मणिपुर मामले में सोशल मीडिया में उठा तूफान थोड़ा शांत जरुर हुआ है लेकिन पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है. 19 जुलाई को सामने आये एक वीडियो ने देश में बवंडर सा खड़ा कर दिया था. मणिपुर संघर्ष निस्संदेह सरकार के लिए एक नई चुनौती बनी हुई है. लेकिन क्या कारण है कि सरकार की इतनी कोशिशों के बाद भी अराजकता जस की तस बनी हुई है? दरअसल कहीं न कहीं इसका मूल कारण इलाके में सक्रिय ड्रग्स माफियाओं के खिलाफ सरकार की सख्त कार्रवाई कही जा सकती है। 2022 में बीजेपी के सरकार में वापसी के बाद से बिरेन सिंह के नेतृत्व में मणिपुर प्रशासन ड्रग्स के खिलाफ एक अभियान छेड़े हुए हैं.
अगर आप सोशल मीडिया पर मणिपुर के इतिहास को थोड़ा खंगालेंगे तो धीरे-धीरे परत दर परत कई बातें साफ हो जाएगी. मणिपुर में बसी एक विदेशी मूल की जाति है जो मात्र डेढ़ सौ साल पहले पहाड़ों में आकर बसी थी। ये मूलतः मंगोल नस्ल के लोग हैं। जब अंग्रेजों ने चीन में अफीम की खेती को बढ़ावा दिया तो उसके कुछ दशक बाद अंग्रेजों ने ही इन मंगोलों को वर्मा के पहाड़ी इलाके से लाकर मणिपुर में अफीम की खेती में लगा दिया। आपको आश्चर्य होगा कि तमाम कानूनों को धता बताकर ये अब भी अफीम की खेती करते हैं और कानून इनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता। इनके व्यवहार में अब भी वही मंगोली क्रूरता है मतलब नहीं मानेंगे तो नहीं मानेंगे।
इसके अलावा मैतेई राजाओं ने भी वर्मा से बुलाकर कुकी समुदाय को बसाने का काम किया था. क्योंकि तब ये सस्ते सैनिक हुआ करते थे। मणिपुर के स्थानीय अखबारों में ये बिल्कुल आम है कि कुकी अब भी अवैध तरीके से वर्मा से आ कर मणिपुर के सीमावर्ती जिलों में बस रहे हैं। सरकार इस घुसपैठ को रोकने की कोशिश कर रही है लेकिन पूरी तरह से सफलता नहीं मिली है। इसके अलावा आजादी के बाद जब उत्तर-पूर्व में मिशनरियों को खुली छूट मिली तो उन्होंने इनका धर्म-परिवर्तन कराया और अब लगभग सारे कुकी ईसाई हो गए .
मैतई मणिपुर के मूल निवासी हैं। मैतई हमेशा से वनवासियों की तरह प्राकृतिक वैष्णव जीवन जीने वाले लोग हैं। पुराने दिनों में सत्ता इनकी थी, इन्हीं में से राजा हुआ करते थे। अब राज्य नहीं है, जमीन भी नहीं है। मणिपुर की जनसंख्या में ये आधे से अधिक हैं, लेकिन भूमि इनके पास 10 फीसदी के आसपास है। उधर कुकियों की जनसंख्या 30% है, लेकिन इनके पास जमीन 90% है। 90% जमीन पर कब्जा रखने वाले कुकियों की माँग है कि 10% जमीन वाले मैतेई लोगों को जनजाति का दर्जा न दिया जाय। वे लोग विकसित हैं, सम्पन्न हैं। उनको अगर अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया तो हमारा विकास नहीं होगा।
आज पूरा मणिपुर दो हिस्सों में बंट गया है। मैतेई हिंदुओं का मानना है कि 75 वर्षों से जनजातीय होने का उन्हें कोई लाभ नहीं मिला, उनका धर्मांतरण किया गया, पिछली सरकारों ने उनकी नहीं सुनी। दरअसल इस समय भारत सरकार के सामने आगे कुआं और को पीछे खाई वाली स्थिति है। अगर मैतेई लोगों की नहीं सुनी गई तो वह भी सशस्त्र अलगाववाद शुरू कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट पहले ही उनको निराश कर चुका है। हिंदुओं की वैसे ही कहीं सुनवाई नहीं हो रही। हालत ये है कि कुछ दिन बाद वहां हिंदू समाप्त हो जाएंगे या फिर दूसरे राज्यों में पलायन कर जाएंगे ।
ऐसे में सरकार फूंक-फूंक कर कदम उठा रही है। क्योंकि कुकी समुदाय को वामपंथी मीडिया, विपक्ष , अंतर्राष्ट्रीय मीडिया और चर्च सबका समर्थन है। उनकी मौतों, चर्च जलने की ज्यादा चर्चा है लेकिन मैतेई हिंदुओं की मौत, बलात्कार, मंदिरों के जलने पर बोलने वाला कोई नहीं है!
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