आजादी के वक्त पैदा हुई पीढ़ी ने अपनी पूरी जिंदगी कश्मीर को समस्या के रूप में देखते हुए बिता दी. 5 अगस्त 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की अगुवाई में भारत सरकार ने इसके समाधान की अब तक की सबसे ठोस पहल कर इतिहास रच दिया है. आजादी के बाद कश्मीर को संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत विशेष राज्य का दर्जा मिला और अनुच्छेद 35ए के तहत यहां के नागरिकों को विशेषाधिकार और बाहरी राज्यों के लोगों पर यहां पाबंदियां लगाई गईं. 370 पर तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने खुद कहा था का ये टेंपरेरी है और वक्त के मुताबिक घिस जाएगी. लेकिन वक्त बीतता गया और स्थिति जस की तस रही. पाकिस्तान से जंग के कई दौर आए और कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का बोलबाला 1990 के दशक में उस वक्त हो गया जब वहां से कश्मीरी पंडितों को हिंसा के जरिये भागने पर मजबूर कर दिया गया.

5 अगस्त को जब गृहमंत्री ने राष्ट्रपति के आदेश से धारा 370 को खत्म करने की जानकारी राज्यसभा में दी तो पूरे  देशभर में बहुत सकारात्मक प्रतिक्रिया हुई जिनको परेशानी हुई वो किसी न किसी रूप से कुछ राजनीतिक दल के सदस्य रहे होंगे। केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा था , ये ऐतिहासिक भूल थी, जिसका हम प्रायश्चित कर रहे हैं. हम ऐसे सदन के सदस्य हैं जो ये प्रायश्चित कर रहा है. दूसरी तरफ, कांग्रेस की तरफ से पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम ने सोमवार 5 अगस्त को ब्लैक डे कहा. उन्होंने सरकार पर एक राज्य को खत्म करने का आरोप लगाया । पर हम सब जानते है ब्लैक डे का रोना जितना कांग्रेस रो रही थी उतना ही आज पाकिस्तान रो रहा है । मतलब आप लोग समझ जाओ की कांग्रेस को भारत देश में कश्मीर के होने से कितनी परेशानी है ।

इन आरोपों प्रत्यारोपों के बीच ये जानना बेहद जरूरी है कि 370 से फायदा किसे हो रहा था और नुकसान किसे….
अनुच्छेद 370 के जरिये कश्मीर को एक अलग राज्य का दर्जा दिया गया था लेकिन उसे खत्म करते ही ये विशेष दर्जा खत्म होगा. विशेष दर्जा मिलने से वहां का अलग झंडा है. वहां दोहरी नागरिकता है. वहां कोई भारतीय ध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान करे तो उस पर मुकदमा नहीं चलता. वहां भारतीय दंड संहिता नहीं रणवीर दंड संहिता है. वहां की विधानसभा का कार्यकाल 6 साल का जबकि बाकी राज्यों में 5 साल. कश्मीर के निवासी के अलावा देश के किसी भी नागरिक को वहां संपत्ति खरीदने, राज्य सरकार में नौकरी करने की इजाजत नहीं है. कश्मीरी महिलाओं के भी अधिकारों में भेदभाव है.

अगर कोई कश्मीरी महिला पाकिस्तानी से विवाह करे तो उसके पति को कश्मीर की नागरिकता मिल जाती है लेकिन अगर वह किसी गैर कश्मीरी भारतीय पुरुष से विवाह कर ले तो उसकी कश्मीर की नागरिकता रद्द हो जाती है. इतना ही नहीं उसके अपनी पैतृक संपत्ति पर भी अधिकार सीमित हो जाते हैं और उसके बच्चे भी कश्मीरी नहीं माने जाते यानी वे राज्य के अधिकारों से वंचित रहते हैं. राइट टु एजुकेशन वहां लागू नहीं है. वहां 25 फीसदी गरीब बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में दाखिला नहीं मिलता है. वहां हिंदू अल्पसंख्यक हैं उन्हें आरक्षण नहीं मिलता है. वहां अनेक वर्गों को आरक्षण नहीं मिलता. वहां पंचायत चुनाव नहीं होते थे. लेकिन राष्ट्रपति के आदेश के बाद ये सारे प्रावधान शून्य होते हैं. यहां बताना जरूरी है कि भाजपा-पीडीपी की महबूबा मुफ्ती सरकार के गिरने के बाद राष्ट्रपति शासन के दौरान वहां मोदी सरकार ने पंचायत चुनाव कराए.

