निष्ठा और विश्वास आप जैसों के कारण अर्थ पाता है। हमें आप पर उतना ही अटूट विश्वास है, जितना हिंदू हृदय सम्राट स्वर्गीय श्री अशोक सिंहल जी पर था। आर.के पुरम स्थित कार्यालय में मेरा जब-जब आपसे मिलना हुआ, आप त्याग एवं साधना की प्रतिमूर्त्ति लगे। उस महा तपस्वी व्यक्तित्व स्वर्गीय श्री अशोक सिंहल जी से आपने मुझे दो बार मिलवाया। उस दिव्यात्मा से मिलकर केवल मेरे ही नहीं, मेरे पुरखों के भी धन्यभाग्य जाग उठे। अहा! कैसा अद्भुत व्यक्तित्व था उस पुण्यात्मा का! कदाचित आकाश के देवता भी उसकी विराटता और निस्पृहता पर पुष्प-वर्षा करते होंगें!

ऐसे तपस्वी ने आप जैसे (चंपत राय) महायोद्धा को चुना और तराशा है। वह सौ फ़ीसदी सोना ही होगा! बिलकुल आग में तपकर निखरा और दमका सोना!

पल-पल में निष्ठा, आस्था और विश्वास बदलने वाले मतिभ्रष्ट हिंदू-वीरों कम-से-कम मित्रों की नहीं तो शत्रुओं की समझ तो रखो! वे हँसते हैं तुम पर!

ऐसी दुर्बल और लिजलिजी-पिलपिली निष्ठा के बल पर पूरी दुनिया में ताक़त और तलवार के बल पर छा जाने वाली शक्तियों से लड़ना चाहते हो!

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी का तराना गाने वाले रट्टू तोताओं! यदि यही हस्र रहा तो जैसे पाकिस्तान-बांग्लादेश-अफगानिस्तान में आज तुम्हारी एक बस्ती नहीं दिखती, वैसे भारत में भी एक नहीं दिखेगी! हस्ती क्या बस्ती के अवशेष भी शेष नहीं रहेंगें। पहले अपनी बस्ती बचाओ , फिर हस्ती की सोचना!

सेनानायक चुनने से पूर्व जाँचों-परखो, ठोक-बजाकर स्वीकार करो! पर एक बार जब स्वीकार लिया तो फिर आर-पार के लिए तैयार रहो!

विभाजित मन से युद्ध में उतरने वालों की हार निश्चित होती है। द्वंद्व और दुविधाग्रस्त मन कवि-चिंतक-विचारक-दार्शनिक हो सकता है, योद्धा नहीं! जो कवि-चिंतक-विचारक-दार्शनिक समय का दुर्धर्ष योद्धा बन पाया, उसके मन में कोई द्वंद्व नहीं था, कोई दुविधा नहीं थी, उसका मन संकल्प-विकल्प में बंटा नहीं था। उसने डंके की चोट पर कहा -‘एक भरोसो, एक बल, एक आस, विश्वास” उसने दिल्ली के सल्तनत को चुनौती देते हुए कहा- ”तुलसी सरनाम गुलामु है राम को, जाको, रुचै सो कहै कछु ओऊ।” उसने सारे दुनियावी आकर्षणों को ठोकर मारते हुए कहा-‘मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै’ उसने महलों और राजसी ठाठ-बाट को परे धकेलते हुए कहा- ‘मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई।” है ऐसी निष्ठा! यदि नहीं तो तुम्हारी हार, तुम्हारी मृत्यु निश्चित है। जगा सको तो इस हनुमान-भाव को अपने भीतर जगाओ, यदि पा सको तो ऐसी पात्रता पाओ- “राम काज कीन्हे बिनु मोहि कहाँ बिश्राम।”

समय का सारथी और महासमर का महायोद्धा बनना है तो निष्ठा चुनो, अखंड निष्ठा! प्राणों का दीपक जलाओ! निष्कंप दीपक! स्वयं समिधा बनो और स्वयं की आहुति दो!

बात-बात पर रोने-पीटने, अपनों को ही दुत्कारने वाली कौम पर दुनिया हँसती है। उनका उपहास उड़ाती है!!

बंद करो यह पाखंड! जाओ उनके पक्ष में खड़े हो जाओ, श्रीराम का नाम जिनके लिए गाली है! जाओ उनके पक्ष में खड़े हो जाओ, जो कल तक हमसे श्रीराम के होने का सबूत माँगते थे, जाओ उनके पक्ष में खड़े हो जाओ, जो श्रीराम को मिथक मानते रहे!

और यदि साथ आना है तो मन-प्राण से आओ! कुछ दिनों के लिए केवल एक संकल्प, एक विकल्प चुनकर आओ! पक्ष चुनो और उसके लिए प्राणों की बाजी लगाओ और वह पक्ष-विकल्प-संकल्प है- जो प्रभु राम का नहीं, वह हमारे किसी काम का नहीं। जोर-जोर से कहो, हर बार कहो, बारंबार कहो-

जो प्रभु राम का नहीं, वह हमारे किसी काम का नहीं!!

यदि सचमुच आपको मित्रों-शत्रुओं की समझ हो तो साझाकरना न भूलें।

प्रणय कुमार

9588225950

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