क्या है हलाल सर्टिफिकेट?
शरीयत के हिसाब से इस्लाम मे आप ब्याज न ले सकते हैं, न ही दे सकते हैं, अतः गैर इस्लामिक देशों में इस मजबूरी की दुहाई देकर इस्लामिक बैंक की स्थापना की गई, मलेशिया में वर्ष १९८३ में ‘इस्लामिक बैंकिंग एक्ट’ के अनुसार ‘इस्लामिक बैंकिंग एन्ड फाईनान्स’ (IBF) बैंक का आरंभ हुआ । यह बैंक धार्मिक परंपराओं पे आधार पर होने से उसे भारत जैसे अनेक गैरइस्लामी देशों में स्वीकारा नहीं गया। वर्ष २०११ में मलेशिया की सरकार ने स्थानीय वाणिज्य मंत्रालय के द्वारा ‘हलाल प्रॉडक्ट इंडस्ट्री’ (HPI) आरंभ की । वर्ष २०१३ में क्वालालंपूर में ‘वर्ल्ड हलाल रिसर्च’ एवं ‘वर्ल्ड हलाल फोरम’ के अधिवेशन में हलाल अर्थव्यवस्था की संकल्पना रखी गई। इससे ‘हलाल प्रॉडक्ट इंडस्ट्री’ (HPI) एवं ‘इस्लामिक बैंकिंग एन्ड फाईनान्स’ (IBF) इनमें समन्वय बनाकर उन्हें बल देना सुनिश्चित किया गया । इसके प्रसार के लिए निजी निवेश के द्वारा ‘सोशल एक्सेप्टेबल मार्केट इन्वेस्टमेंट (SAMI) हलाल फूड इंडेक्स’ आरंभ किया गया । विश्व में इस प्रकार का यह पहला प्रयास था।
हम ये जानते हैं कि इस्लाम मे अवसरवाद का एक अलग ही महत्व या रुतबा है, संगीत हराम है पर अज़ान के नाम पर 5 बार पिछवाड़ा उठाकर चिल्लाना हलाल है, जैसे कुछ वर्ष पहले नमाज के लिए दी जानेवाली अजान की पुकार को पवित्र ध्वनि मानकर ध्वनियंत्र का उपयोग कर अजान देना ‘हराम’ माना जाता था; परंतु इस्लाम के प्रसार की दृष्टि से ध्वनियंत्र सहायक हो सकता है, इसे ध्यान में लेकर कुछ समय पश्चात उसे स्वीकारा गया। आज प्रत्येक मस्जिद से गूंजनेवाली ऊंची आवाज के कारण सामाजिक शांति भंग होने की स्थिति बन गई है। इसी प्रकार इस्लामी अर्थव्यवस्था बनाने हेतु पुराने नियम तोड-मरोडकर हलाल संकल्पना को व्यापक बनाया जा रहा है। कुछ वर्ष पूर्व शृंगार (मेकअप) करना भी हराम माना जाता था; परंतु अब सौंदर्यप्रसाधनों को हलाल प्रमाणित किया जा रहा है।
चुनौतियां
भारत जैसे देशों की सरकार धार्मिक आधार पर जब इस्लामिक बैंक को अवैध घोषित कर चुकी हैं तो ये हलाल प्रमाणपत्र उसका विकल्प बन गया, ये प्रमाणपत्र कौन देगा? ज़ाहिर है कोई इस्लामिक संगठन, भारत की अर्थव्यवस्था यदि देखें तो दुनिया के प्रथम 5 देशों में से एक है और तेज़ी से बढ़ रही है, इस से होने वाली अपार कमाई उन संगठनों के हाथ आ चुकी है, क्योंकि आपने समान लेते समय शायद ध्यान नही दिया होगा उसके पीछे इनका लोगो लग चुका है, आटा, मैदा, सूजी, नमक, सरसों का तेल जैसी रोज़ इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं पर इनका निशान लग चुका है।
इसी ट्वीट के बाद ये मुद्दा नज़र में आया, पतंजलि भी अपने ब्रांड लेकर इन कठमुल्लों की संस्था के पास जा चुकी है तो आप इनके प्रभाव की कल्पना कीजिये।
ये आज किसी को बताने की ज़रूरत नही है कि मलेशिया वो देश है जिसने ज़ाकिर नाइक जैसे आतंकवादी को शरण दी, बल्कि आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त संगठनों को प्रतिबंधित करने में भी ये रोड़ा अड़ाता है, वहां से शुरू हुए इस इस्लामिक गुप्तरोग का परिणाम कितना भयानक हो सकता है ये आप कल्पना भी नही कर सकते, इनका मकसद विश्व का इस्लामीकरण है जिसके लिए आतंकवादी गतिविधियों में प्रयोग होने वाली धनराशि के एक बहुत बड़े हिस्से की इस हलाल सर्टिफिकेट द्वारा, व्यवस्था की जा रही है। अरब देशो ने अब इन्हें पैसे देने बन्द कर दिए है तो इस प्रकार की संस्थाओं से न केवल ये धन अर्जित कर रहे हैं बल्कि आपके सामने आपके देश मे इस्लामिक बीज का रोपण भी कर रहे हैं जो आगे जा कर इतना बड़ा और विषैला वृक्ष बनेगा जो हमारे समाज को खा जाएगा।
निदान:
जिन वस्तुओं पर ये मार्क लगा हो उसका बहिष्कार करें, फिर भले वो पतंजलि का ही क्यों न हो, ध्यान रहे, मुसलमान मॉल, शॉपिंग काम्प्लेक्स और रिलायन्स फ्रेश जैसी दुकानों से सामान न के बराबर लेते हैं वो स्थानीय मुस्लिमों से खरीदारी करते हैं अतः इन प्रमाणपत्र वालों के ग्राहक हिन्दू ही मुख्य रूप से होते हैं। आपके विरोध से इनको करारी चोट पहुंचने वाली है। बिना हलाल प्रमाणपत्र की चीज़ों की अधिक से अधिक मांग करें।
समय रहते अगर आप न सचेत हुए तो इसकी समाज को बहुत बड़ी कीमत चुकानी होगी, सरकार ही हर काम करें ज़रूरी नही, सरकार हमने चुनी है तो क्यों न उसकी सहायता भी हम अपने स्तर से करें।
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