वामपंथी विचारधारा जिस अतिरेक की आज़ादी को अपना सिरमौर मानती है वो कितनी मूल्यहीन और खोखली है इसकी बानगी अक्सर देखने को मिलती है। क्रांति के दिवास्वप्नों के ख्याली पुलाव पर आकर्षण का वो मायाजाल बुना जाता है जिसमें युवा अक्सर फंस जाता है। वामपंथ की विडंबना है कि जिस सैद्धांतिक सोपान की वो वकालत करता है आखिर में उसी वकालत का विरोधी बनकर कठघरे में खड़ा हो जाता है।
मसलन वर्तमान में आए अनुराग कश्यप के मामले को देखिए…महिला आज़ादी-स्वतंत्रता की बुलंदी में नारे लगाने वाले अनुराग कश्यप की असलियत कितनी अश्लील है। गुलाल, देव डी, वासेपुर, गर्ल इन येल्लो बूट जैसी फिल्मों में साहसिक औरतों का किरदार गढ़ने वाले अनुराग कश्यप निजी जिंदगी के ‘रमन राघव’ निकले। जेएनयू, जाधवपुर, तेलांगना यूनिवर्सिटी में अक्सर वामपंथी समूह महिला सशक्तिकरण की नकली खाल ओढ़कर सामने आते हैं और भोली लड़कियों को पिता-भाई-पुत्र के विरोध में खड़ा करते हैं। जब लड़की खुद को अकेला पाती है तो उसके मनोभावों को भांपकर मार्क्स-लेनिन-चे ग्वेरा-फ़ैज़ की तस्वीर लगे कमरों में ले जाकर उनका शोषण करते हैं।
वामपंथ की इसी फैक्ट्री से निकले तमाम कचरों में एक नाम अनुराग कश्यप का भी है। 2 पत्नी से तलाक..हुमा कुरैशी, ऋचा चड्ढा, तापसी पन्नू, माही गिल जैसी सह-अभिनेत्रियों से इश्कबाजी के किस्से बताते हैं इनके जीवन में नैतिक मूल्य नगण्य रहते हैं।
वामपंथ विडंबना का आलम देखिए कि नारी सशक्तिकरण की पैरोकारी ये तभी तक करते हैं जहां तक इन्हें सहूलियत दिखाई देती है। केरल जैसे कम्युनिस्ट राज्य से आए दिन खबरें आती हैं कि वामपंथी कैडर अपनी साथियों का शारीरिक शोषण करते हैं। अभी हाल में तिरुवनंतपुरम में एक महिला कार्यकर्ता ने सीपीआई (एम) दफ्तर में आत्महत्या कर ली थी क्योंकि उसके साथी कामरेड उसका शोषण करते थे। उससे पहले खबर आई थी कि एक वामपंथी महिला का तकरीबन 100 लोगों ने कई सालों तक शोषण किया । पश्चिम बंगाल में महिला रेप और हत्या की दर भारत के दूसरे राज्यों के मुकाबले ज्यादा है।
जाहिर होता है कि इन वामपंथियों की इंक़लाब की मुहिम नशे की जॉइंट कश से शुरू होती है और अनुराग कश्यप नुमा पेंट की ज़िप पर जाकर खत्म हो जाती है।
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