जिन मुगलों को आज तक सिर्फ विध्वंस , नाश करना , तोड़ना फोड़ना ,नष्ट करना ही आता हो वही इनकी ज़िंदगी का मकसद और दुनिया में सिर्फ यही एक काम हो करने वाला तो ऐसे में फिर इनसे इससे अधिक या अलग की उम्मीद रखना ही बेमानी है।
हज़ारों सालों से अपनी वहशत और इस कबालाई प्रथा को अपने बुर्के दाढ़ी में छिपाए ये पूरी दुनिया में सिर्फ बर्बादी और इंसानियत को मिटाने के जेहाद में लगे हुए हैं। कायरों की तरह बम बंदूकों की दहशत का जोर जब इन पर नहीं चलता तो कहीं लव जेहाद ,कहीं जमीन जेहाद जैसे अपराधों में लिप्त हो जाते हैं उससे भी न हुआ तो किसी मंदिर , किसी मूर्ति , आदि को तोड़ कर अपनी जहालत का परिचय संसार को देते रहते हैं।
भारत के दोनों तरफ के मुग़ल पड़ोसी इन दिनों फाकाकशी और मुफलिसी के जिस दौर से गुजर रहे हैं उसमें अपनी ही जलालत और जहालत के वहशीपन में हिन्दुओं , हिन्दू बस्तियों ,मंदिरों और मूर्तियों को तोड़ कर ,जला कर ,फेंक कर अपने गजवा ए हिन्द के चकनाचूर हो चुके ख़्वाब की खीज मिटा रहे हैं।
बीते शुक्रवार को ही ,बांग्लादेश के पाबना जिले में स्थित उपजिले ,शुजानगर के अहमदपुर बाड़ी काली मंदिर में स्थापित काली माँ की तीन मूर्तियों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया। भूखे नंगे जाहिल मुगलों ने इसके बाद मूर्तियों के गहने और वस्त्र भी लूट लिए। इसकी शिकायत मंदिर के व्यवस्थापक समिति के अध्यक्ष श्री दिलीप चंद्र सूत्रधार ने , स्थानीय अमीनपुर पुलिस थाने में कराई है।
***पोस्ट में प्रयुक्त चित्र प्रतीकात्मक है और गूगल खोज इंजन से साभार लिया गया है।
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