गाल और चाँटा का सिद्धान्त :–
महात्मा गांधी का ‘हिन्द स्वराज’ पढ़ें, 1909 में लिखी गयी थी, बिलकुल सही विचार हैं | उसमें गांधी जी ने यह भी लिख दिया था कि उनके विचार लागू नहीं हो पाएंगे, जमाने की रफ़्तार दूसरी दिशा में है |

हर मनुष्य में गुण और दोष दोनों होते हैं, किन्तु किसी भी मनुष्य का अन्तिम मूल्यांकन करते समय इस बात का ध्यान रखें कि किसी भी व्यक्ति के सारे दोषों के लिए कलियुगी सामाजिक परिवेश जिम्मेवार है (यह मेरे गुरु जी के गुरु जी ने उनको विश्वविद्यालय में साहत्यिक समालोचकों ने पढ़ाया था, बाद में उनको ज्ञान हुआ की दोष भी पिछले जन्मों के कर्मों का फल है), और उसके गुणों के लिए वह स्वयं बधाई का पात्र है — क्योंकि इतने बुरे कलियुगी समाज में भी उसने अच्छे गुणों को बचाकर रखा |
सारी खामियों के बावजूद महात्मा गांधी में एक गुण तो सबको मानना ही पडेगा — हज़ार वर्षों से टूटे-हारे देश को पाँव पर खड़ा होकर अपने अधिकार के लिए लड़ना सिखा दिया, ऐसे देश को जो रटता आ रहा था कि कोई भी नृप हो हमें क्या हानि ? अहिंसात्मक लड़ाई सिखाई, क्योंकि हिंसात्मक लड़ाई की बात करते तो देशव्यापी जन-आन्दोलन खड़ा नहीं हो पाता, मुट्ठी भर क्रांतिकारियों की टोली ही बन पाती |


पर गन्धासुर उर्फ़ गान्धी बहुत ही धूर्त नेता थे, जानते थे कि कब अहिंसा का जाप करें (1923 — चौरीचौरा), और कब हिंसा होने दें — 1942 — जिसमें व्यापक हिंसा हुई किन्तु गांधी जी की हिम्मत नहीं हुई कि भूलकर भी अहिंसा का नाम लें, वरना वे जानते थे कि लोग उनकी खटिया खड़ी कर देंगे | उनकी ‘अहिंसा’ सनातन धर्म से नहीं निकली थी जिसमें अत्याचार के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध का आदेश है, बल्कि ईसाई मत के नपुंसक दर्शन से निकली थी जिसमें एक चाँटे के उत्तर में दूसरा गाल बढ़ाने की बात है |


टॉलस्टॉय के ‘वॉर एन्ड पीस’ से नहीं, बल्कि “पुनरुत्थान” (रिसरेक्शन) से गांधीवाद निकला था | “पुनरुत्थान” विश्व साहित्य का सर्वोत्कृष्ट उपन्यास है, यद्यपि मोटी पुस्तक को बेहतर मानने वाले मूर्खों को ‘वॉर एंड पीस’ श्रेष्ठ लगता है, और नैतिकता तथा सामाजिक उत्तरदायित्व की अपेक्षा कला को महत्त्व देने वालों को “अन्ना कारेनिना” श्रेष्ठ लगता है |
“पुनरुत्थान” आपलोगों को भी पढ़ना चाहिए, कैसे स्फिंक्स की तरह अपने पापों की राख को खाद बनाकर मनुष्य पुण्य की ओर पुनः उत्थान कर सकता है इसकी कथा है, जिसका मर्म गांधी ठीक से समझ न पाये !! “पुनरुत्थान” सच्चे मानवधर्म की कथा है | टॉलस्टॉय ने कभी नहीं कहा कि अत्याचारी एक चाँटा मारे तो दूसरा गाल भी बढ़ा दो !!
“रिसरेक्शन” ईसाई मत की अवधारणा है जिसकी चर्च वाली व्याख्या को टॉलस्टॉय ने उलट दिया और दिखाया कि सूली पर टाँग दिए जाने के बाद पुनः उठने वाले ईसा मसीह के “रिसरेक्शन” का वास्तव में क्या अर्थ है — वह ईसा कोई बाहरी व्यक्ति या शक्ति नहीं बल्कि मनुष्य के भीतर की जीवनी है जो बारम्बार आसुरी वृत्तियों द्वारा कुचले जाने पर भी कहीं से ओस की एक बूँद मिलने पर फिर से दिव्यता से भरकर खिल उठती है |


