अपने वोट बैंक को पक्का करने के लिए राज्य सरकारें किस तरह से संविधान की व्यवस्थाओं और न्याय के सामान्य नियमों को भी ताक पर रख कर मनमानी कर रही हैं इसका एक उदाहरण केरल में सामने आया। केरल सरकार ने वर्ष 2011 में 5000 मुस्लिम युवतियों को अल्पसंख्यक कोटे से विशेष वजीफा देने की योजना चला रखी थी जिसे वर्ष 2015 में बढ़ा कर ईसाइयों को भी उसमें से एक भाग देने के लिए विस्तार दे दिया गया।

केरल सरकार के इस भेदभावपूर्ण और पक्षपाती योजना के विरूद्ध केरल उच्च न्यायालय में दाखिल याचिका का निपटारा करते हुए न्यायालय ने इसे अनुचित और न्याय सम्मत नहीं होने के कारण रद्द करने का फैसला सुनाया जो केरल सरकार की पक्षपाती योजना पर एक करारा तमाचा जैसा लगा है।

ज्ञात हो की इस याचिका में इस बात को ही प्रमुखता से रखा गया था कि सरकार कोई भी ऎसी योजना नहीं बना सकती जिसमें सिर्फ दो समुदायों को विशेष तरजीह देते हुए वजीफा दिया जा रहा है। ये अन्य समुदायों /पिछड़ों /दलितों के साथ अनुचित और अन्याय है।

अदालत ने अपने निर्णय में याचिकाकर्ता के तर्कों और तथ्यों को सही पाते हुए यही निर्णय दिया कि सरकार द्वारा अल्संख्यक वर्ग में से भी दो विशेष वर्गों /समुदायों को उपवर्गों में चिन्हित करके उनके लिए विशेष योजना बनाना विधि और न्याय के अनुरूप नहीं है इसलिए सरकार को इन योजनाओं को सभी को बराबर का स्थान देना होगा।

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