आजकल किसान उबल रहे हैं। मुझे नहीं लगता कि अपना कृषि कार्य छोड़कर किसान को उबलने की छुट्टी कैसे मिलती है। खैर किसान उबल रहे हैं और लगभग वही उबल रहे हैं जहां भाजपा का शासन है । मतलब अगर केंद्र के वह तीन काले कानून निरस्त नहीं भी हो सिर्फ राज्यों में गैर भाजपाई सत्ता आ जाए तो किसानों में उबाल कम हो जाएगा। आपको ही कुछ अजीब नहीं लगता कि मुजफ्फरनगर में किसानों की पंचायत हो रही है परंतु मुजफ्फरपुर में नहीं , करनाल में किसान जुट रहे हैं परंतु कोलकाता में नहीं या कर्नाटक में भी किसान परेशान हैं परंतु केरल में नहीं । मतलब ये सिलेक्टेड वाला उबाल बहुत कुछ कह जाता है । आखिर क्या वजह है कि लोकसभा क्षेत्र देख देख कर किसानों का गुस्सा बढ़ता है? अंग्रेजों ने काले कानून लागू किए तो उसके खिलाफ विद्रोह हुआ, हर जगह विद्रोह हुआ परंतु जब भाजपा नीत केंद्रीय सरकार ने त काले कानून लगाएविद्रोह रुक रुक कर बोला आखिर क्यों जब यूपी दिल्ली के बॉर्डर पर किसान आंदोलन टिकैत की आंसुओं में बह रहा था उस वक्त सत्ता की तीव्रता को क्या हुआ कि सत्ता किंग की जलती हुई मशाल अचानक भीगी हुई फुलझड़ी बन गई और लगभग बुझता हुआ चिराग आज जंगल की आग बन गया।
करनाल में अगर एक एसडीएम अपने मातहतों को भीड़ नियंत्रित करने का कोई गुर बता रहा था तो उसकी रिकॉर्डिंग किसने की और कैसा बेवकूफ अधिकारी कि वह तो निर्देश दे रहा है उसी का एक मातहत स्टाफ उसकी वीडियो बना रहा है और ये बात उसे पता भी ना चले ।
मतलब वही शेर कि
इस सादगी से कौन न मर जाए ए खुदा
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं ।।
मतलब आका कह रहे हैं कि किसानों को रोक दो नौकर हुकुम बजा रहा है और आका का एक चमचा उस गोपनीय योजना का वीडियो बना रहा है जो वायरल भी हो रहा है ।
अब पता चला है कि एसडीएम साहब लंबी छुट्टी पर जा चुके हैं। और किसानों की एक बात मान ली गई है कि किसानों पर लाठी चार्ज करने की योजना बनाने वाला एसडीएम आज लगभग सस्पेंड कर दिया गया है । मतलब क्या एसडीएम का नियोजन काला कानून था ?
आप भी मानेंगे कि किसी भी ब्यूरोक्रेट को ऐसा आदेश देने का अधिकार तब तक नहीं मिल सकता जब तक कि उसके आका की यह ख्वाहिश ना हो । दरअसल ब्यूरोक्रेट्स राजनैतिक हॉट एयर बैलून पर रखे हुए वे फालतू आइटम्स है जिन्हें जरूरत के आधार पर नीचे फेंका जा सकता है ।
मजबूरी यह है कि किसान भी वही आइटम है और उन्हें भी कोई चला रहा है । कोई तो इस भीड़ को बता रहा है कि उसे कब कहां और कैसे काम करना है। यह सच है कि ना तो सारे आंदोलनकारी स किसान हैं और ना सारे किसान आंदोलनकारी। किसान होना तो एकदम अलग है लगभग उसी तरह जैसे रेलवे के कर्मचारी राज्य पुलिस या सैनिक आदि आदि जो २४ घंटे 7 दिन काम में जुटा हुआ जो आपके सुख के लिए और आपके सुखद भविष्य के लिए अपना वर्तमान झोंक देता है पर ये किसान तो अपने भविष्य के लिए आपका वर्तमान झोंक रहे हैं । इन्हें तो पता भी नहीं है कि इनके विद्रोह की वजह क्या है । ये क्यों उबल रहे हैं ?
क्योंकि अभी तो भाजपा का शासन मुझे एक पहाड़ की तरह दिखता है जिसके इस तरफ तो कृषक असंतोष की बारिश हो रही है पर अब दूसरी तरफ असंतोष का अकाल है और संतोष की हल्की हल्की हवा चल रही है । वृष्टि छाया क्या होती है , जानते हैं ना ।
इस संदेह से भी राज्य सरकारों को बरी नहीं किया जा सकता है जिनके शासन क्षेत्र में किसानों का विप्लव उबल रहा है कि कहीं राज्य की जनता का ध्यान हटाने के लिए ही सरकारे खुद आंदोलनों को अंदर से हवा दे रही है ताकि जनता इसी में उलझी रहे और अपने मूल मुद्दे भूल जाए क्यों कि यह सच है कि प्रजातंत्र में जनता की याददाश्त बड़ी कमजोर होती है।
तब तक जय जय।।
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