आगजनी, तोड़-फोड़ , दंगे, मजहबी नारे, अगर यह सब आपको भी परिचित सा लगता है, तो अच्छी बात है, क्युकी,बहुत जल्द यह आपके पडोस में भी दस्तक देगा | क्यूंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, और धरमनिर्पेक्षता की सीमा यह है की एक समुदाय पूरे देश को बंधक बना सकता है, आपके आस्तित्व को चुनौती दे सकता है, आपकी आस्था को पैरों तले रौंद सकता है, और हमारे नेता लोकतंत्र के मंदिर में खड़े होकर कह सकते हैं की इस देश पर सबसे पहला हक मुसलमान का है क्यूंकि देश धर्मनिरपेक्ष है |

हमारे संविधान का 42वां संशोधन, देश के लिए एक अभिशाप है | दिल्ली, लखनऊ, अलीगढ, के बाद अब बेंगलुरु, अगर आपक्को लगता है यह जहालत केवल एक सोशल मीडिया पोस्ट के लिए है तो हमें ज़मीन में धसा अपना सर बहार निकल लेना चाहिए | यह मामला किसी अनुचित टिप्पणी का नहीं है बल्कि ताकत दिखने का है |

पर इसमें गलती उनकी नहीं है, गलती हमारी है, क्यूंकि हमें समाज में इतना सहिष्णु दिखना है की हम किसी के सामने अपनी पहचान छुपाने को भी तयार हो जाते हैं |  क्या हम हमेशा से ऐसे थे? या हमें ऐसा बनाया गया है? जिनका आज़ादी के लिए संघर्ष केवल तब शुरू हुआ जब अंग्रेज आये, वोह हमें छाती ठोक कर कहते हैं “किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़े है” |

यह संघर्ष वापिस इस्लामिक राज़ स्थापित करने का था, न की एक धर्मनिरपेक्ष देश बनाने का, यदि ऐसा न होता तो धर्म के आधार पर विभाजन नहीं करना पड़ता|

यह हमसे सड़क पर भी लड़ेंगे और वैचारिक तौर पर न्यायलय में भी | क्यूंकि यह अच्छी तरह से जानते हैं की हम जात पात में बंटे हैं, आर यही इनकी सबसे बड़ी ताक़त है |  

वो धरमनिर्पेक्षता जो हमारी संस्कृति में है, जिसने कभी किसी को संप्रदाय के नाम पर रोका नहीं, उसे अपनी कमजोरी कबतक बना रहने देना है? भाईचारा रहना अच्छी बात  है, पर किस कीमत पर?

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