राष्ट्र और राष्ट्रवाद का आखिर पैमाना कहां तक ? कंगना का सवाल – जिसके कई जवाब, जिसे जानना जरूरी है ।
![](https://kreately.in/wp-content/uploads/2021/11/download-1-1.jpeg)
राष्ट्र और राष्ट्रवाद का आखिर पैमाना कहां तक ?
कंगना का सवाल – जिसके कई जवाब, जिसे जानना जरूरी है ।
1857 की क्रांति के बाद जहां एक तरफ ब्रिटिश हुक्मरानों पूर्ण रूप से घबराए हुए थे और उन्हें कहीं ना कहीं इस बात का एहसास हो रहा था कि हिंदुस्तान में अब उनकी नींव कमजोर होने की स्थिति में आगे बढ़ चुकी है उसके बाद 1875 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना सैयद अहमद खान द्वारा की गई, 1885 में कांग्रेस की स्थापना हुई, जिसकी पहली अध्यक्ष एनी बेसेंट बनी जो कि एक पत्रकार और लेखिका थी, जिसके पीछे का मकसद आज हमें 2021 में पता चल रहा है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी किस विचारधारा से अपनी व्यवस्था बनाने की ओर अग्रसर है 1903 में जब ब्रिटिश हुक्मरानों ने बंगाल भंग करने की योजना तैयार की तथा हिंदुत्व को तोड़ने व मुस्लिम लीग की स्थापना तय हुई और 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना हुई जिसका प्रथम अध्यक्ष जिन्ना को बनाया गया जिसका एक ही मकसद था हिंदुस्तान से हिंदुओ को खत्म करना और हिंदुत्व को चोट पहुंचाना और कोशिश करते करते 1911 में बंग भंग के प्रयास में ब्रिटिश सफल हुए, और पूर्वी बंगाल (बांग्लादेश), बिहार, पश्चिमी बंगाल अलग अलग राज्य बन गए, 1916 में लखनऊ पेक्ट तय हुआ जिसमे जिन्ना ने मांग रखी कि हम मुसलमान तभी आजादी में सहयोग करेंगे जब आज से ही और आजादी के बाद संविधान हमारी शरीयत से चलेगा और मुस्लिम लॉ कोड से ही चलेगा, जिसे महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरोजनी नायडू सहित सात आदमी थे जो कांग्रेस के मुखर व्यक्ति थे जिन्होंने जिन्ना की सारी शर्ते मान ली, लखनऊ पेक्ट अपने आप में धब्बा था हिंदुस्तान व हिंदुत्व की व्यवस्था पर, 1921 में पुना में कांफ्रेस हुई और पुना पैक्ट को लागू करवाया जिसमें भीमराव अम्बेडकर जी ने शर्त रखी कि हरिजन के लिए एक अलग संविधान और अलग व्यवस्था हो जिस प्रकार से मुसलमानों के लिए 1916 में रखी गई जिसे स्वीकार नहीं किया गया, बाद में 1931 में पुना पैक्ट को स्वीकार किया गया जिसको कम्यूनल अवार्ड नाम दिया गया । 1931 को केरला में ही मोपला कांड हुआ जिसमें लाखों ब्राह्मणों को मारा गया, 1923 संविधान सभा का घटन हुआ जिसके अध्यक्ष डॉ सच्चिदाचंद सिन्हा बने, जिसके सदस्य डॉ राजेंद्र प्रसाद, डॉ भीमराव अम्बेडकर व अन्य सदस्य थे 1935 में ओडिशा एक अलग राज्य बना जो कि बिहार से अलग हुआ, 1943 से लेकर 1946 में डायरेक्ट एक्शन प्लान लागू हुआ जो कि बंगाल में चला और करीबन 10 लाख ब्राह्मणों को मारा गया, उसी समय ये तय हुआ कि महात्मा गांधी को मारना है क्योंकि महात्मा गांधी अंग्रेजों के एजेंट के रूप में काम कर रहे थे लगातार हिंदुत्व को खात्मे की ओर ले जाने में महात्मा गांधी का बहुत बड़ा योगदान रहा, और नाथूराम गोडसे के रूप में जब तीन लोगो में से लॉटरी निकली और 1948 में महात्मा गांधी को नाथूराम गोडसे ने मार दिया और इस अफसोस के साथ कि अगर महात्मा गांधी को 1903 में ही मार दिया जाता तो पाकिस्तान के रूप में हिंदुस्तान का विभाजन नहीं होता, नरूल हसन आर्काइव सेंटर ऑफ इंडिया जो कि न्यू दिल्ली में है हिंदुस्तान के सारे इतिहास को जला दिया गया जो कि इंदिरा गांधी के कार्यकाल में हुआ, ये बड़ी साजिश थी हिंदुस्तान के इतिहास के साथ ।
अब आप सोचिए कि किस प्रकार से आजादी के सहायकों को आजादी के लड़ाकुओं को किनारे करके अंग्रेजो की गुलामी करने वाले और चाटुकारिता करने वालों को तवज्जों दी जाने लगी, महात्मा गांधी के चरखे को दिखाकर पिछले 70 साल से कांग्रेस ने आजाद भारत की जनता को बेवकूफ बनाया और अब आज जब सच सामने आ रहा है तो घबरा रहे है सुभाषचंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, भगतसिंह, राजगुरु, मंगल पांडे, तात्या टोपे, दशरथ मांझी, झलकारी बाई जैसे हजारों स्वतंत्रता सेनानियों को भुलाकर कहीं ना कहीं आज की पीढ़ी को बरगलाने का प्रयास किया गया, आज जब सच सामने आ रहा है तो देशद्रोहियों को समस्या होना जायज है आज जब आजादी और आजादी प्राप्त होने में सहायक होने वाले स्वतंत्रता सेनानियों का जिक्र हो रहा है तो समस्या किसको, केवल उन्हें ही जो हिंदुस्तान के इतिहास की छेड़छाड़ में शामिल थे । ब्राह्मणों ने अत्याचार किया ये अफवाह फैलाने वाले जब सिकंदर हिंदुस्तान आया तब क्या हुआ इसका जिक्र कोई नही करता, पर शुकून है कि पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ, अश्विनी उपाध्याय, जैसे लोग लगातार हिंदुस्तान के इतिहास को सबके सामने लाने का प्रयास कर रहे है वरना लेफ्ट विंग और राइट विंग के नाम से केवल और केवल राजनीतिक विपक्ष था वह कटाक्ष करने का प्रयास ही दिन भर देखने को मिलता है देश में जहां अन्य गंभीर मुद्दे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, गरीबी, भुखमरी, इन मुद्दों पर कार्य होना चाहिए बजाय इसके छोटी-छोटी बातों को बड़ा मुद्दा बनाकर केवल और केवल जनता का ध्यान भटकाने का कार्य कुछ लोगों द्वारा प्रायोजित किया जा रहा है एक सच्चे राष्ट्रवाद की निशानी यही है किस राष्ट्र के हित और विकास के लिए निरंतर प्रयास जारी रहे ।
DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.