उनका अहिंसात्मक सत्याग्रह तब आरम्भ हुआ था जब सारे विश्व में रूसी क्रान्ति की धूम मची थी और भारत में भी वामपन्थी क्रान्तिकारी विचारों का प्रचार आरम्भ हो गया था |
दुष्टों के समक्ष सत्य का आग्रह मूर्खता है, किन्तु गांधी जी मूर्ख नहीं थे, धूर्त थे, जानते थे कि भारत का डरपोक पूँजीपति वर्ग अहिंसात्मक विचारों को स्वीकार सकता हैं , लड़ाई-झगडे की बातें नहीं, तब सहयोग नहीं करेगा |
उनके गुणों पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है, अतः कुछ दोषों की भी चर्चा कर लें |


(बिना नाम लिए लिख रही हूँ ताकि तीनों किस्म के बन्दरों की भावनाओं को ठेस न लगे, ऐसी बातें आपलोग भी बिना नाम लिए लिखने की आदत डाल लें :- )
कम उम्र की लड़कियों के साथ सोने की बातें इन्टरनेट पर भी प्रचारित हैं | इसपर मैं नहीं लिखुँगी ये लिखने वाले बहुतेरे है । किन्तु समलैंगिकता की बात बहुत कम लोग जानते हैं |
एक जर्मन के मरने पर उसके घर से इनके पत्र बरामद हुए (नेट पर विस्तार से प्रमाण मिल जाएगा) |
बिचारे पहले से हिजड़े नहीं थे, और न ही समलैंगिक थे | कामवासना जब हद से बढ़ जाय और जीवन में मनुष्य 4000 से अधिक बार वीर्यपात कर ले तो हिजड़ापन हावी होने लगता है, वीर्यपात की अधिकतम सम्भव संख्या 6000 है | हर वीर्यपात के साथ गुणसूत्र के अन्त में टेलोमेर का एक खण्ड टूटता है और आयु घटती है (आजकल पश्चिम के वैज्ञानिक गोरी नस्ल को अमरत्व देने के लिए शोध कर रहे हैं कि सेक्स करने पर भी टेलोमेर न टूटे इसका कोई उपाय निकल जाय), कुल 6000 खण्ड होते हैं | ऐसे व्यक्ति का हिजड़ापन बढ़ जाय और कारण-शरीर में गुदा-कर्मेन्द्रिय तमगुणी हो तो समलैंगिकता की ओर रुझान बढ़ता है | जन्मकुण्डली में इसके कुछ योग होते हैं, जिनके कारक ग्रहों की दशा आने पर समलैंगिकता हावी होती है, दशा समाप्त होने पर नहीं रहती |


अनेक स्त्रियों के सहयोग से लाख प्रयास करने पर भी हिजड़ेपन को दूर न कर सके |
इस हिजड़ेपन को वे और उनके सारे बन्दर ‘ब्रह्मचर्य’ कहते थे, यद्यपि ब्रह्म का ईश्वर और अल्लाह से क्या अन्तर है इसपर कभी जिज्ञासा तक नहीं की !
लड़कियों के साथ ‘ब्रह्मचर्य के प्रयोग’ में सरदार विरोध करते थे और ‘चाचा’ सहयोग, अतः वैचारिक मतभेद और पार्टी का विरोध होने पर भी बिन भतीजे वाले चाचा को सत्ता दिलायी |
इतना भयंकर मनोविकार कि एक विशाल देश की सत्ता किसे मिले उसकी कसौटी यही हो कि ‘ब्रह्मचर्य के प्रयोग’ हेतु कौन सहयोग करता है !
यह संयोग नहीं है कि उनका नाम जपने वाली पार्टी के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष ने समलैंगिकता पर पाबन्दी हटाने का बयान दिया है (ताकि युवराज समलैंगिक शादी कर सके) ! वैज्ञानिकों के शोध में स्पष्ट हुआ है की चूहों के समूह का भी जब नाश निकट आता है तो उनमें समलैंगिकता बढ़ने लगती है | किसी प्रजाति का एक्सटिंक्शन पास हो तो समलैंगिकता द्वारा ही संतानोत्पत्ति का प्रयास होने लगता है ! लगता है तीन किस्म के बन्दरों की पार्टी का एक्सटिंक्शन भी अब दूर नहीं !


