हमारी भारतीय मीडिया को क्या हो गया है? आज कोई भी टीवी चैनल देखो ऐसा लग रहा है कि किसी राजनीतिक पार्टी का चैनल देख रहा हूँ। ऐसा क्यूँ है के कुछ प्लेटफॉर्म हमेशा विदेशी धर्मो का प्रचार करते हैं और हिंदुत्व की बुराई। उन्हे “जय श्री राम” तो कम्युनल लगता है और “ला इलाहा इल्ललाह” मे सेकुलरिस्म दिखता है। ऐसा क्यूँ ? जबकि सही मायने मे दोनो ही शब्द अपने अपने धर्मो के सबसे पवित्र शब्दो मे से आते हैं। दोनो ही शब्दों मे कोई बुराई है क्या? आतंकवाद के मुद्दे पर तो वो हमेशा ही बोलते हैं के आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता है लेकिन जब भी किसी हिन्दु का नाम आता है हिन्दु आतंकवाद ट्रेंड करने लगता है। ऐसा क्यूँ है के जब भी कोई दूसरे धर्म को मानने वाला व्यक्ति दोषी होता है वो सभी मीडिया चैनल उसका नाम और धर्म छुपाने मे लग जाते हैं। और जैसे ही किसी हिंदु का नाम आता है, खुल कर उसका नाम और जाति बताने लग जाते हैं। कई मामलों मे तो अखबारों मे पन्डित का कार्टून बना कर छापा जाता है और हेडलाईन भी उसी तरीके से लिखा जाता है जिससे पता चले के दोषी हिन्दु है। लेकिन जब पूरी खबर पढ़ो तो दोषी किसी और धर्म का व्यक्ति निकलता है।
Dear NDTV 6 सालो मे क्या नरेन्द्र मोदी ने एक भी अच्छा काम नहीं किया है? ऐसा तो हो नहीं सकता के 6 साल तक कोई PM रहे और उसने एक भी अच्छा काम नहीं किया हो? नोटबन्दी, 370, सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक जैसे मुद्दे को भारत की जनता ने भरपूर समर्थन दिया और इस पर आपकी रिपोर्टिंग भी सबने देखी सब मे इन सब फैसलों की बुराई के सिवा कुछ भी नहीं था। क्या अच्छे फैसलों की प्रसंशा नहीं होनी चाहिए? आपकी रिपोर्टिंग से ऐसा लगता है के आप लोग खबर की सत्यता जाने बिना उसको दिखा देते हो और बाद मे वो झूठ निकलता है। आपकी रिपोर्टिंग किसी खास विचार धारा और किसी खास पार्टी के प्रवक्ता की तरह लगती है। जबकि आपका काम केवल सच को दिखाना होना चाहिए।
Dear Republic 6 सालो मे क्या नरेन्द्र मोदी के सारे फ़ैसले सही ही थे? ऐसा तो हो नहीं सकता किसी सरकार के सारे फ़ैसले सही ही हो। क्या जो गलत फ़ैसले हैं उनकी आलोचना नहीं होनी चाहिए? क्या आपने किसी एक भी फ़ैसले की आलोचना की? पालघर के मामले मे आपने जिस तरह से किसी पार्टी अध्यक्ष का नाम लिया क्या वो उचित था? क्या किसी पत्रकार को किसी पार्टी पर दोष देने का अधिकार है? आपकी रिपोर्टिंग से ऐसा नहीं लगता के आप किसी पार्टी के प्रवक्ता हो? किसी पार्टी पर दोष कोई पत्रकार लगाता है या कोई नेता? पालघर और सुशांत मामले को आपने जिस तरीके से उठाया वो प्रसंशा के लायक है लेकिन उस मामले मे किसी पार्टी पर दोष लगाना आपका कार्य नहीं है। एक दूसरे पर दोषारोपण करना नेताओ का कार्य है वो उसपर छोड़ दीजिए।
Dear Aajtak / India Today ऐसा क्यूँ है जब दिल्ली चुनाव मे केजरीवाल जी मुख्यमंत्री का चुनाव जीत जाते हैं तब आप का पत्रकार TV पर नाचता है? क्या ये पत्रकारिता है? क्या इन्ही वजहो से आप सालो तक नम्बर वन रहे? आपने जिस तरह से ताहिर हुस्सैन और रिया चक्रवर्ती का साक्षात्कार किया क्या वो उचित था? हो सकता है बाद मे वो निर्दोष निकले लेकिन क्या उस व्यक्ति जिस पर की इतना बड़ा आरोप हो उसको अपना ऐजेंडा फैलाने के लिए मंच देना उचित है? ऐसे तो आप हाफ़िज़ सईद का भी इंटरव्यू ले लो वो उचित होगा? आपके आधे पत्रकार किसी खास विचारधारा के हैैं और आधे दूसरे। आपने बड़ा खास कोम्बिनेसन बना रखा है। आप दोनो ही विचारधारा और उसको मानने वाली पार्टी को खुश रखने का प्रयत्न करते हो जो की गलत है। क्या आप लोग केवल खबर दिखान का कार्य नहीं कर सकते
आज कल किसी बात की खबर जानने के लिये किसी TV या अखबार की अवश्यक्ता है? क्या आज हम मीडिया के बिना किसी खबर की सत्यता नहीं जान सकते? आप सभी मीडिया चैनल को समझना होगा के किसी खास पार्टी की विचारधारा का प्रचार प्रसार करके आप अपनी ही विश्वसनीयता खो रहे हो। अब हमे जब किसी खास पार्टी की विचारधारा सुनना होता है तो उस खास चैनल को देखना पड़ता है। अब किसी बात की खबर भी चैनल के हिसाब से होती है। ये सब नहीं होना चाहिए। किसी पार्टी का पक्ष लेने के लिये यदि अर्नब गोस्वामी दोषी है तो रबीश कुमार भी दोषी है। किसी खास धर्म का समर्थन करने के लिए यदि सुरेश चह्वाण्के दोषी है तो अरफा खानम शेरवानि भी दोषी है। यदि रोहित सरदाना दोषी है तो राजदीप सर्देसाई भी दोषी है। अलग अलग नाम क्यू ले। दोषी आप सब हो। आप सब खबरे कम विचारधारा ज्यादा दिखात हो। ना तो हमे वो मीडिया चाहिए जो मंत्री बनाने के लिए लॉबिंग करती थी और ना ही वो मीडिया जो आज है।यदि ये सब जल्द से जल्द बंद नहीं हुआ तो भारत मे मीडिया की विश्वसनीयता बहुत जल्द समाप्त हो जायेगी।
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