भारत के आधुनिक निर्माताओं को शायद इस बात का पता था कि असम एक दिन अवैध बांग्लादेशियों का खुला चारागाह बन जाएगा ।इसी बात को ध्यान में रखकर देश के प्रथम जनगणना के साथ ही केवल असम राज्य के लिए राष्ट्रीय नागरिक पंजी की सूची को 1951 में प्रकाशित करने का निर्णय लिया गया और 1951 में ही एनआरसी का प्रथम प्रकाशन किया गया। यह केवल असम राज्य के नागरिकों के लिए था जो भारतीय नागरिक होंगे। इसका उद्देश्य यह था कि विदेशी लोगों की पहचान हो सके और गौर करने की बात यह है कि भारत के आधुनिक निर्माताओं को इस बात का पता पता था कि अगर एनआरसी को असम में कारगर तौर पर लागू नहीं किया गया तो असम आने वाले कुछ ही वर्षों में बांग्लादेश उस समय के पूर्वी पाकिस्तान के घुसपैठियों का निर्वाह चरागार बन जाएगा।
असम में हो रहे अवैध बांग्लादेशी घुसपैठ को रोकने के लिए असम के कई संगठनों ने अपनी आवाज बुलंद की और इनमें सबसे महत्वपूर्ण आंदोलन ऑल असम स्टूडेंट यूनियन का था जिसका अंत असम सुक्ति के रूप में 15 अगस्त 1985 को समाप्ति हुआ जिसमें छात्र संगठन के प्रतिनिधियों एवं भारत सरकार के प्रतिनिधि के बीच एक मेमोरेंडम आफ अंडरस्टैंडिंग पर साक्षर हुआ जो आने वाले समय में असम राज्य के भूगोल, इतिहास, भाषा, कला, संस्कृति, रीति रिवाज इत्यादि को बचाने के लिए एवं असमिया जनमानस के हित में जो भी संभव हो पूरा करने का आश्वासन दिया गया इसके साथ ही असम में आने वाले विदेशियों को भारतीय नागरिकता प्राप्त करने का आधार वर्ष 24 मार्च 1971 कर दिया गया।
आश्चर्य की बात यह है कि असम राज्य की सरकार एवं केंद्र सरकार ने असम सूक्ति के आधार पर आधार 24 मार्च1971 तो कर दिया जिसका सीधा लाभ बांग्लादेशी घुसपैठियों को प्राप्त हुआ और वह आसानी से भारतीय नागरिक बन गए मगर असम में असमिया जाति के विकास एवं असम के भूगोल,भाषा, कला संस्कृति को बचाने एवं इसके विकास के लिए कोई ठोस कारगर कदम नहीं उठाए अब आलम यह है कि बांग्लादेशी घुसपैठिये असम विधानसभा के परिणाम को प्रभावित कर रहे हैं। सबसे दिलचस्प बात यह है कि अभी तक कि किसी भी सरकार ने मुस्लिम घुसपैठियों को रोकथाम करने के लिए कोई भी कदम नहीं उठाए हैं आपको आश्चर्य होगा कि असम के सर्वाधिक बांग्लादेशी मुस्लिम जनसंख्या ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे चर इलाके में निवास करती है।
इतिहास गवाह है कि प्राचीन सभ्यता नदियों के किनारे ही बसते थे मगर आज असम में जमीन जिहाद के माध्यम से मियां सभ्यता को राजनीतिक लाभ उठाने के लिए बसाया गया है। जहां तक बंगाली हिंदुओं के बांग्लादेश से विस्थापन की बात हो वे हिंदू परिवार विभिन्न प्रताड़ना को झेलने के बाद अपने घर बार छोड़कर विस्थापितों के रूप में भारत एवं असम में रहने के लिए बाध्य हैं वही बांग्लादेश से मुस्लिम घुसपैठ का होना सीधे तौर पर जिहाद का ही एक रूप है जिसे आजकल बोलचाल की भाषा में जमीन जिहाद के नाम से जानते हैं । आने वाले समय में इस्लामिक कट्टरवाद का उदाहरण अगर हमें असम में मिले तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि जिस तरह से असम में बांग्लादेशी मुसलमानों का घुसपैठ हुआ है वह अत्यधिक चिंता का विषय है।
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