सनातन की सरलता वास्तव में काइयाँ लोगों के लिए क्रीड़ा भूमि बन जाती है। इसकी सरलता का प्रकाश दुनिया भर में पहुंचाने के लिए कभी कोई स्वामी विवेकानंद , स्वामी योगानंद , स्वामी रामतीर्थ और कई संत हृदय व्यक्तित्व पूरे विश्व में जाकर इसे फैलाते रहते हैं तो कभी आचार्य रजनीश जैसे तर्क वादी अपने तर्कों से सनातन के प्रतिमानों की कभी तो भूरि भूरि प्रशंसा करते हैं और कभी-कभी उस की ऐसी तैसी भी करते रहते हैं परंतु कुछ ऐसे लोग जो धर्म का धंधा बनाना चाहते हैं या खुद को धर्ममूर्ति प्रदर्शित करना चाहते हैं वे इसका फायदा उठाते हैं। इस शृंखला में जो नाम आएंगे उसमें आसाराम, राम रहीम ,रामपाल, नित्यानंद आदि स्वयंभू धर्मध्वजी हैं जो खुद को इस कलयुग में धर्म रक्षक मानते हैं जैसे द्वापरयुग में वासुदेव पौण्ड्रक । ये लोग अपना एक कम्यून बनाते हैं, अपने समर्थक या चापलूस पैदा करते हैं , कभी-कभी धर्म का उत्थान भी करते हैं परंतु अधिकांश मामलों में धर्म की मान्यताओं को धूलि धूसरित हीं किया करते हैं। इसके बाद की कोटि है उन लेखकों की जो पुराणों , उपनिषदों और कथानकों की अपनी निजी मीमांसा करते हैं। उनकी उस मीमांसा में धर्म के तत्वों का संरक्षण होने के बदले उनकी निजी ज़िद और रूढ़िवादिता का अंश ज्यादा रहता है , लगभग उसी प्रकार जैसे वामपंथी इतिहासकार और बुद्धिजीवी भारतीय वेदों पुराणों और उपनिषदों की अपनी मनचाही व्याख्या करते हैं।
और उसी कड़ी में है हमारे नए भाष्यकार देवदत्त पटनायक। लगभग एक हफ्ता हुआ होगा उन्होंने दैनिक भास्कर की रविवासरीय सप्ताहिकी में एक आलेख लिखा था जिसमें उन्होंने यह घोषित किया कि कुंती को मंत्र द्वारा नियोग के लिए किसी भी देवता को मात्र तीन बार आह्वान करने का अधिकार था और उसने उसी अधिकार का प्रयोग करके ३ पुत्र प्राप्त किए। उसी क्रम में पांडु के अनुरोध पर कुंती ने माद्री को भी वह मन्त्र दिया । माद्री ने उन मंत्रों द्वारा अश्विनी कुमारों का आह्वान किया और दो पुत्रों की माता बनी ।उसके बाद कुंती ने फिर से मंत्र देने से इनकार कर दिया। देव दत्त पटनायक ने यहां पर कुंती और माधुरी में सौतिया डाह दिखाने की कोशिश की है। जबकि अगर महाभारत को पढ़ें तो पांडु की मृत्यु के बाद जब कुंती ने सती होने की इच्छा प्रकट की तो माद्री ने उसे रोका और कहा कि मैं इतने बच्चों के साथ समान अपनत्व नहीं दिखा पाऊंगी या उचित व्यवहार करने में सक्षम नहीं हूँ इसलिए मुझे सती होने की अनुमति दी जाए और आप पांचों पुत्रों की माता बनकर उनका संरक्षण करें।
यक्ष युधिष्ठिर संवाद में भी यह वर्णित है कि एक भाई को जिलाने का वरदान पाने पर युधिष्ठिर ने सहदेव या नकुल में से किसी एक को जीवित करने का वरदान यक्ष से मांगा।
क्या इन घटनाओं में आपको कुंती और माद्री के बीच सौतिया डाह दिखता है?
पता नहीं बाबू देवदत्त को यह ज्ञान कहां से आया कि माद्री और कुंती में सौतिया डाह था ।
अगली बात ये है कि अगर कुन्ती को वरदान का सिर्फ तीन बार प्रयोग करना था तो कर्ण की उत्पत्ति को जोड़कर कुंती ने तो ४ बार प्रयोग कर लिया।
अब यह माना जाए कि देवदत्त जी को गणित का भी ज्ञान नहीं है।
एक नए चैनल की वजह से देवदत्त ने अपने आपको सनातन का सूबेदार मान लिया है पर मुझे लगता है कि अगर वह सनातन के ग्रंथों की यही व्याख्या करता रहा तो उसका नाम देवदत्त से बदल कर दैत्य दत्त हो सकता है।
शायद आपको पता हो कि संस्कृत व्याकरण सिखाने के क्रम में संज्ञा के रूप में देवदत्त का प्रयोग बड़ा कॉमन जैसे ” सक्तून पिब देवदत्त”।
मेरा भी यही विचार है कि मैं आर्य देवदत्त पटनायक से कहूं कि आप सनातन के ग्रंथों का शील भंग करना छोड़िए और सत्तू का सेवन कीजिए। आपके कुविचारों की गैस समाप्त होगी।
शायद व्याकरण के पन्नों पर आपके लिए ही लिखा गया है…
” सक्तून पिब देवदत्त”।
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