपमें मनाते हैं ।
होली का त्यौहार – देश-विदेश में मनाया जाने वाला होली का त्यौहार रंगों के साथ उत्साह तथा आनंद लेकर आता है । इसे विभिन्न प्रकार से ही सही; परंतु बडी धूमधाम से मनाया जाता है । सब का उद्देश्य एक ही होता है, कि आपसी मनमुटावों को त्यागकर मेलजोल बढे !
होली पर अग्नि देवता के प्रति कृतज्ञता – होली अग्नि देवता की उपासना का ही एक अंग है । अग्नि देवता की उपासना से व्यक्ति में तेजतत्त्व की मात्रा बढने में सहायता मिलती है । होली के दिन अग्नि देवता का तत्त्व 2 प्रतिशत कार्यरत रहता है । इस दिन अग्नि देवता की पूजा करने से व्यक्ति को तेज तत्त्व का लाभ होता है । इससे व्यक्ति में से रज-तम की मात्रा घटती है । होली के दिन किए जाने वाले यज्ञों के कारण प्रकृति मानव के लिए अनुकूल हो जाती है । इससे समय पर एवं अच्छी वर्षा होने के कारण सृष्टि संपन्न बनती है । इसीलिए होली के दिन अग्नि देवता की पूजा कर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है । घरों में सुबह के समय पूजा की जाती है । सार्वजनिक रूप से मनाई जाने वाली होली रात में मनाई जाती है ।
होली मनाने का कारण – पृथ्वी, आप, तेज, वायु एवं आकाश इन पांच तत्त्वों की सहायता से देवता के तत्त्व को पृथ्वी पर प्रकट करने के लिए यज्ञ ही एक माध्यम है । जब पृथ्वी पर एक भी स्पंदन नहीं था, उस समय के प्रथम त्रेतायुग में पंच तत्वों में विष्णु तत्त्व प्रकट होने का समय आया । तब परमेश्वर द्वारा एक साथ सात ऋषि-मुनियों को स्वप्न दृष्टांत में यज्ञ के बारे में ज्ञान हुआ । उन्होंने यज्ञ की सिद्धताएं (तैयारियां) आरंभ कीं । नारद मुनि के मार्गदर्शनानुसार यज्ञ का आरंभ हुआ । मंत्रघोष के साथ सबने विष्णु तत्त्व का आवाहन किया । यज्ञ की ज्वालाओं के साथ यज्ञकुंड में विष्णु तत्त्व प्रकट होने लगा । इससे पृथ्वी पर विद्यमान अनिष्ट शक्तियों को कष्ट होने लगा । उनमें भगदड मच गई । उन्हें अपने कष्ट का कारण समझ में नहीं आ रहा था । धीरे-धीरे श्रीविष्णु पूर्ण रूप से प्रकट हुए । ऋषि-मुनियों के साथ वहां उपस्थित सभी भक्तों को श्री विष्णु जी के दर्शन हुए । उस दिन फाल्गुन पूर्णिमा थी । इस प्रकार त्रेतायुग के प्रथम यज्ञ के स्मरण में होली मनाई जाती है । होली के संदर्भ में शास्त्रों एवं पुराणों में अनेक कथाएं प्रचलित हैं ।
होली में परंपरा को नष्ट करने का प्रयास – धर्म शास्त्रों को समझकर उसके अनुसार त्योहार मनाया जाए तो इससे आध्यात्मिक लाभ होते हैं। आज के समय में जब वर्ष भर वनों की कटाई से जंगलों को साफ किया जा रहा है, पर्यावरणवादी और संगठन इस विषय पर आंखें मूंद लेते हैं। आज बड़े आयोजनों में हर दिन हजारों टन भोजन व्यर्थ होता है तब इन संगठनों का कहना होता है कि होली के दिन रोटी का दान करें, कचरे की होलिका जलाएं इत्यादि । वनों की कटाई को रोकने के लिए ये लोग वर्ष भर क्या करते हैं? गणेशोत्सव आए तो मूर्तियों का दान करें, दीवाली आए तो पटाखे न फोड़ें, शिवरात्रि आए तो पिंडी पर दूध ना चढाए आदि टिप्पणियां हिन्दू त्योहारों की कालावधि में की जाती हैं। इससे पता चलता है कि ये लोग अपप्रकार दूर करने के लिए नहीं बल्कि परंपरा को नष्ट करने का प्रयास कर रहे है । रंगपंचमी प्राकृतिक रंगों के साथ और पानी का दुरुपयोग किए बिना मनाएं। सामाजिक नुकसान कर रंग को बेरंग ना करें। पर्यावरण के अनुकूल, अनाचार से मुक्त; होली, धूलिवंदन और रंगपंचमी मनाकर त्योहारों का आनंद लें जो धर्मशास्त्र के अनुरूप हैं।
