किसान आंदोलन को भरपूर हवा देने की कोशिश के बावजूद विपक्ष किसानों को बरगला नही पा रहा है और आंदोलन एक राज्य विशेष का प्रायोजित आंदोलन नज़र आ रहा है। दो मसमले ऐसे हुए जिन्होंने प्रदर्शनकारियों की नींद उड़ा दी है जब नए कानून के तहत किदां ने केस करके पैसा ले लिया और दूसरे में आमदनी 10 करोड़ रुपये तक बड़ी।
’60 सालों वाला सिस्टम ठीक तो किसान बदहाल क्यों?’: कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से कमाने वाले किसानों ने प्रदर्शनकारियों को लताड़ा
जहाँ एक तरफ दिल्ली में ‘किसान आंदोलन’ के जरिए खालिस्तानी ताकतें फिर से सिर उठाने की कोशिश में लगी हैं और सरकार द्वारा बार-बार आश्वासन के बावजूद पंजाबी सलेब्रिटी आग में घी डालने का काम कर रहे हैं, वहीं गाँव के खेतों में काम कर रहे ऐसे किसान भी हैं, जिन्हें इन कृषि कानूनों का फायदा मिला है। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करने वाले कई किसानों ने अपने अनुभव साझा किए। आइए देखते हैं कैसे ये कृषि कानून किसानों के लिए लाभदायक हैं।
आंदोलनकारियों का कहना है कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से उनकी जमीनें प्राइवेट कम्पनियाँ हड़प लेंगी, जबकि बिल में इसका पूरा प्रावधान है। आपको उत्तर प्रदेश के बागपत स्थित सिसाना गाँव के बारे में जानना चाहिए, जहाँ 30 वर्षों से कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग हो रही है। इस गाँव की सफलता की दास्तान इसी से समझ लीजिए कि यहाँ के किसानों को अपनी उगाई सब्जियों के भाव दिल्ली स्थित आजादपुर मंडी से ज्यादा मिलती है, जो देश की शीर्ष मंडी कही जाती है।
‘दैनिक जागरण’ में प्रकाशित एक खबर में उन किसानों से बात कर उनके निजी अनुभव साझा किए गए हैं, जिनकी हरी सब्जियाँ खेत से ही बिक जाती हैं। किसान सुनील कुमार ने अपनी खेत में गाजर और नलकूप के कमरे में रखी कंपनी की प्लास्टिक की खाली कैरेट और काँटा दिखा कर बताया कि 3 एकड़ मूली की खेती करते हैं। उनकी उगाई मूली को कम्पनी ने 3 से 4 रुपए किलो खरीदा। वहीं मंडी में मात्र 1.5-2 रुपए मिलते हैं।
उन्होंने 3 बीघा में डेढ़ माह की मूली खेती से 30,000 रुपए आराम से कमा लिए। गाजर भी 12-15 रुपए किलो बिक जाता है। उन्होंने बताया कि कम्पनी तुरंत भुगतान करती है, आज तक कभी देरी नहीं हुई। हर सप्ताह बैंक में रुपए आ जाते हैं। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा कि इसका विरोध क्यों हो रहा है? शलजम की खेती करने वाले जितेंद्र चौहान ने बताया कि उन्हें मंडी से ज्यादा भाव मिलता है, कभी कम नहीं।
गाँव के किसानों का कहना है कि केंद्र सरकार किसानों का अहित नहीं कर रही है। एक किसान रणवीर सिंह ने बताया कि उनके गाँव में 1987 से ही कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग चली आ रही है। शुरू में वहाँ भी विरोध हुआ था, लेकिन एक बार फायदा होने लगा तो सभी किसान ऐसा ही करने लगे। गाजर, मूली, शलजम, धनिया, पालक, सरसों, बैंगन, टमाटर, हरी मिर्च और अन्य हरी सब्जियों की खेती वहाँ धड़ल्ले से हो रही है।
वहीं सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में एक किसान ने बताया कि वो छठ में गाँव गया था और वहाँ गेहूँ बोया जा रहा है, उसके पिता को फुर्सत ही नहीं है। साथ ही कहा कि वो सारे किसान नेताओं से पूछ रहे हैं कि पिछले 60 वर्षों से जो कानून चल रहा था, वो ठीक था तो किसान खुशहाल था क्या? उन्होंने कहा कि अगर किसान खुशहाल थे तो क्या अब 3 महीने में ही सारी बदहाली आ गई? उन्होंने इसके लिए कॉन्ग्रेस को जिम्मेदार ठहराया।
किसान ने पूछा कि मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में किसान नहीं हैं क्या? वहाँ के किसान ही जाकर पंजाब में इनका काम करते हैं। उन्होंने कहा कि मोदी को बदनाम करने वाले अपने हाथ से काम नहीं करते, वो हमारे मेहनत के बल पर टिके हुए हैं। वहीं उज्जैन के एक किसान ने बताया कि वो 80 बीघा में गेहूँ, प्याज लहसुन, आलू और खरीफ में सोयाबीन की खेती करता है। उसने बताया कि ये कृषि कानून किसानों के हित में हैं।
पीएम मोदी ने भी महाराष्ट्र के धुले ज़िले के किसान जितेन्द्र भोइजी का जिक्र किया था, जिन्होंने कृषि कानूनों का सटीक इस्तेमाल किया। पीएम ने बताया था कि जितेन्द्र भोइजी ने मक्के की खेती की थी और सही दामों के लिए उसे व्यापारियों को बेचना तय किया। फसल की कुल कीमत तय हुई करीब 3.32 लाख रुपए। तय ये हुआ था कि बाकी का पैसा उन्हें 15 दिन में चुका दिया जाएगा। लेकिन, बाद में परिस्थितियाँ ऐसी बनी कि उन्हें बाकी का पेमेन्ट नहीं मिला। ऐसे में नए कृषि कानून उनके काम आए।
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