अभी कुछ दिनों पहले ,तथाकथित रूप से पशु कल्याण के लिए कार्य करने वाली संस्था पेटा ने अमूल इंडिया को नसीहत भरा पत्र लिखते हुए गाय भैंस के दूध के विकल्प के रूप में सोयाबीन के कृत्रिम दूध का उत्पादन करने की सलाह दी थी तथा ये भी दावा किया था कि सोया दूध गाय भैंस के दूध से गुणवत्ता और स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से ज्यादा बेहतर है जिसे सिरे से नकारते हुए अमूल इंडिया के प्रमुख ने PETA को आईना दिखा दिया था। इस पत्र में PETA ने अमूल इंडिया को NESTLE का उदाहरण देते हुए उसका अनुकरण करने की सलाह भी दी थी।
अभी इस विवाद को ज्यादा समय बीता भी नहीं है कि खुद नेस्ले ने अपनी स्वीकारोक्ति में माना कि भारत में और विशेषकर बच्चों में बेहद लोकप्रिय हो चुके मैगी नूडल्स स्वास्थय के लिए कम से कम लाभदायक तो कतई नहीं है। और इतना ही नहीं नेस्ले ने अपनी आंतरिक रिपोर्ट में खुद ही ये स्वीकार किया है कि न सिर्फ मैगी , किटकैट बल्कि इस जैसे अन्य बहुत सारे उत्पाद भी वैश्विक स्वास्थ्य मानकों पर खरे नहीं उतरते हैं।
बात यहीं तक सीमित नहीं रही है कम्पनी ने ये भी माना है कि अभी तो ये स्वास्थ्यवर्धक नहीं ही हैं भविष्य में भी कभी ये उत्पाद स्वास्थ्य के लिए लाभदायक नहीं बनाए जा सकते फिर चाहे इनमें सुधार के लिये कितने ही ने प्रयोग और बदलाव कर दिए जाएं।
अब मुद्दे की बात ये है कि जिस कंपनी के उत्पादों , चाकलेटों आदि को PETA अमूल इंडिया के ऊपर वरीयता और तरजीह दे रही थी उसने तो खुद ही सारा सच कबूल लिया तो क्या अब पेटा अपनी इस साजिश का भंड़फोड़ होने के बाद सार्वजनिक रूप से माफ़ी माँगेगी या फिर अपने षड्यंत्रों और टूलकिट की दूकान यूँ ही पूरी बेशर्मी से चलाती रहेगी। ???
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