राजनीति की भेंट चढ़ा राष्ट्रवाद… बंगाल ने चुनाव में राजनीतिक दलों के कई रूप दिखाए ।।
पिछले तीन-चार वर्षो से या यूं कह दे कि लोकसभा चुनाव 2019 से बंगाल की वस्तु स्थिति को लेकर राजनीतिक उठापटक को लगातार एक आम नागरिक होने के नाते दूर से देख रहे थे और महसूस कर रहे थे कि किस प्रकार रथयात्रा के नाम पर नवरात्रि पूजन के नाम पर नमाज के नाम पर रोहिंग्या के नाम पर और बांग्लादेश से अनाधिकृत रूप से हिंदुस्तान की धरती पर आए हुए गैर नागरिकों के नाम पर राजनीति चरम सीमा पर उछल उछल कर बाहर आ रही थी राजनीतिक दलों की माने तो टीएमसी यानी ममता बनर्जी के नेतृत्व में अपनी एक अलग विरासत को लेकर आगे बढ़ रही थी जिसमें अवसरवादी ता के सारे के सारे लक्षण दिखाई दे रहे थे जहां लगा अल्पसंख्यकों के वोट हैं वहां अल्पसंख्यकों की भावनाओं को साथ में लेने का प्रयास ममता बनर्जी द्वारा किया गया जहां लगा हिंदुत्व का वोट बैंक आगामी चुनाव में असर कर सकता है वहां हिंदुत्व के वोट बैंक को साधने का प्रयास भी ममता बनर्जी द्वारा किया गया वहीं सीपीएम अपना एक अलग राग अलाप ते हुए बंगाल में अपनी व्यवस्था खड़ी करने में लगा हुआ था
वहीं दूसरी ओर विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक पार्टी तथा वर्तमान में पिछले 7 वर्षों से केंद्र की सत्ता में काबिज भारतीय जनता पार्टी हिंदुत्व राष्ट्रवाद सर्वधर्म सर्व भाव को लेकर आगे बढ़ने का प्रयास करती नजर आई राजनीतिक दलों का बस एक ही लक्ष्य था कैसे भी करके बंगाल की सत्ता में अपने पांव जमा सके इस बार जो माहौल राजनीतिक दलों तथा मीडिया जगत द्वारा बनाया जा रहा था उसमें हिंदुस्तान का एक आम नागरिक पूर्ण रूप से इसमें था और उसे लग रहा था कि बंगाल की राजनीति में कुछ बहुत बड़ा परिवर्तन होने की संभावना 2021 के विधानसभा चुनाव में रहेगी तख्तापलट होने की संभावना को ध्यान में रखते हुए सब अपने-अपने आंकड़े पेश कर रहे थे परंतु आज जब परिणाम आया तो उसमें यह बात साफ साफ देखने को मिली कि ममता बनर्जी ने क्लीन स्वीप करते हुए सत्ता अपने हाथ में रखी और 200 से ज्यादा सीटों पर विधायकों को जीता कर सरकार बनाने की ओर अग्रसर हो रही है मानते हैं कुछ पार्टियों ने अपना अस्तित्व खो या कुछ अपना अस्तित्व में आया लेकिन आज का विषय इस बात की ओर लेकर है सत्ता में आना नहीं आना यह तो जीत और हार के 1 पहलू है परंतु पिछले 1 वर्ष के दौरान जिस प्रकार से राजनीतिक व्यवस्थाओं में धर्म को आड़े हाथ लिया गया जातियों को आड़े हाथ लिया गया कौम के साथ-साथ आम व्यक्ति की व्यवस्थाओं को भी खतरे के निशान से ऊपर रखकर इन राजनीतिक दलों ने कहीं ना कहीं बहुत बड़ा अपराध किया है यह बात अब हिंदुस्तान के प्रत्येक आम नागरिक को समझ में आ रही है या देश और पूरा विश्व एक तरफ कोरोना काल जैसी महामारी से जूझ रहा है उस स्थिति में बंगाल जैसे बड़े प्रदेश में केंद्र सरकार तथा निर्वाचन आयोग द्वारा सरकारी संसाधनों का बेजा उपयोग करते हुए चुनाव की नैया पार लगाई इससे यह समझ में आता है की हिंदुस्तान की व्यवस्था में हिंदुस्तान के व्यक्तियों की जान से बढ़कर अगर कोई वस्तु है तो वह है चुनाव चुनाव को प्राथमिकता देने वाले यह राजनीतिक दल कहीं ना कहीं आम आदमी की जान से खेलने से बाज नहीं आ रहे थे जहां बंगाल के क्षेत्र में चुनाव के दौरान महज पांच से 10% लोग रिपोर्ट करवाने