सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत को और उससे भी एक सप्ताह अधिक वो गया सुशांत की पूर्व प्रबंधक मित्र दिशा सालियान की भी संदिग्ध परिस्थिति में ही मौत हुए | समझ ये नहीं आ रहा है कि इतना समय बीत जाने के बाद भी जो पुलिस कुछ भी कह बता सकने की स्थिति में नहीं है ,क्या ये वही पुलिस है जिसकी बहादुरी और जीवटता पर बनी सिंघम जैसी पिक्चरों में हम उनकी वीरता देख कर लहालोट हो उठते हैं | 

वो मुम्बई पुलिस जो अपराध की दुनिया से लेकर धारावी जैसे एशिया के सबसे बड़े स्लम में पनपे तमाम अपराधियों से जूझती रही है | आतंकी हमले जैसी बड़ी वारदात घटते भी अपने सामने देख चुकी है वो ही पुलिस दो फिल्मकार युवाओं की मौत की सच्चाई तक नहीं पहुँच पा रही है , या यूँ कहा जाए की जानबूझ कर पहुंचना ही नहीं चाह रही है | 

शुरू से ही पुलिस की तफ्तीश का रुख ,जैसा कि प्रदेश के गृहमंत्री ने तुरंत बयान भी दे दिया कि सुशांत सिंह ने आत्महत्या की थी , इसी नज़रिये से आगे बढ़ना शुरू हुआ और जिस तरह से बुला बुला कर सबसे पूछताछ शुरू की उसने भी स्पष्ट कर दिया कि पुलिस उन सब बयानों में वो वजह तलाशती रही है जिसके जिम्मे मढ़ कर इस असाधारण मौत को साधारण सी आत्महत्या में परिणत किया जा सके | 

कानून का अंतिम उदेश्य क्या होता है ? अपराध कारित करने वाले गुनाहगारों को तलाश कर ,साक्ष्यों के आधार पर कानूनन उन्हें इसकी सज़ा दिलवाना | तो फिर ये मुम्बई पुलिस ,पटना पुलिस और सीबीआई के बीच आपसी खींचतान क्यों और किस वजह से करवाई जा रही है ये आम आदमी की समझ से परे है | 

रही सही कसर प्रदेश सरकार में सत्तासीन राजनेता अपने गैर जिम्मेदाराना और अनावश्यक बयान दे दे कर पूरी कर रहे हैं | अपराध से जुडी तमाम एजेंसियों के तेज़ तर्रार अनुभवी पुलिस अधिकारियों की एक टीम इस काम को आपसी सामंजस्य से इससे कहीं बेहतर और कहीं अधिक तेज़ कर सकती थी | मगर  गैर जरूरी रूप से नवोदित फिल्मकारों की दुखद मौत को रोज रोज भुनाए और उछाले जाने वाला मुद्दा भर बना कर रख दिया गया है | 

सारे घटनाक्रम एक बात बिलकुल स्पष्ट दिख रही है कि ,इस सारे घटनाक्रम में भी एक बड़ा कारण ,अथाह पैसा और उसकी छीना झपटी ही नज़र आ रही है | सुशांत की महिला मित्र और अब इस सारे घटनाक्रम का सबसे संदिग्ध आरोपी रिया चक्रवर्ती के इर्द गिर्द ही दसियों करोड़ रूप घूमते दिख रहे हैं | और अब इस बात पर भी कोई हैरानी नहीं होती कि ऐसे कुकर्मों का पता होते हुए भी खुद का परिवार इसे रोकना ,अनुचित कह कर टोकना तो दूर ,खुद भी  इन सबका साझीदार हो जाता है | 

ऐसा नहीं है कि हिंदी सिनेमा में इस तरह की घटना /अपराध पहली बार हुआ है और ये भी मान कर चलिए ये मौत भी आखिरी मौत नहीं है , हाँ हुआ ये जरूर है कि इस बार ये गुनाह हज़म नहीं हो सका | बहुत पहले हुई परवीन बॉबी , फिर दिव्या भारती के मौत की बात अगर हम न भी करें तो सिर्फ पिछले कुछ समय में ही जिया खान , प्रत्युषा बनर्जी , दिशा सालियान ,सुशांत सिंह राजपूत ये सारी संदिग्ध मौतों पर कैसे पुलिस और प्रशासन कुंडली मार कर बैठ जाते हैं : ये देख कर हैरानी होती है ? 

अब जबकि मामला खुद न्यायपालिका के न्यायाधिकार क्षेत्र में विचाराधीन है तो ऐसे में बिना किसी अतिरिक्त टिप्पणी टीका विश्लेषण में पड़े ,निर्णय की प्रतीक्षा करनी चाहिए | साथ ही साथ इस विरोधाभास पर भी विचार करते रहना है की 

सच को बाहर है लाना लेकिन प्लीज़ CBI को मत बुलाना

ऐसा बोलने ,कहने ,सोचने वाले आखिर कौन सा सच छुपा कर अपनी असलियत पर पर्दा डालने को बेचैन हैं ? इस पूरी घटना के सच को बाहर आने से रोकने के लिए इतना राजनैतिक ,प्रशासनिक दबाव और पक्षपात क्यों ? 

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