होली में हो रहे अनाचार – होली प्राचीन काल से ही हिंदुओं का एक बड़ा त्योहार है। अभी होली का रूप बदलकर एक प्रकार से भद्दा और घिनौना हो गया है। इस दिन कई प्रकार के अनाचार होते हैं जैसे चिल्लाना, गलियां देना, शराब पीना, अश्लील वर्तन इत्यादि । यह किसी भी प्रकार से हिंदू समाज के लिए योग्य नहीं है। होली में पिछले कई वर्षों से कुकर्म होते आ रहे हैं। ये अनाचार धर्म, संस्कृति और समाज के लिए हानिकारक हैं। सभी को त्योहारों में बुरी आदतों को रोकने और खुशी के साथ मनाने का प्रयास करना चाहिए। होली के लिए जबरदस्ती चंदा लेना, डरा-धमका कर लकड़ी इकठ्ठा करना आदि अनाचार बंद करना चाहिए।
खतरनाक कृत्रिम रंग का होली में उपयोग न करें – धर्मशास्त्र के अनुसार रंगपंचमी, रंगो से खेलते है; परंतु अधिकतर स्थानों पर होली या धूलिवंदन के दिन रंगों से खेलने की प्रथा शुरू हुई है। पूर्व काल मे होली में उपयोग होनेवाले रंग प्राकृतिक होते थे, परंतु अब प्राकृतिक रंगों के स्थान पर रासायनिक रंगों का बढ़-चढ़कर उपयोग किया जाता है और इससे सर्व सामान्य व्यक्ति के स्वास्थ्य को गंभीर हानि होने की संभावना बढ़ गई है। वर्ष 2001 मे टॉक्सिक लिंक और वातावरण नाम के कंपनियों को उनके संशोधन से यह ध्यान में आया है की, वर्तमान मे होली के रंग तीन प्रकार में मिलते हैं (पेस्ट, पाउडर और तरल के रुप में), ये तीनों शरीर के लिए हानिकारक हैं। एस्बेस्टस या सिलिका पाउडर से बने रंग त्वचा के लिए हानिकारक पदार्थ हैं। जेन्शियन वायलेट को पतले रंग में डाला जाता है, जिससे त्वचा का रंग बदलना और डर्मेटाइटिस नामक त्वचा रोग होने का खतरा बढ़ जाता है।
सद्भावना का मार्ग दिखाने वाला उत्सव है होली – होली एक ऐसा त्योहार है जो दुष्ट प्रवृत्तियों और अमंगल विचारों को नष्ट करके सद्भावना का मार्ग दिखाता है। दुर्भाग्य से, वर्तमान में इस त्योहार में कई भ्रांतियां घुस गई हैं; होली में जलाने के लिए अच्छे पेड़ों को काटना; लकड़ी, गोबर के कंडे आदि की चोरी करना, आने-जाने वाले लोगो से बलपूर्वक पैसे वसूल करना या उन पर गंदे पानी के गुब्बारे फेंक कर मारना, साथ ही उन्हें शरीर को हानि पहुंचाने वाले रंगों से रंगना, महिलाओं को देख अश्लील हाव-भाव व्यक्त करना, जोर से गाना बजाना, जुआ खेलना, शराब पीना और धूम्रपान करना। स्वार्थ भावना से वर्ष भर किये जाने वाले वनों की कटाई से जंगल और पहाड़ सूने हो गये है, वहीं ‘पर्यावरणविद’ जो इसे वर्ष भर होता देखते हैं, वर्ष में एक बार होली के त्योहार के दौरान नींद से जागते हैं। होली पर्व के महत्व को समझे बिना ही होली के त्योहार की शुरुआत होने के पूर्व से ही उनके आंशिक ज्ञान के आधार पर प्रबोधन प्रारम्भ कर देते है।
प्राकृतिक रंगों का प्रयोग करें।’ – लखनऊ के ‘ इंडस्ट्रियल टेक्नोलॉजी रिसर्च सेंटर’ के उपनिदेशक आधुनिक चिकित्सक मुकुल दास के अनुसार होली के दौरान उपयोग किए जाने वाले रंग अधिकांश रासायनिक के साथ-साथ अखाद्य जैसे कपड़ा, कागज और चमड़े जैसे पदार्थों से बने होते हैं। प्राकृतिक रंग का महत्व बताते समय डॉक्टर दास बोले, होली के समय ऋतु में बदलाव होने के कारण वातावरण मे हानिकारक असंतुलन निर्माण होते हैं। प्राकृतिक रंग अपने विशेष गुणों के कारण सूर्य के प्रकाश की सहायता से ऐसी विकृतियों को नियंत्रित करने में सक्षम होते हैं। इसके लिए रासायनिक रंगों के संकट से स्वयं को बचाने के लिए प्राकृतिक रंगों का उपयोग करना चाहिए।
DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.