के बाद संक्रमित पाए जा रहे थे वही वह आंकड़ा चुनाव के बाद 70 से 80% पहुंचना बहुत बड़ी चिंता का विषय है और इसे एक चीज समझ में आई कि आजाद हिंदुस्तान के अंदर मानव अधिकारों को किस प्रकार से दरकिनार करके राजनीतिक दल अपनी सत्ता को भोगने के लिए आम व्यक्तियों के जान की बाजी लगाने से भी बाज नहीं आते राजनीतिक व्यवस्थाओं में लवरेज एक एक व्यक्ति इन राजनीतिक दलों की पर्ची दीयों को समझने में कहीं ना कहीं भूल तो करता है और मजे की बात देखिए ना केवल भूल करता है बल्कि जवाब देने से भी कतराते है आज जब परिणाम आम व्यक्तियों में ज्यादातर लोगों की उम्मीदों के खिलाफ आया तब एक बात बाहर निकल कर समझ में आ रही है कि इन विकट परिस्थितियों में जहां कोरोना काल से पूरा विश्व जूझ रहा है रोज लाखों की संख्या में लोग मर रहे हैं उसी स्थिति में देश के सरकारी संसाधनों का बेजा दुरुपयोग करके चुनाव करवाना इतना आवश्यक था कि आज चुनाव हो जाने के बाद भारी मात्रा में भारी संख्या में जिस प्रकार से कोरोना काल के संक्रमित निकल कर बाहर आ रहे हैं इलाज के अभाव में, ऑक्सीजन के अभाव में, वेंटिलेटर के अभाव में, स्वास्थ्य की सुविधाओं के अभाव में, जिस प्रकार से व्यक्ति अपनी जान गवा रहा है उससे महज एक चीज समझ में आ रही है और वह यह है कि आम व्यक्ति को खुद बागडोर अपने हाथ में लेनी पड़ेगी अपनी सुरक्षा को लेकर खुद को सचेत होना पड़ेगा खुद को आगे आना पड़ेगा एक आम व्यक्ति खुद आगे आकर ही अपनी सुरक्षा कर सकता है अन्यथा सरकार की नजर में आप महज एक आंकड़ा है आंकड़े के अलावा आपके जीवन का कोई भी मूल्य सरकार की नजरों में नहीं है
इस आर्टिकल के माध्यम से हम सरकार की कार्यशैली पर सवाल नहीं उठा रहे हैं बल्कि हम विषय पर इस विषय पर गहन चिंतन करते हुए लोगों को सोचने पर मजबूर कर रहे हैं कि वह खुद अपने गिरेबान में झांके और देखें कि सत्ता जरूरी है या मानव का जीवन सत्ता आती है जाती है लेकिन मानव का जीवन सिर्फ और सिर्फ एक बार मिलता है और उसे सरकार की किसी भी गलती की वजह से अगर कोई खोता है तो यह हिंदुस्तान ही नहीं किसी भी देश की सत्ता यह सफलता है और ऐसे सफलता का आगामी दिनों में बहुत नकारात्मक प्रभाव देखने को मिल सकता है इस बात को समझना होगा तभी हम एक विकासशील राष्ट्र की कल्पना कर सकते हैं
बात को लेकर हिंदुस्तान की राजनीति में एक नया पर्दाप्रण और एक नई व्यवस्था देखने को मिली थी अब कहीं ना कहीं लग रहा है कि राष्ट्रवाद भी राजनीति की भेंट चढ़ गया है और एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने के अलावा इन राजनीतिक दलों के पास कोई विशेष मुद्दा नहीं है जिस मुद्दे को लेकर चुनाव लड़े सरकार चला रही राजनीतिक दल के खिलाफ विपक्षी दल के बयान ही कहीं ना कहीं सताती आने के हथियार हैं इसे आम व्यक्ति जितना जल्दी समझ लेगा उतना जल्दी सत्ता लोलुपता में पूर्ण रुप से डूबी हुई इन राजनीतिक दलों को अपनी औकात और हैसियत का पता चल जाएगा हिंदुस्तान के इस खूबसूरत से लोकतंत्र के अंदर लोकतांत्रिक तरीके से कोई राजनीतिक दल कार्य नहीं करता है उसे उठाकर फेंकने का समय आ गया है केवल सत्ता के लिए कानून बनाना और उन कानूनों का दुरुपयोग करते हुए सरकारी संसाधनों का नुकसान कराना हिंदुस्तान की जनता किसी भी रूप में स्वीकार नहीं करेगी
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