मोदी सरकार ने जब रातों रात नोटबंदी की थी तो जैसे हड़कंप सा मच गया था | नोटबंदी और बड़े नोटों के चलन को कम किए जाने सहित नकद लेन देन के बदले ऑन लाइन लेन देन से पारदर्शिता को सुनिश्चित करके तमाम तरह के भ्रष्टाचार , काले धन और घोटालों के रास्ते पर पत्थर पड़ गए जैसे |

आज इतने समय बाद देख कर पता चल जाता है कि , कोरोना जैसी वैश्विक महामारी ने जहाँ पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था की चूलें हिला दी हैं वहीँ इतने दिनों तक पूरे देश में व्यापक बंदी के बावजूद भारत अभी तक वैश्विक अर्थव्यवस्था में कहीं भी किसी भी तरह पीछे नहीं हुआ है |

मोदी सरकार की नीयत और ईरादे ,उसके द्वारा लाए जा रहे कानूनों और प्रस्तावित मसौदों से ही पता चल जाता है | अभी हाल ही में जब सरकार ने विदेशी फंड नियंत्रण कानून को आज के समय के अनुसार थोड़ा सा और कस दिया | और सच कहें तो बहुत ही मामूली और बुनियादी सुधार कर दिए |

विदेशों से समाज सेवा के नाम करोड़ों अरबों रूपए की बेनामी संपत्ति मंगवा कर उसका मनमाना उपयोग जहां अर्थव्यवस्था में सेंध लगा रहा था वहीँ सुरक्षा एजेंसियों को पता चला था कि इस पैसे का उपयोग देश विरोधी गतिविधियों आदि में भी किया जाता है जो बेहद खतरनाक बात थी | बस सरकार ने सबको अपना बही खाता पारदर्शी करने को कह दिया है |

अब सुनिए असली सच , इस कानून के महज़ प्रभाव में आने की बात ही सुन कर कर्नाटक ,केरल , छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में एक तरह जहां चावल की बोरी दे कर ईसाई बनाने वाले दुकानों की तरह काम कर रहे हज़ारों चर्च और मिश्नरियां रातों रात ही शटर गिरा कर निकल गईं | कभी विश्व में खुद को शान्ति और सभ्यता का जनक बताने वाले ईसाई धीरे धीरे जबरन सबको अपने रबर के तम्बू के नीचे खींच कर लाकर मसीहा बनाने पर आमादागुट सरीखे हो गए | पूरी दुनिया भर के चर्च में पादरियों के यौन अपराधों पर लिखने कहने के लिए तो अलग से एक पूरा घृणित साहित्य ही लिखना पड़ जाएगा |

मदरसों की स्थिति तो और भी ज्यादा खराब हो गई है | चाहे किसी भी क्षेत्र में अशांति की बात हो या फिर वो दिल्ली में कोरोना को फैलाने के लिए बहुत हद तक जिम्मेदार ठहराए गए जमाती , तलाश करने पर आसपास के मदरसों में ही छिपे मिलने से लोगों का इतने बरसों तक जताया जाने वाला शक अब यकीन में बदलता जा रहा है |

अपुष्ट ख़बरों के अनुसार इस पोस्ट के लिखे जाने तक सिर्फ दक्षिण भारत में ही कुल 1740 चर्च और 1194 मदरसों के रातों रात गायब हो जाने के समाचार हैं | बताइये भला , कितनी सारी फैक्ट्रियां चल रही थीं एक हिन्दुओं को ईसाई बनाने के लिए लिए दूसरी कसाई बनाने के लिए | हद है

भारत ने अपने धर्म कर्म वचन और व्यवहार से ,युगों युगों से ये लिख कर रखा हुआ है , ये सनातन भू संस्कृति है ,सदैव संतुष्ट और संत | आज तक इस धरती से जुड़कर हर किसी ने कुछ न कुछ पाया ही है | ये बात सत्य है की राजनैतिक प्रतिबद्धता के प्रति उदासीनता ने संघर्ष के समय को तो थोड़ा अधिक कर दिया है किन्तु अब जबकि सनातन समाज जाग्रत हो चुका है तो तो निश्चय ही वही होना चाहिए जो देश ,धरती और भारत के लिए कल्याणकारी है |

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