कश्मीर: महर्षि कश्यप की ये भूमि 19 जनवरी 1990 से पहले वास्तव में स्वर्ग हुआ करती थी, कश्मीरी हिंदुओं को तनिक भी अंदाज़ा नही था कि उनके यहां काम करने वाला हैदर, उनका पड़ोसी वसीम, उनका भाई से भी अधिक प्रिय मित्र अशफ़ाक़ अचानक हैवान बन जाएंगे, उन कश्मीरी हिंदुओं ने तो नज़्में सुनी थीं कि “मज़हब नही सिखाता आपस मे बैर रखना” उन्हें अंदाज़ा ही नही था कि आज से 1400 साल पहले ही कुरान की सूर अल तौबा में आयत संख्या 6 से 9 में गैर-मुसलमानों को धोखे से, घात लगाकर मार देना जायज़ और जिहाद ठहरा दिया गया था। “सभी मुसलमान एक से नही होते” यही झूठ उन्हें वास्तविकता से बहुत दूर ले गया, जबतक समझ पाते बहुत देर हो चुकी थी, हम इतिहास पढ़ते हैं पर उस से शिक्षा नही लेते, 19 बार क़ुरान की कसम खाने और माफी मांगने के बाद भी मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को धोखे से पकड़ा, मारा और उनकी प्रिय पत्नी संयोगिता को बाज़ार में बेचा, क्योंकि उसने जिस क़ुरान की कसम खाई थी वही क़ुरान उसे इस पाप को करने का आदेश दे रही थी, माफी तो बस “अल ताकिया” थी।

“हमे कश्मीर चाहिए, हिन्दू मर्दों के बिना और हिन्दू औरतों सहित” ऐसे पोस्टर उन दिनों पूरी घाटी में लगाये गए, 19 जनवरी 1990 की रात की कहानी जो कश्मीरी हिंदुओं की जुबानी मैंने सुनी, उसे लिखते हाथ कांप जाते हैं, उनकी अबोध बच्चियों पर झुंड के झुंड बलात्कार कर रहे थे, वो बच्चियां जो कभी प्यार से इस झुंड के कई लड़कों को भाई कहा करती थी।

मर्दों को गोलियों से भून डाला जाता था, दर्द से कराहते, मदद मांगते मर्दों के गले कलमा पढ़कर रेते गए, कश्मीर की गलियां, सड़कें खून से लाल हो गईं, जो भाग पाए उनके पास केवल ज़िन्दगी बची, जो नही भाग पाए उनकी चीखें आज भी कश्मीर की वादियों में गूंजती इंसाफ मांग रही हैं। “हिंसा किसी धर्म मे जायज़ नहीं है” ये झूठ उस दिन नंगा हो गया जब मस्जिदों से निरंतर अल्लाह के हवाले से लोगों को कत्ल करने के आदेश दिए जा रहे थे, आज कश्मीर की जो दशा है वो देश के हर हिस्से की हो सकती है, दिल्ली ने पिछले वर्ष इसका नमूना देखा, हिन्दू समाज का संगठित होना और उन्ही की भाषा मे जवाब देना आज की ज़रूरत है, हमें न 19 जनवरी 1990 को भूलना है और न कश्मीरी हिंदुओं के अपराधियों को क्षमा करना है। हमे इतिहास से शिक्षा लेकर अपना भविष्य सुरक्षित करना है ताकि कोई वो दिन न देखे जो हमारे कश्मीरी भाइयों ने देखा था।

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