आमतौर पर ईसाइयत को सहिष्णुता का प्रतिमान मान लिया जाता है सिर्फ ईसा मसीह के एक बयान की वज़ह से कि अगर कोई आपके एक गाल पर थप्पड़ मारे तो अपना दूसरा गाल उसके सामने कर दीजिये।
परंतु गोवा में पंद्रहवीं- सोलहवीं शताब्दी में ईसाई बनाने चर्च के आदेश पर हिन्दुओं पर किये गये अत्याचार की घटनाएं इस बात का सबूत हैं कि निर्दोष और सहिष्णु सनातनियों के ऊपर ये ईसाइयत कसाई के छुरे से कम नहीं थी ।
कभी एक एक ग़ज़ल पढ़ी थी कि
कौन कहता है बुरे हैं लोग
सिर्फ थोड़े बेसुरे हैं लोग,
चाहिए कोई गला मासूम
फिर कसाई के छुरे हैं लोग।।
और इसी ईसाइयत ने अंग्रेजी के दम पर भारतीय या सनातनी शिक्षा व्यवस्था को उलट पलट कर रख दिया और बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा के क्रम में सकारात्मकता भरी कविताओं की जगह अवसाद पूर्ण और नफरती कविताओं का ढेर लगा दिया।
मैं एक-एक करके उन नर्सरी राइम्ज़ की विवेचना आपके सामने करूंगा जो अवसाद भरी हैं ।आप, हम या सबलोग अपने बेटे बेटियों के मुंह से ये राइम्ज़ सुनवा कर घर आए मेहमानों के सामने अपनी कॉलर ऊंची करते हैं । पर अब आपको पता चलेगा इस अंग्रेजी के माध्यम से ईसाइयत ने अंग्रेज़ियत के नाम पर आपके बच्चों को अवसाद भरी कविताएं सिखा दिया।
दरअसल विदेश के एक विश्वविद्यालय ने बच्चों की इन कविताओं में हिंसक घटनाओं के उल्लेख की बात बताई थी।
अब कुछ ऐसी राइम्ज़ पर नजर डालते हैं।
पहली पॉपुलर राइम है – बा बा ब्लैक शीप… BAA, BAA, BLACK SHEEP। (1731)
इस कविता का अर्थ कम से कम बचपन की मासूमियत से नहीं है। यह राइम १२७५ ई० में इंग्लैंड के सामंती काल में राजा के दरबारियों के द्वारा किसानों से भारी ऊन कर वसूलने से लेकर था। किसान भेंड़ से जो ऊन निकालते थे, उसमें से ऊन से भरा सबसे बड़ा बैग किसान से छीन कर पहले उस इलाके के जमींदार को दिया जाता था, उसके बाद कुछ हिस्सा चर्च को जाता था और आखरी बचा हुआ ऊन हीं किसान के हाथ आता था जो गरीबी में जीवन यापन करते हुए चर्च का गुण गाता था।
अब देखते हैं दूसरे प्रसिद्ध राईम को … जैक एंड जिल वेण्ट अप द हिल…JACK AND JILL ( 1765)!
यह राइम फ्रांस के राजा लुइ १६ को जैक और उसकी रानी मैरी एंटोइनेट को जिल के रूप में दिखाए जाने को लेकर है और इस कविता में बताया गया है कि कैसे राजा जैक के मुकुट पहने हुए सिर को काटा गया और फिर रानी जिल का सर भी काट कर लटका दिया गया। आखिर दो-तीन साल के बच्चे को इस क्रूरतम हत्याकांड का विवरण बताने से क्या फायदा ? या ये खून भरी कवितायें बच्चों में कैसी सकारात्मकता भरेगी?
तीसरी राइम है रिंग अराउण्ड द रोजी…RING AROUND THE ROSIE ( 1881) !
इस कविता का भी बचपन से कोई लेना देना नहीं है। यह तो इंग्लैंड में उस कालखंड में फैली हुई प्लेग की बीमारी को लेकर रची हुई कविता है जिसमें प्लेग से बीमार मरीज़ के शरीर से एक अजीब दुर्गंध निकलती थी और उसके शरीर पर घाव या रैशेज़ हो जाते थे । इसी दुर्गंध को समाप्त करने के लिए लोग अपनी जेब में गुलाब का खुशबूदार फूल और कुछ जड़ी बूटियां रखते थे।
और इसी कविता के अंत में मृतक के अंतिम संस्कार का भी जिक्र है।
अब जरा सोचिए कि आखिर इस लाइन को सिखा कर बच्चे में किस प्रकार के सद्गुण का विकास किया जा सकता है।
चौथी राइम है हंप्टी डंप्टी …Humpty Dumpty ( 1810)!