जहां तक अनुच्छेद 35ए का सवाल है तो इसे संवैधानिक संशोधन की प्रक्रिया का पालन किए बगैर जोड़ दिया गया. इसे एक्जीक्यूटिव ऑर्डर से जोड़ा गया. आर्टिकल 35ए से वहां की सरकार को राज्य के बाहर के लोगों से भेदभाव करने का खूब मौका देता है. इससे बाहरी लोग वहां वोट नहीं दे सकते, संपत्ति नहीं खरीद सकते, सरकारी नौकरी नहीं कर सकते. 1950-60 के दौरान केंद्र सरकार ने वहां सफाई कर्मचारियों को बसाया था और उन्हें परमानेंट रेजिडेंट सर्टिफिकेट भी मिला था. लेकिन इसकी शर्त रखी गई थी कि ये तभी जारी रहेगा जब उनकी आने वाली पीढ़ियां भी सफाई कर्मचारी का काम करती रहेंगी. उनकी पीढ़ियां अब भी सफाई का काम ही कर रही हैं लेकिन उन्हें इस पेशे से बाहर निकलने की इजाजत नहीं है. जाहिर है भारतीय संविधान में नागरिकों को मिले मौलिक अधिकारों का जम्मू-कश्मीर के विशेष राज्य के दर्जे वाले प्रावधानों में जमकर उल्लंघन होता है.

कश्मीर का औद्योगिक विकास इसलिए नहीं हो सका क्योंकि कॉर्पोरेट्स को वहां पर संपत्ति खरीदने की इजाजत नहीं है. वहां प्राइवेट मेडिकल, इंजीनियरिंग और अन्य शिक्षण संस्थान नहीं खुले जिससे कश्मीरी बच्चों को देश के अन्य भागों में जाकर पढ़ाई करनी पड़ती है. लेकिन कश्मीर में भारत का संविधान लागू होने के बाद अनुच्छेद 370 शून्य हो जाती है.

राज्यसभा में जवाब देते हुए इन आरोपों पर कि 370 और 35 ए जाएगी तो कयामत आ जाएगी, गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था, 370 के कारण कभी भी लोकतंत्र नहीं पनपा. इसके कारण भ्रष्टाचार पनपा. गरीबी बढ़ी. अस्पताल नहीं बने, शिक्षा संस्थान नहीं खुल सके. आतंकवाद की जड़ धारा 370 है.

दरअसल, धारा 370 का दुष्परिणाम जो पूरे देश ने भोगा वो आतंकवाद ही है. कश्मीरी और पाक प्रायोजित आतंकियों की वारदातों ने पूरे देश में भय का माहौल बनाया. अफजल गुरू जैसे तमाम उदाहरण हमारे सामने हैं।
केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर को राज्य को खत्म कर दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने का फैसला किया था. इसके लिए गृहमंत्री अमित शाह ने संवैधानिक प्रावधानों के तहत जम्मू-कश्मीर रिऑर्गेनाइजेशन बिल 2019 राज्यसभा में पेश किया । इसके पारित होने के बाद जम्मू-कश्मीर का पुनर्गठन संभव हो सका ।
 फिरकापरस्त और राजनीतिक लोगों को इसमें बहुत सी कमियां दिख रही हैं लेकिन ये उनका स्वार्थ बोल रहा है. नरेंद्र मोदी की पिछली और मौजूदा सरकार का ये सबसे बड़ा फैसला कश्मीर का नजारा बदलकर रखने वाला था क्योंकि कश्मीर ने अपने सबसे बुरे दिन देख लिए हैं. अब उसे तरक्की देखनी है और पूरे देश को कश्मीर की खूबसूरती देखनी है.

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