पूर्ण समलैंगिक कभी नहीं थे, अत्यधिक वासना के कारण हिजड़ेपन के शिकार होने लगे तब आरम्भ में समलैंगिकता की ओर और बाद में नग्नता की ओर लुढकने लगे | उनके विचारों में भी उत्तरोत्तर ह्रास और पतन हुआ |


विचारधारा में यह पतन किस सीमा तक हुआ यह जानना है तो 1909 में लिखित ‘हिन्द स्वराज’ पढ़ें और 1948 में नाथूराम गोडसे का अदालत में बयान पढ़ें जो गोपाल गोडसे ने प्रकाशित कर दिया, इन्टरनेट पर मिल जाएगा |
उस पुस्तक में जो नहीं है वैसी एक सच्ची घटना मैंने बनारस में सुनी थी —
स्वतन्त्रता पास आने पर जिन्ना ने डायरेक्ट एक्शन का नारा दिया, जिस कारण साम्प्रदायिक दंगे भड़क गए | पूर्वी भारत में सबसे भयंकर दंगे मुस्लिम बहुल नोआखाली में हुए जो अब बांग्लादेश में है | वहाँ शान्ति की स्थापना के लिए गांधी जी गए | मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में जाने की हिम्मत नहीं थी | हिन्दुओं की सभा बुलाकर भाषण देने लगे कि कोई एक चाँटा मारे तो दूसरा गाल बढ़ा दो, मारने वाले को शर्म आयेगी और वह शान्त हो जाएगा |
एक महिला ने पूछा — मेरी दो बेटियां हैं, एक को वे (“शान्तिप्रिय”) लोग उठाकर ले गए, आपके सिद्धान्त के अनुसार मेरा कर्तव्य क्या यही बनता है कि मैं अपनी दूसरी बेटी को भी उनलोगों के पास भेज दूं ताकि वे लोग शान्त हो जाएँ ??
गांधी जी ने यह नहीं कहा की उनका ऐसा तात्पर्य नहीं था | मौन साध गए | अपना “सिद्धान्त” भला कैसे बदलते ? तब हिन्दुओं की भीड़ ने उनकी ऐसी खबर ली कि कांग्रेसियों ने घेराबन्दी करके उनको सुरक्षित निकाला, फिर कभी उस क्षेत्र में नहीं गए !
गांधी जी और उनके चेलों ने उस लापता बेटी को ढूँढने का प्रयास तक नहीं किया | उस समय बंगाल में मुस्लिम लीग की सरकार थी जिसकी सहयोगी थी अम्बेडकर की पार्टी SCF , मुस्लिम लीग के पूर्वी बंगाल वाले कोटे से ही अम्बेडकर संविधान सभा में पँहुचे थे | वहाँ की पुलिस मुस्लिम लीग के मुख्यमन्त्री सोहरावर्दी के हाथ में थी, पुलिस “शान्तिदूतों” का सहयोग कर रही थी | उस महिला और अन्य हिन्दुओं की चीख-पुकार सुनने वाला कोई नहीं था, गांधी जी और उनके बन्दरों ने भी आँख-कान-मुँह बन्द कर रखे थे, केवल ‘शान्तिदूतों’ का हित उन्हें सूझता था |
स्वतन्त्रता के बाद वह महिला काशी में बस गयी | उस महिला की एक बेटी कभी नहीं मिली, दूसरी को बचाकर काशी ले आयी |
एक चाँटा तो लग गया, दूसरे गाल को बिचारी ने बचा लिया !


पता नहीं हिन्दुओं का सच्चा इतिहास कब लिखा जाएगा, बहुत से गड़े मुर्दे हैं जिन्हें सरकारी इतिहासकारों ने दबा रखा है !! उन्हें सच्चा इतिहास पढ़ाने के लिए नहीं, दबाने के लिए वेतन मिलता है !! यह गुण्डागर्दी सेक्युलर नौकरशाही करती है जो JNU टाइप का कचड़ा पढ़कर UPSC की परीक्षा पास करती है | जनता भी समझ नहीं पा रही है कि इस देश का सबसे बड़ा रोग है कॉमन सिविल सर्विस जो ब्रिटेन ने अपने यहाँ नहीं रखा, उपनिवेश पर थोपा | संघ परिवार को भी लाठी भाँजने से छुट्टी नहीं है, उनके पास इतने बुद्धिजीवी ही नहीं हैं जो विषविद्यालयों में वामपन्थियों के बदले बहाल हो सकें !! पिछले तीन वर्षों के मोदी-राज में केन्द्र सरकार के अन्तर्गत JNU में तीन सौ नयी बहालियां शिक्षक पदों पर हुई है, सब के सब हिन्दू-विरोधी हैं !!
ये सेक्युलर लोग बड़े धूर्त हैं, मोदीराज में भी अपना काम निकाल ही लेते हैं, “राष्ट्रवादी” लोग हिन्दू-हिन्दू चिल्लाते रहें !!!

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