इस कविता में वर्णित हंप्टी डंप्टी किसी अंडे का या बच्चे का नाम नहीं था बल्कि उस तोप का नाम था जो बहुत ही डरावनी और खतरनाक थी । दुश्मनों ने चर्च के दीवार पर रखे गए इस तोप को नष्ट कर दिया।। दुश्मनों ने पहले दीवार तोड़ी तो यह तोप भी गिरकर टुकड़े टुकड़े हो गई जिससे इसकी फिर कभी मरम्मत ना हो पाई।
इस युद्ध की घटना और तोप के टूटने वाली कविता को रट कर बच्चों के मासूम बचपन का क्या भला हो सकता है । पर हम इसे रटते हैं क्योंकि हमें अपनी अंग्रेजियत साबित करके श्रेष्ठता जो दिखानी है।
अगली राइम है – मैरी मैरी क्वाइट कांट्रेरी…MARY, MARY, QUITE CONTRARY (1744)!
यह कविता वास्तव में राजा हेनरी अष्टम की बेटी मेरी की क्रूरता पर आधारित है जो कैथोलिक धर्म को मानती थी और प्रोटेस्टेंट समर्थकों को मरवा देती थी।
फिर बहुत ही चर्चित नर्सरी राइम है …. लंदन ब्रिज इस फॉलिंग डाउन LONDON BRIDGE IS FALLING DOWN (1744)।
इस कविता में लंदन के पुल के निर्माताओं की उस मान्यता का जिक्र है जो लंदन ब्रिज को सुरक्षित और मजबूत रखने के लिए मानव बलि देने के समर्थक थे और खास करके बच्चों की बलि ताकि उन बच्चों की आत्मायें उस पुल की रक्षा करती रहें। लंदन ब्रिज से जोड़कर दरअसल अंधविश्वास के कारण बच्चों की हत्या का हीं महिमामंडन है। अब छोटे छोटे बच्चों की हत्या की कविता सुनकर और रट कर भला अवोध भारतीय बच्चों का कैसा भला होगा?
अगली चर्चित कविता है …गूसी गूसी जेंडर….GOOSEY GOOSEY GANDER ( 1784)
यह कविता इंग्लैंड के राजा हेनरी अष्टम और बाद में उसी सम्राट के समकक्ष ओलिवर क्रॉमवेल के शासनकाल में प्रोटेस्टेंटों के दबाव के कारण कैथोलिक ईसाइयों को दंडित करने के बारे में है क्योंकि उस कालखंड में कैथोलिक होना देशद्रोह जैसा था। ये कैथोलिक ईसाई छुप छुप कर प्रार्थना किया करते थे और जब कभी ये पकड़े जाते थे तो राजा के सैनिक इनके पैरों में रस्सी बांधकर इन्हें सीढ़ियों से नीचे फेंक दिया करते थे।
अब आप ही बताइए कि इस निर्मम हत्या के वर्णन करने वाली कविता रटवा कर आखिर हम क्या हासिल कर सकते हैं?
आखिर में एक और नर्सरी राइम … हियर वी गो एराउंड द मलवरी बुश….HERE WE GO ROUND THE MULBERRY BUSH (1840)!
और इस कविता में इंग्लैंड के वैकफील्ड जेल में एक महिला कैदी के गीत गाने का जिक्र है जो शहतूत के पेड़ के पास वह कसरत करते समय गीत गाती थी।
यह राइम भी दरअसल उस महिला कैदी के अवसाद का प्रतीक ही है परंतु हम अपने बच्चों के द्वारा इन नर्सरी राईम्स को सुनकर और मेहमानों को सुनवा कर इतने गौरवान्वित हो जाते हैं कि हमें इतनी भी फिक्र नहीं रहती कि यह जान सकें कि हमारे बच्चे जो गीत गा रहे हैं उसका वास्तव में अर्थ क्या है।
यह तो कुछ ऐसा ही है जैसे किसी हिंदी बोलने वाले को चाइनीज भजन सिखाने के नाम पर चीनी भाषा की मां- बहन की गालियां कोई सिखा दे और वह भोला इन्सान गर्व से उसे गाता रहे बिना सोचे समझे किसी मूर्ख की तरह।
पर हमारे वामपंथी विचारकों को इस नर्सरी राइम कोई भी बुराई नहीं दिखती है क्योंकि वामपंथियों ने सारी बुराई तलाशने का काम सिर्फ सनातन धर्म, सनातन धर्म के ग्रंथ जैसे वेदों , उपनिषदों और पुराणों के साथ सनातन धर्म को मानने वाले सनातनियों के आचार विचार में हीं ढूंढने का ठेका लिया हुआ है।
और हम भारतीय कांग्रेस के द्वारा स्थापित स्पॉन्सर्ड विपक्षी वामपंथियों के हाथों लिखे गए साहित्य, इतिहास, दर्शनशास्त्र और अनुवादित धार्मिक ग्रंथों को ही मानक मानते रहे हैं।
जब ऐसे छद्म धर्मनिरपेक्षतावादियों को हम विद्वान और तटस्थ मानकर उनके लेखन के आधार पर अपने अतीत का पुनर्मूल्यांकन करेंगे तो बस एक ही गाना याद आएगा- जब रात है इतनी मतवाली तो सुबह का आलम क्या होगा?
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