फ्रांस में जिस तरह से बेरहमी से एक शिक्षक का सिर कलम किया गया और उसके बाद पूरा फ्रांस आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर खड़ा हो गया है, ऐसे में सवाल उठते हैं कि जब कट्टरवाद का यही घिनौना चेहरा भारत के कमलेश तिवारी ने देखा था तो फिर भारत एकजुट क्यों नहीं हुआ था। 


गौरतलब है कि दोनों के कत्ल का एक ही पैटर्न था दोनों पर एक ही मजहब के हमलावरों ने हमला किया था, मगर परिणाम यह रहा कि शिक्षक के कत्ल के बाद फ्रांस के राष्ट्रपति ने आतंकवादियों को सबक सिखाने की कसम खाई तो भारत के हुक्मरान गहरी नींद में सोए रहे। शिक्षक के कत्ल से नाराज फ्रांस की जनता कट्टरवाद के खिलाफ पुरजोर प्रतिरोध कर रही है तो वहीं दूसरी तरफ भारत के अखबारों में किसी कोनों में यह खबर सिमट कर रह गई थी।


ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि जब आखिर शिक्षक के कत्ल से पूरा फ्रांस एकजुट होकर खड़ा हो गया तो 2019 में कमलेश तिवारी के कत्ल पर भारत की 100 करोड़ हिंदू आबादी और उसकी चुनी हुई सरकार की आवाज़ किस डर से सरक कर मौन के गर्त में छुप गई थी। दरअसल पिछलेेे 70 साल से जिस तरह गलत इतिहास और संस्कृतिििि बोध भारतीयों के मन में बिठाया गया है , उसी वजह से कमलेश तिवारी के कत्ल पर पूरा भारत सोया रहा।

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