क्या किसी ने अब तक गौर किया है कि अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव को हुए इतना समय बीतने के बावजूद भी अभी ये स्पष्ट नहीं हो सका है कि , असल में अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव जीता कौन और हारा कौन ?
असल में इसकी एक बहुत बड़ी वजह इस बार अमेरिकी राजनीतिक के इतिहास में हुई अब तक की सबसे बड़ी चुनाव घांधलेबाजी है। अमेरिका में आज भी मतदाता बैलेट पेपर से मतदान करते हैं और हास्यास्पद बात ये है कि भारत की तरह वहां अभी तक मतदाताओं के पास और न ही सरकार या संस्था के पास उन मतदाताओं के पहचान की ठोस जानकारी हेतु आधार कार्ड या मतदाता पहचान पत्र जैसा कोई कागजात नहीं होता है।
जैसा की ट्रम्प ने चुनाव से बहुत पहले ही अपने विरूद्ध की जा रही इस गहरी साजिश की भनक लगते ही ये बात सार्वजनिक कर दी थी कि इस बार उन्हें दोबारा सत्ता में वापस आने से रोकने के लिए विपक्षियों ने सारी हदें पार करते हुए ठीक उसी तरह दुश्मन देशों के सहयोग का मन बना लिया है जैसे भारत में कांग्रेस कभी पाकिस्तान तो कभी चीन की मदद से भाजपा सरकार को ख़त्म करने के प्रयासों में लगी रहती है।
अपनी स्पष्टवादिता और अक्खड़पन के कारण , विपक्ष और उससे भी अधिक मीडिया के निशाने पर रहने वाले ट्रम्प को चुनाव जीतने से रोकने के लिए न सिर्फ बड़े पैमाने पर नकली बैलेट और मत पत्रों का पूरा अम्बार लगा दिया गया।
बल्कि अब उससे कहीं अधिक आगे जाते हुए इस चुनाव में बिडेन द्वारा चीन रूस और ईरान की मदद से धांधली करवाने के सारे सबूतों और साक्ष्य को सहेजने वाले एक गुप्त सर्वर केंद्र पर हमला करके उसकी सुरक्षा में लगे 5 अमेरिकी सैनिकों को क़त्ल करके उस पर कब्जा करने की असफल कोशिश भी की गई है।
इस पूरी घटना की जानकारी देते हुए अमेरकी जनरल थॉमस मैकेनरी ने ट्रम्प से तब तक अपना पद नहीं छोड़ने का सन्देश भेजा है जब तक कि सर्वर में सहेजे गए सारे साक्ष्यों को उनके हवाले नहीं किया जाए। जनरल ने बताया की कि अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों में से एक के ही विशेष दस्ते ने इस सारे षड्यंत्र को अंजाम देने के लिए अमरीकी जासूसी संस्था के जर्मनी फ्रैंकफर्ट में स्थित एक गुप्त और विशेष सर्वर केंद्र पर हमला बोल दिया। इसकी रक्षा करते हुए 5 अमेरिकी सैनिकों ने अपनी जान देकर उसे बचा लिया।
यदि ये आरोप साबित हो जाते हैं तो बाइडन राष्ट्रपति बनना तो दूर इन आरोपों में जेल भेजे जा सकते हैं। दिसंबर में जब राष्ट्रपति चुनावों में जीत हार का निर्णय करने वाला इलेक्ट्रोल बोर्ड अपना निर्णय सुनाएगा तब ही पता चलेगा कि आखिर अगला राष्ट्रपति कौन होगा।
प्रधानमंत्री मोदी के पक्के मित्र रहे ट्रम्प को भी उसी तरह से साजिश और विपक्षियों द्वारा रचे जा रहे षड्यंत्रों से लड़ना पड़ रहा है और यहां तो फिर भी एक रब्बिश टीवी चैनल देश के विरुद्ध जहर उगलता है वहां तो ऐसे दर्जन भर पत्रकारिता की संस्थाएँ हैं जो इस षड्यंत्र में विपक्षियों के साथ शामिल है।
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