सरकार को अपने पिटारे के सारे ऐसे फैसलों की सूची तैयार करके एक बार में ही पूरे देश के सामने रख देना चाहिए।  ये जो विपक्षियों और विधर्मियों के मंसूबों को बार बार पलीता लगाना -आखिर बरनॉल की वृद्धि का कारण न बने तो क्या हो ?

अब सरकार ने १ जनवरी से लेकर ७ जनवरी तक सभी शिक्षण संस्थानों को निर्देश जारी किया की वे रोग प्रतिरोधक क्षमता तथा शारीरिक सक्रियता के लिए वैश्विक मान्यता व प्रसार वाली यौगिक क्रिया – सूर्यनमस्कार ,बच्चों और विद्यार्थियों के लिए विशेष रूप से संचालित किया जाए।

यूँ तो अब तक ऐसा कभी हुआ नहीं कि केंद्र सरकार , भाजपा , संघ और सनातन समाज ने देशित में कुछ भी करने कहने यहां तक की विमर्श के लिए कोई सुझाव/विचार व्यक्त भर किया हो।  56 मुल्क होने के बावजूद और इस देश के हर बड़े ओहदे/पद पर पूरे ठाटबाट से बैठते उतरते रहने के बावजूद भी “डरे हुए लोग ” आशंकित और आतंकित हो उठते हैं ।

इसलिए चाहे वंदे मातरम् कहने की बात हो या राष्ट्रध्वज को आदर/मान देने की , चाहे जनसंख्या नियंत्रण की बात हो या पाकिस्तान चीन जैसे धूर्त पड़ोसियों की गर्दन और घमंड तोड़ने की -इन्हें सबसे पहले , सबसे ज्यादा और सबसे देर तक बुरा लग जाता है।

वैसे गौरतलब बात ये है की पिछले दो सालों में पूरे देश-दुनिया ने पहले पुलिस वालों पर , डाक्टर , नर्सों पर फल और सब्जी पर और फिर रोटी दाल ,यानि खाने की प्लेटों में थूक-थोक की जो थूकम फजीहत देखी है उसके बाद सूर्यनमस्कार , वंदे मातरम् , तिरंगे , भारत , सेना , शासन , पुलिस , क़ानून और हिन्दू ईसाई ,बौद्ध यहूदी -सबसे यानि सभी से अगर दिक्कत है -विरोध है , तो इसपर हैरानी क्यों होनी चाहिए।

फ़तवेदार मौलवियों के तो दिन फिर आते हैं ऐसे में लगे हाथ फिर नसीरुद्दीन शाह और जावेद अख्तर सरीखे बौद्धिक मगर मज़हबी कट्टरता से बुरी तरह ग्रस्त लोग भी फट्ट से कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हो जाते हैं देश और समाज को कोसने और बदनाम करने के लिए।

 

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