महाराष्ट्र की उद्धव सरकार इन दिनों जहां हनुमान चालीसा पढ़ने वाले बीजेपी नेताओं को जेल में डालने का काम कर रही है वहीं दूसरी तरफ उन्हीं के राज्य में बदहाल किसानों की सुध लेने के लिे उनके पास समय नहीं है. बदहाल किसान आत्महत्या कर रहे हैं. कभी कर्ज के बोझ की वजह से, कभी मौसम की मार की वजह से अपनी जिंदगी खत्म कर रहे हैं. लेकिन सरकार को क्या उनके गोदाम में तो इतने अनाज भरे रहते हैं कि एक-दो किसान मर भी जाएं तो उन्हें कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा. फर्क पड़ेगा तो उन परिवारों को जिनका अपना चला जाए.
दरअसल सत्ता का सुख पाने में उद्धव सरकार इतनी व्यस्त हो गयी कि उन्हें अपने राज्य के किसानों का हाल-चाल जानने का मौका ही नहीं मिल रहा. एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले तीन महीनों में महाराष्ट्र के मराठवाड़ा इलाके में तकरीबन 233 किसानों ने आत्महत्या की है. लेकिन क्या आपने ये खबर किसी चैनल की ब्रेकिंग न्यूज में देखी, देखेंगे भी कैसे भला मेनस्ट्रीम मीडिया इन खबरों को दिखा कर TRP की रेस में नंबर 1 पर कैसे आएगा. इसलिए ऐसी खबरों को कोई नहीं दिखाता. हां अगर उत्तर प्रदेश से ऐसी कोई खबर सामने आती तब देखिए हमारे फुर्तीले चैनलों के पत्रकारों को, चिलचिलाती धूप हो या फिर टेढ़े-मेढ़े उबड़-खाबर खेत की मेढ़ें इनके एक नहीं बल्कि 4-5 पत्रकारों की झुंड घटना स्थल पर पहुंच जाती और पीड़ित परिवार वालों के मुंह के अंदर जब तक ये अपना माइक नहीं डाल लेते इन्हें चैन नहीं आता.
दरअसल महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या में बढ़ोतरी के बावजूद राज्य के नेताओं के लिए इनकी राजनीतिक महत्वकांक्षा और सियासी स्वार्थ ही सबसे ऊपर है। एक रिपोर्ट के मुताबिक जून और अक्टूबर 2021 के बीच महाराष्ट्र में कुल 1,078 किसानों ने आत्महत्या की है। महाराष्ट्र की ठाकरे सरकार के सत्ता पर काबिज होने के बाद से 2021 के जनवरी तक महाराष्ट्र में 2270 किसानों ने आत्महत्या की है।
NCRB की रिपोर्ट के मुताबिक 2020 में 4,006 किसानों की आत्महत्याओं के साथ महाराष्ट्र एक बार फिर लिस्ट में सबसे आगे था। आपको याद होगा जब हजारों किसान दिल्ली बार्डर पर महीनों तक तंबू गाड़कर सरकार के खिलाफ बैठे थे तब महाराष्ट्र की ठाकरे सरकार किसान आंदोलन को समर्थन देने में सबसे आगे रही थी।
अपने आप को किसानों के सबसे बड़े हितैषी के रूप में खुद का प्रचार करने वाले इन नेताओं को न तो महाराष्ट्र जैसे राज्य के किसानों की आत्महत्या की चिंता है और न ही उनके दुखों की। बस इन्हें सत्ता का सुख पाना है इसके लिए भले ही किसानों की बलि ही क्यों न देनी पड़ी.
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