एक पुरानी कहानी है —

किसी गाँव में एक खलील मियां रहते थे । अचानक एक दिन खलील मियां का दाया पैर नीला हो गया तो वे डॉक्टर साहब के यहां पहुँचे । डॉक्टर साहब ने देखा और कहा कि खलील मियां आपके पैर में ज़हर फैल गया है अगर इसे फौरन काटा नहीं गया तो पूरे बदन में ज़हर फैल जाएगा । अब मौत का डर था तो खलील मियां ने मंजूरी दे दी । डॉक्टर साहेब ने दायाँ पैर काट दिया ।

कुछ दिन तक मामला सब ठीक रहा फिर बायाँ पैर नीला हो गया । अब खलील मियां फिर डॉक्टर साहब के यहां पहुंचे। डॉक्टर साहब ने मुआयना किया और कहा खलील मियाँ बाएँ पैर में भी जहर फैल गया है । बाएँ पैर को भी काटना पड़ेगा नहीं तो जान भी जा सकती है । मरता क्या न करता! खलील मियां ने बायाँ पैर कटवाने की भी सहमति दे दी ।
अब डॉक्टर साहब ने बायाँ पैर भी काट दिया और लकड़ी के दो नकली पैर लगा दिये। एक हफ्ता तक सब ठीक रहा पर अब एक हफ्ते के बाद लकड़ी के दोनों पैर भी नीले हो गए । खलील मियाँ घबराए । पालकी पर बैठकर डॉक्टर साहब यहां आए और पूछा डॉक्टर साहब अब ये क्या है ? ये नकली पैर कैसे नीले हो रहे हैं ? इन पैरों में जहर कैसे फैल सकता है । डॉक्टर साहब ने पूरा मुआयना करने के बाद कहा कि खलील मियाँ , गलती हो गई। आपकी तो लुंगी रंग छोड़ रही है। पैरों में कोई जहर नहीं फैला था। पैर गलती से कट गया । भूल चूक माफ ….अब मैं चलता हूँ।

अब इस कहानी में पता है कि खलील मियां कौन हैं। खलील मियां हैं अफगानिस्तान और डॉक्टर साहब हैं अमेरिका। बीस साल बाद अफगानिस्तान में वही तालिबान आ गया है, मतलब दुनिया गोल और खाया पिया कुछ नहीं गिलास तोड़ा बारह आना। यही है अमेरिकी शांति रक्षक दल का T-20 मैच । बीस साल बाद प्रयास सिफर से चलकर सिफर हीं रहा। अफगानिस्तान फिर से वहीं आ चुका है । कोई मुस्तकबिल नहीं कोई माज़ी नहीं। और वर्तमान का कहना हीं क्या? तालिबान हैं गोलियां हैं और अमेरिका के छोड़े हुए नए नकोर असलहे हैं हेलिकॉप्टर है युद्धक विमान है । अफगानिस्तान में फिर से वही तालिबान है।
पहले तो अफगानिस्तान के लोग कबीलाई संस्कृति के अभ्यस्त हो चुके थे और इस बीस साल में अमेरिकी झूठे दिलासों ने उन्हें दकियानूसी से तरक्कीपसंद बना दिया था । अफगानी खबातीनें आजादी की आदी हो गई थी। हिजाब दुपट्टे में तब्दील हो गया था पर अब दुपट्टे का हिजाब बनाना पड़ेगा और ऐसा नहीं करने पर संगसार होने की पूरी संभावना है । उन्हें बचाने के लिए ना अमरीका आएगा ना पाकिस्तान। हां अमेरिका के पास एक मौका जरूर है पाकिस्तान से यह पूछने का कि 20 साल तक जिस अमेरिका को वह तालिबान के खिलाफ एक विश्वसनीय दोस्त बन कर झांसा देता रहा है उसी तालिबान की सत्ता को दो पल में उसने स्वीकृति कैसे दे दी? अमेरिका को भी सोचना चाहिए … मनन करना चाहिए के पाकिस्तान में कब कब झूठ बोला होगा ? अमेरिका को सोचना पड़ेगा कि सेकुलर सिर्फ हिंदू होता है बाकी सभी कौमें कम्युनल ही होती हैं फिर चाहे वह यहूदी हो ईसाइयत हो या इस्लाम। पर अब हाल यही है कि कहानी में खलील मियां का पैर कटा हुआ है और अफगानिस्तान में अफगानियों का मुस्तकबिल । और डॉक्टर साहब वाशिंगटन डीसी पहुंच चुके है।

आमीन।।

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