पुलकेसीन (पुलकेसी राज) दक्षिण गुजरात के चालुक्य वंश की शाखा के राजा थे। ये कर्नाटक के वातापी शाखा के थे। गुजरात पर हुए अरब आक्रमण को मजबूत तरीके जवाब देने के लिए इतिहास में जाने जाते है। पुलकेसीन ने 731 ईस्वी में अपने भाई की खाली जगह पर नवसारिका (नवसारी) की राजगद्दी संभाली थी।
जब जालोर के राजा नागभट्ट प्रथम ने आरबों के विरुद्ध सभी भारतीय राजाओं को एक होकर लड़ने के लिए अह्वाहन किया तभी सभी भारतीय राजा एक होकर आरबों को जवाब देने लगे। उनकी अगवाई मे भारत मे विविध जगह भारतीय राजाओं ने संगठन बनाना शुरू कर दिया।
738 ईस्वी में जब आरबों की सेना गुजरात और दक्षिण भारत पर विजय के सपने लिए दक्षिण की और जा रही थी। तभी वहाँ सूरत के नवसारी के पास भारतीय राजाओं की संगठित सेना ने आरब सेना को चुनौती दी। उस युद्ध के प्रमुख सेनापति पुलकेसीन थे। विक्रमादित्य द्वितीय का सेनापति दंती दुर्ग(जो बाद मे विक्रमादित्य द्वितीय की मृत्यु के बाद उत्तराधिकारी कीर्तिवर्मन को हटाकर राजा बना) कच्छ के काछेला, मैत्रक, और उत्तर गुजरात के चवोत्कट (चावडा) थे। नागभट्ट प्रथम से भी सैन्य सहाय मिली थी।
भारत के राजा बार बार आरबों के आक्रमण से त्रस्त थे और जनता में भी इन विदेशी आक्रांताओं के प्रति रोष था। इसीलिए भारतीय राजा एक भी आरब सैनिक को जीवित नहीं छोडना चाहते थे। इस युद्ध मे भारतीय सेना ने ऐसा शौर्य दिखाया की आरब सेनापति हकम अपनी बची कुची सेना ले के भाग निकला। लेकिन भारतीय राजा इस बलात्कारी, गौ मांस भक्षी और मूर्ति भंजक को जीवित छोडना नहीं चाहते थे। जब वे भाग रहे थे तभी आरब सेना जिस जिस प्रदेश से गुजरी वहाँ के शासको ने उन पर आक्रमण किया। सैन्धव, काछेला जैसी सेना ने आरबों को लगभग नष्ट कर दिया। आरबों के पास जान बचाकर भागने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। आरबों ने आब जमीन की बजाय समुद्री मार्ग से भागने की सोची। जब बची कूची सेना समुंदर के पास पहुंची और समुद्री मार्ग से भागकर देबल तक पहुँचने के लिए निकली तब आक्रामक मेर जाती के हाथो उनका सेनापति हकम मारा गया।
इस युद्ध में सेनापति पुलकेसीन के अतुल्य शौर्य की वजह से उसे अनेक उपनाम मिले अवनिजनश्रया, चालुक्य कुलंकार, पृथ्वी वल्लभ, परम भट्टारक ये जानकारी उसके नवसारी अभिलेख से विख्यात शिलालेख से मिलती है।
क्या ऐसे वीरता भरे प्रकरणों को पाठ्य पुस्तक का हिस्सा नहीं होना चाहिए?
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