रोहित सरदाना जी आप बहुत याद आएँगें! आपकी सरलता उससे भी अधिक याद आएगी!
मेरे जैसे अदना लेखक के लेख पर आपकी यह टिप्पणी कि ” आप छाए हुए हैं- चहुँ ओर’ मेरे वैशिष्ट्य को कम आपकी महानता एवं बड़प्पन को अधिक दर्शाता है।
आपके ऐसे बहुत-से संदेश अब मेरे जीवन की पूँजी हैं। अब स्वयं को बस इतना दिलासा देना है कि जाने वाले चले जाते हैं, पर उनकी यादें रह जाती हैं! जो कभी मधुरिम स्मृतियाँ बन तो कभी टीस बन भीतर उठती और पिराती हैं।
आप सदैव राष्ट्रीय भाव से ओत-प्रोत पत्रकारिता को जीते रहे। आपका अध्ययन विद्या-भारती के विद्यालय में हुआ। आपके पूज्य पिताजी आवासीय सरस्वती विद्या मंदिर के प्राचार्य रहे। आपके दिल में सदैव यह बात कचोटती थी कि लोग हिंदी की खाते हैं, पर अंग्रेजी की गाते हैं।
मुझे अच्छी तरह याद है कि आप जब मेरे आमंत्रण पर मेरे संस्थान वार्षिकोत्सव में मुख्य अतिथि बनकर आए थे तो आपसे पूर्व के वक्ता अंग्रेजी में व्याख्यान देकर उतरे। सबको यही लग रहा था कि माहौल के अनुरूप आप भी अंग्रेजी में बोलेंगें। पर आपने यही से शुरु किया कि चूँकि यहाँ का माहौल कुछ अधिक ही अंग्रेजीमय है, इसलिए मैंने तय किया कि मैं हिंदी में ही बोलूँगा। यह मैंने इसलिए भी तय किया कि मैं हिंदी की खाता हूँ, हिंदी ने मुझे पहचान दी है, हिंदी के कारण आपने मुझे यहाँ मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया है। चूँकि कार्यक्रम देर तक खिंच गया था और आप अंतिम वक्ता थे। आपने 11.30 बजे से 11.50 तक सभा को संबोधित किया, पर मजाल क्या कि कोई अपनी जगह से उठ जाए! कार्यक्रम में एक केंद्रीय मंत्री भी थे। लोगों को उनका व्याख्यान भले कम याद रहा हो, पर रोहित भाई की बातें दिल तक पहुँची। वैसे भी अच्छे दिलों से निकली बातें दिलों तक पहुँचती हैं।
आप दो दिन हमारे यहाँ रहे। जब मैं आपको लंच के लिए जोधपुर के उमेद पैलेस के बाद वहाँ के सबसे बड़े होटल ताज हरि महल लेकर गया तो बोले कि प्रणय जी ‘यहाँ कोई अच्छा राजस्थानी खाना खिलाने वाला स्थानीय होटल नहीं है, वहीं ले चलिए।’ फिर हम उन्हें ‘जिप्सी’ ले गए। प्रायः आयोजकों को लगता है कि अतिथियों को दी जाने वाली भेंट भी कोई बड़ी आकर्षक वस्तु होती है। बहुतों के लिए होती भी है। पर रोहित भाई जाते हुए वह ‘भेंट’ लेकर नहीं गए। न ही इसे लेकर कोई त्याग जैसा ढिंढ़ोरा पीटा। मैंने जब-जब उन्हें कॉल किया कि भाईसाहब आपका मोमेंटो आप तक पहुँचाना है। हँसकर यही बोलते रहे, अरे, कहीं रखा ही है, ले लेंगें, फिर कभी। अंतिम समय तक संपर्क में रहे। अभी रामनवमी पर उनसे बातचीत हुई थी। कुशल-क्षेम पूछने पर बोले राम की कृपा है। अब उसी कृपालु, करुणानिधि राम के पास चले गए। कदाचित ईश्वर को भी अच्छे लोगों को बुलाने की शीघ्रता रहती है। पर रोहित भाई राष्ट्रीयता व सनातन संस्कृति का जो अलख पत्रकारिता जगत में जलाकर गए हैं, उसे न बुझने देना ही उनके प्रति हमारी सच्ची और अंतिम श्रद्धांजलि होगी।??
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