अग्निपथ योजना के विरोध के नाम पर जिस तरह से देश के कुछ हिस्सों को हिंसा की आग में झोंका जा रहा है उसे किसी भी हाल में जायज नहीं ठहराया जा सकता. लेकिन हिंसा की सबसे भयावह तस्वीरें बिहार से आ रही है जहां पिछले तीन दिनों से वहां उपद्रवी और दंगाई सरकारी संपत्ति को जला रहे हैं.

पुलिस अपने हिसाब से दंगाईयों को रोकने की कोशिश कर रही है लेकिन कहीं ना कहीं हिंसा रोकने में वो नाकाम साबित हो रहे हैं. ऐसी हालत में उम्मीद की जाती है कि सूबे का मुखिया सामने आकर दो शब्द बोले, लाखों करोड़ों रुपये की बर्बादी हो रही है, ट्रेनों को जलाया जा रहा है, बसों में आग लगायी जा रही है, दफ्तरों को जलाया जा रहा है बावजूद इसके अगर मुख्यमंत्री कहीं गायब रहेंगे तो जाहिर है उनकी भूमिका संदिग्ध नजर आएगी .

नीतीश कुमार जिस सुशासन की माला जपते राजनीति की बैतरणी पार लगा रहे हैं वो अब सबके सामने आ रहा है. सवाल ये कि सीएम नीतीश कुमार हिंसक घटनाओं को लेकर चुप्पी क्यों साधे बैठे हैं ? शनिवार को हिंसा का चौथा दिन है आखिर वो कोई ठोस कार्रवाई का ऑर्डर क्यों नहीं दे रहे हैं . एक से बढकर एक तेज-तर्रार पुलिस ऑफिसर हैं बिहार में आखिर उनके साथ कोई ठोस रणनीति क्यों नहीं बनायी जा रही ? ऐसा तो हो नहीं सकता कि नीतीश कुमार के पास समय नहीं है . और अगर मान भी लिया जाए कि समय की कमी है लेकिन इस समय जलते बिहार को बचाने से बड़ा काम और क्या हो सकता है शासन-प्रशासन का. CM साहब को अनुग्रह नारायण सिंह की जयंती के मौके पर माल्यार्पण करने के बाद ट्वीट करने का समय मिल गया लेकिन हिंसा को लेकर अब तक उनका एक भी ट्वीट नहीं आया . नीतीश कुमार ने ट्विटर के जरिए भी एक अपील तक करना जरूरी नहीं समझा . जिससे हिंसा को रोका जा सके. आखिर ये किस तरह से आप राज्य चला रहें हैं नीतीश कुमार ?

Note- ये CM नीतीश कुमार की आज की ट्वीट है

बिहार में गृह विभाग खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जिम्मे है। लेकिन सवाल है कि फिर भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चुप क्यों बैठे हुए हैं ? कानून और व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्य सरकार की ही है। अगर बिहार सरकार पहले दिन से ही उपद्रवियों के खिलाफ सख्ती दिखाती तो आज इन उपद्रवियों की इतनी हिमम्त नहीं बढ़ती और शायद दूसरे राज्य भी इसकी चपेट में आने से बच सकते थे।

देखा जाए तो नीतीश कुमार के सुशासन की छवि पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। उनका जो कुछ भी राजनैतिक कैरियर और सत्ता में सहभागिता बची है, वह बीजेपी की वजह से है। लेकिन आज के हालात देख कर तो यही कहा जा सकता है कि नीतीश कुमार से अब बिहार संभल नहीं रहा . सुशासन बाबू का चोला ओढ़े नीतीश कुमार हालात को संभाल नहीं पा रहे हैं . आपको अनिल कपूर की फिल्म नायक का वो सीन याद होगा जब बस कंडक्टर से मामूली सी बात पर चक्का जाम कर फिल्म में महाराष्ट्र को जलाया गया था. पुलिस के बड़े अधिकारी फिल्म में मुख्यमंत्री बने अमरीश पुरी से दंगाईयों पर कार्रवाई की बात करते हैं और सीएम मना कर देते हैं. क्योंकि हंगामा करने वालों में सो कुछ उनकी जाति के थे तो कुछ उनका वोट बैंक था. वो फिल्म थी लेकिन आज बिहार में जो हालात हैं वो सच्चाई है. लेकिन जो फिल्म में दिखाया गया था कुछ-कुछ वैसा ही हाल आज बिहार का है.

बिहार सरकार विरोध और गुंडई में फर्क ही नहीं कर पा रही. उपद्रवियों के चक्कर में वो छात्र बदनाम हो रहे हैं जो सच्चे मन से देश की सेवा करना चाहते हैं। क्योंकि पढ़ने वाले छात्र और भविष्य के बारे में सोचने वाले छात्र कभी देश में हिंसा नहीं फैलाते, ये हिंसा करने वाले वो लोग हैं जो अपने जीवन में कुछ करना ही नहीं चाहते. जो सिर्फ चंद पैसों के लालच में अपने ही भविष्य को दाव पर लगाने का काम करते हैं. सच पुछिए तो नीतीश कुमार जी ऐसा लग रहा है आपने बिहार में दोबारा से जंगलराज को लौटा दिया है !

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