“अजमेर स्थित अढ़ाई दिन का झोपड़ा की कहानी बेहद रोमांचक है। यह आलीशान मस्जिद मुगल काल की कला का अद्भुत नमूना है। ऐसा माना जाता है कि इस मस्जिद को अढ़ाई दिन में बनाया गया था इसलिए इसका नाम अढ़ाई दिन पड़ गया। इस मस्जिद में 7 मेहराब हैं जिनपर कुरान की आयतें लिखी हुई हैं। यह मस्जिद मुस्लिम वास्तुकला का एक जीता जागता उदाहरण है।”


ऊपर की बात मैंने नहीं लिखी है, मुझे गूगल पर मिला है, जिसे किसी सच एक्सप्रेस ने लिखा है, सच माने सच.. सच एक्सप्रेस, अब इस बेतुके सच पर रोऊँ या हंसु? मालूम नहीं है, लेकिन जब बात सच की आई है तो आपको इससे जुड़ा सच अवश्य जानना चाहिए. वैसे आपमे से बहुत लोग इस इमारत का सच अच्छी तरह जानते होंगे, फिर भी जो नहीं जानते उन्हें जानना चाहिए.. और इसे खासतौर पर पढा जाना चाहिए..


साथियों इससे जुड़ा सबसे पहला सच तो तो ये है, कि इस इमारत का मुगल वंश या मुगलकाल से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं है और यह अपने वास्तविक रूप में अभी भी मस्जिद नहीं है.. इसका इतिहास मुहम्मद गोरी व उसके सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक से जुड़ा है.. जो सन 1192 के आसपास की बात है, जबकि मुगल काल इसके लगभग 300 से भी ज्यादा सालों बाद यानि 1526 ईसवी में अस्तित्व में आया.. खैर जैसा कि आपको बताया कि इस इमारत का इतिहास गोरी और कुतूबुद्दीन ऐबक से जुड़ा है..


तो यह वही कुतुबुद्दीन है, जिसने हिन्दू मन्दिर कुतुबमीनार का खतना कराया था और यही भी वही कुतुबुद्दीन है जिसने इस (अढाई दिन का झोपड़ा) इमारत के साथ यही प्रक्रिया दोहराया है.. दरअसल आज आप जिसे अढाई दिन का झोपड़ा मानते हैं, वो काफी पहले विशालकाय संस्कृत महाविद्यालय हुआ करता था, जहां संस्कृत में ही विषय पढ़ाए जाते थे. ये 1192 ईसवीं की बात है.


यह वही साल (1192-99) है, जब कथित तौर पर कुतुबमीनार की नींव पड़ने की बात कही जाती है.. लेकिन सभी जानते हैं कुतुब परिसर का निर्माण भी 27 मन्दिरों को तोड़ कर कराया गया था.. और मीनार में भी हेरफेर देखी जा सकती है.. इसी दौर में अफगान शासक मोहम्मद गोरी (Muhammad Ghori) ने देश पर हमला किया और घूमते हुए अजमेर से निकल रहा था. उसी के आदेश पर सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक (Qutb-ud-Din-Aibak) ने संस्कृत कॉलेज को हटाकर उसकी जगह मस्जिद बनवा दी. जिसका अवशेष यहां आज भी मिलता है.. मिसाल के तौर पर अब भी इसके मुख्य द्वार के बाईं तरफ संगमरमर का बना शिलालेख है, जिसपर संस्कृत महाविद्यालय का जिक्र है.


इतिहासकारों की मानें तो राजा Vigraharaja IV (सन 1150-1164) के दौरान बनाया गया ये महाविद्यालय वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण था. ये चौकोर था, जिसके हर किनारे पर डोम के आकार की छतरी बनी हुई थी. ब्रिटिश काल के दौरान Archaeological Survey of India के डायेक्टर जनरल Alexander Cunningham, जो कि पहले ब्रिटिश आर्मी में मुख्य इंजीनियर रह चुके थे, के मुताबिक मस्जिद में लगे मेहराब ध्वस्त किए गए मंदिरों से लिए गए होंगे. वहां ऐसे लगभग 700 मेहराब मिलते हैं, जिनपर हिंदू धर्म की झलक है.


ब्रिटिश काल के ओरिएंटल स्कॉलर James Tod ने साल 1891 में मस्जिद का दौरा किया था. इस मस्जिद का जिक्र उसकी किताब Annals and Antiquities of Rajastʼhan में है.

जेम्स के मुताबिक ये सबसे प्राचीन इमारत रही होगी. साल 1875 से लेकर अगले एक साल तक इसके आसपास पुरातात्विक जानकारी के लिए खुदाई चली. इस दौरान कई ऐसी चीजें मिलीं, जिसका संबंध संस्कृत और हिंदू धर्मशास्त्र से है. जिन्हें आज भी अजमेर के म्यूजियम में जाकर देखा जा सकता है..


अढ़ाई दिन का झोपड़ा नाम की भी लंबी कहानी है. ऐसा कहा जाता है कि जब मोहम्मद गोरी पृथ्वीराज चौहान को हराने के बाद अजमेर से गुजर रहा था. इसी दौरान उसे वास्तु के लिहाज से बेहद उम्दा हिंदू धर्मस्थल नजर आए.
गोरी ने अपने सेनापति कुदुबुद्दीन ऐबक को आदेश दिया कि इनमें से सबसे सुंदर स्थल पर मस्जिद बना दी जाए. गोरी ने इसके लिए 60 घंटों यानी ढाई दिन का वक्त दिया.


जिसपर हिंदू कामगारों ने 60 घंटों तक लगातार बिना रुके काम किया और मस्जिद तैयार कर दी. अब ढाई दिन में पूरी इमारत तोड़कर खड़ी करना आसान तो नहीं था.. इसलिए मस्जिद बनाने के काम में लगे कारीगरों ने उसमें बस थोड़े बहुत बदलाव कर दिए ताकि वहां नमाज पढ़ी जा सके..


तो कहने का अर्थ है कि बस इसी थोड़े बहुत बदलाव करने का पूरा श्रेय या कहें कि क्रेडिट मुगल स्थापत्य कला को दे दिया जाता है.. जबकि यह इमारत अभी हिन्दू इमारत ही है.. क्योंकि जब इसे आप बारीकी से देखेंगे तो पूरा का पूरा ढांचा हिन्दू इमारतों की तरह दिखता है, लेकिन क्या कहें, इन तमाम सच एक्सप्रेसों को, यह सच नहीं दिखता है!

दीपक पाण्डेय

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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