देश में इस समय केंद्रीय कृषि विधेयक को लेकर गहमा-गहमी है। कई राजनीतिक दल, किसान संगठन और नेता केंद्रीय कृषि विधेयक के खिलाफ हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि वर्तमान मंडी व्यवस्था की खामियों ने इस विधेयक की नींव रखी है। जिन सिद्धांतों पर किसानों के लाभ के लिए मंडियों की स्थापना की गई थी, वे बदलते समय के साथ खत्म हो चुके हैं।
किसानों को उपज की गुणवत्ता का मूल्य मिलना अब बाजार के समीकरणों से बाहर की बात है। अक्सर किसानों के साथ ऐसा होता है कि एजेंट किसानों को झूठ बोलकर कह देते हैं कि इस फसल की मांग बाजार में कम हो गई है और अब वे इसे नहीं ले सकते। इस तरह के बहाने किसानों को एजेंटों को बोली मूल्य से कम कीमत पर उपज बेचने के लिए मजबूर करते हैं। जब मंडी में किसान मजबूरी में औने पौने दाम पर फसल एजेंटों को बेकते हैं तो एजेंट उसके दाम के लिए उन्हें टाल मटोल करते हैं और तब किसान धीरे-धीरे मंडी एजेंटों पर अधिक निर्भर हो जाते हैं।

इस बिल का बड़ा फायदा छोटे किसानों के लिए है। छोटे किसान, जो मंडियों तक पहुंचने में असमर्थ हैं, उन्हें भी अपनी उपज का अच्छा मूल्य मिलेगा, क्योंकि निजी बाजार उनके खलिहान तक पहुंच सकते हैं। कृषि क्षेत्र में ये सुधार निजी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए बढिया कदम माने जा रहे हैं।


निजी कंपनियों द्वारा उपज की खरीद की गारंटी से सबसे ज्यादा फायदा छोटे किसानों को होगा। कृषि क्षेत्र की संपूर्ण आपूर्ति श्रृंखला उनके लिए उत्पादन से लेकर निर्यात तक का काम आसान कर देगी। इसके लिए कृषि व्यवसाय को मुक्त कर दिया गया है। बाजार प्रावधानों से छूट से निर्यातकों, प्रोसेसर और अन्य बड़ी उपभोक्ता कंपनियों को राहत मिलेगी।

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