मिडिया लोकतंत्र के पाँच प्रमुख स्तम्भों में से एक है। लेकिन यह अपने दायित्त्व को निभाने में पूर्णतया असफल ही रहा है। अधिकांश समय इसका अपना एक एजेंडा रहता है, जिसको पूरा करने के लिए सभी नैतिकताओं को अनदेखा कर दिया जाता है। हाल ही में इसका एक ज्वलंत उदाहरण हमे देखने को मिला जब विश्व प्रसिद्ध पब्लिशिंग हाउस ब्लूम्सबरी ने २०२० के दिल्ली दंगों पर लिखी गयी पुस्तक “दिल्ली रायट्स-2020: द अनटोल्ड स्टोरी” के प्रकाशन को रद्द कर दिया। इसका एक मात्र कारण था की ये लोग सच को छुपाना चाहते हैं और “प्रिंट इट टू इंप्रिंट इट” तकनीक का उपयोग कर अपने पूर्वनिर्धारित एजेंडा को ही परोसना चाहते हैं। सम्भवतया यह पुस्तक दिल्ली में २०२० में हुए भीषण दंगों में मुस्लिम कट्टरपंथियों के कारनामो को उजागर करती जो की मीडिया को बर्दाश्त नहीं हो पाता।
इस घटना ने मुझे न्यूयोर्क प्रेस कारपोरेशन में कार्यरत उस समय के बड़े पत्रकार जॉन स्विंटन के भाषण की याद दिला दी जो उन्होंने 1880 अपने सेवानिवृत समारोह के रात्रि भोज में दिया था। मिडिया की स्थिति पर इससे अधिक रुचिकर और सटीक टिपण्णी मेने और कही नहीं सुनी। उन्होंने कहा,
“विश्व इतिहास में अमेरिका में आज ‘स्वतंत्र प्रेस’ जैसा कोई शब्द नहीं है। ये आप भी जानते हैं और में भी। आपमें से कोई ऐसा नहीं है जो अपने विचारों को ईमानदारी से व्यक्त कर सके और यदि आप ऐसा करते हैं तो आपको पता है की यह समाचार पत्र में छपेगा ही नहीं। जिस समाचार पत्र के लिए मैं काम करता हूँ वह प्रति सप्ताह अपनी ईमानदार राय अख़बार में न व्यक्त करने के लिए मुझे पेमेंट करता है। आपको भी यही करने के लिए वेतन मिलता है और आपमें से किसी ने भी यदि अपनी ईमानदार राय व्यक्त करने की कोशिश करी तो आप अगले ही दिन सड़क पर होंगे और दूसरी नौकरी की तलाश कर रहे होंगे। यदि मैँ अपने समाचार पत्र में एक दिन भी अपनी ईमानदार राय लिख दूँ तो 24 घंटे के अंदर में बेरोजगार हो जाऊंगा। पत्रकार का कार्य सत्य की हत्या करना, सफेद झूठ लिखना, तथ्यों को विकृत करना, चरित्र हनन करना, धनाढ्य लोगों के चरण चुंबन करना और अपने राष्ट्र और संस्कृति को अपनी रोजी रोटी के लिए नीलाम करना है। आप भी इसको जानते हैं और मैँ भी, तो फिर स्वतंत्र प्रेस के नाम पर दावत करना मूर्खता के अतिरिक्त कुछ नहीं है। हम कठपुतली के समान हैं, वे नचाते हैं और हम नाचते हैं। हमारी प्रतिभा, हमारी संभावनाएं और हमारा जीवन दूसरे लोगों की सम्पत्ति है। हम केवल बौद्धिक वेश्याएं हैं।“
जॉन स्विंटन के इस भाषण की दावत में भाग लेने वालों ने क्या प्रतिक्रिया दी ये जानकारी उपलब्ध नहीं है। लेकिन सब लोगों के चरित्र हनन करने वाले और सच्चाई को दबाने वाले इस तंत्र की इससे अधिक प्रभावी ढंग से किसी और ने मिटटी पलित नहीं करी होगी।
आज इंटरनेट हमारे मध्य एक आशा की किरण बन कर उभरा है। अब सच को छुपा पाना आसान नहीं रहा है, और न ही नामी गिरामी प्रकाशको और मीडिया एजेंसीज के लिए यह सम्भव रहा है की वे अपना एकाधिकार बना कर रख सकें। अब इस तंत्र की शक्ति आम जनता के हाथ में है, आप और मेरे जैसे समान्य लोगों के पास यह विकल्प है की हम स्वयं अपनी खबरों का चुनाव करें, उन्हें सत्य की कसौटी पर परखें और अपना कथानक तय करें। हाँ, दिल्ली दंगो पर लिखी पुस्तक को नया प्रकाशक भी मिल गया है और हजारों की संख्या में प्रीऑर्डर प्रतिलिपि विक्रय भी हो रही है। यह है इंटरनेट और आम जनता की शक्ति।
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