बाबरी पर मातम करने वालों मथुरा, काशी बाकी है..
6 दिसम्बर 1992 का दिन भारत देश की जनता की आंखों में रोमांच लेकर आता है। विहिप इस दिन को ‘शौर्य दिवस’ के तौर पर मनाती है तो वहीं दूसरी तरफ लिबरल-जिहादी-नक्सली संगठन इस दिन ‘हाय बाबरी हम न हुए’ का अलाप करते हैं। जब से राम जन्म भूमि के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ है तभी से देशभक्तों में आवाज मुकम्मल तौर पर उठ रही है कि काशी और मथुरा में भी मंदिर का पुनर्निर्माण जल्द से जल्द कराया जाए।
जब से राम जन्म भूमि के निर्माण का रास्ता साफ हुआ है तभी से लिबरल सेकुलर जिहादी गैंग में खलबली मची हुई है उनकी इस खलबली को और ज्यादा विस्तार देते हुए हिंदू समाज की तरफ से लगातार मांग की जा रही है कि अयोध्या की तर्ज पर मथुरा और काशी में भी मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो। गौरतलब है कि मथुरा में कृष्ण जन्म भूमि पर ईदगाह मस्जिद औरंगजेब के द्वारा बनवाई गई तो वहीं दूसरी तरफ काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में ज्ञानवापी मस्जिद को बनाया गया।
ईदगाह मस्जिद और ज्ञानवापी मस्जिद दोनों ही हिंदुओ के सबसे पवित्र स्थलों पर हिंदू समाज की संप्रभुता और वीरता को चुनौती देते हुए खड़े हैं। मुगल काल में चुन चुन कर हिंदु प्रतीकों को नीचा दिखाने के लिए वहां पर मस्जिद बनाई गई ताकि हिंदू समाज अपने गौरव, अपनी वीरता, अपने पौरुष को भूलकर गुलामी की मानसिकता में जी सके। मगर जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत के शासन पटल पर आए हैं तभी से हिंदू समाज अपने पुराने खोए हुए गौरव को वापस पाने के लिए अपनी आवाज बुलंद तौर पर उठा रहा है और इसी कड़ी में अयोध्या निर्माण के बाद काशी और मथुरा में मंदिर की मांग को जोरदार तरीके से उठाया जा रहा है।
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