भारत का बुद्धिजीवी तबका माओ को आदर्श मानता है, आज जीवित होते तो उनके पैरों की धूल को वामी अपने शरीर पर भस्म की तरह पर मल कर घूमते फिरते, उनके आदर्शों से विश्वविद्यालय की किताबों को भर डाला गया है, बड़ी बड़ी गोष्ठियों का आयोजन किया जाता है जिनमे क्रांतिकारी विचारों को सराहा जाता है, अधिकतर ये विचार स्थापित सत्ता के विरुद्ध होते हैं, वामियों के अनुसार माओ से बड़े विचारक आजतक पैदा ही नही हुए, आइये ज़रा समझते हैं कैसे विचार थे उनके,

सन 1958 में माओ भाई साहब को सनक सवार हुई, की चीन को विश्व अर्थव्यवस्था में अमेरिका का बाप बना देना है, पर प्रश्न आया, कैसे? माओ भाई साहब ने कहा कि चीन की अर्थव्यवस्था को अब कृषि प्रधान से औद्योगिक विकास की ओर ले चलने का समय आ गया है, जनता उनके विचारों से गच्च (खुशी से पागल) हो गई, होती भी क्यों नही? विरोध को कुचलने के लिए माओ चच्चा प्रसिद्ध थे, खैर, उन्होंने एक अभियान चला दिया जिसके नाम था “The Great Leap Forward” जिसका अर्थ होता है “एक महान छलांग” उन्होंने उत्पादकता बढ़ाने के लिए नई कृषि नीति बना डाली, उन्होंने इस नीति के अनुसार “Four Pests Campaign” नाम का एक अभियान चला दिया, जिसके अनुसार गौरैया, चूहे, मक्खी और मच्छर को समाप्त किया जाना था, इसमे प्रमुख थी गौरैया, क्योंकि माओ चच्चा की मति अनुसार एक गौरैया साल भर में 4.5kg अनाज खा जाती थी, जिसकीं वजह से चीन के लोग भूखे रह जाते थे, कमाल की बात ये की माओ चीन की बढ़ती जनसंख्या को चीन की कमज़ोरी नही, बल्कि ताकत मानते थे, अब बारी थी “Great Sparrow” अभियान की, चीन की सेना से लेकर वहां की जनता तक को सुपर पावर बनने की सनक चढ़ गई, और वो सब इस अभियान में शामिल हो गए, बकायदे वालेंटियर बनाये गए और प्रचार प्रसार के बाद गाजे बाजे से इस अभियान को शुरू कर दिया गया। लोग थाली, बर्तन, ढोल, नगाड़े लेकर निकल पड़े और चिड़ियों को उड़ाना शुरू किया गया, उन्हें तबतक उड़ाया जाता था जबतक की वो थककर गिर नही जाती थी, गिरी हुई चिड़िया को बेरहमी से मार दिया जाता था, उनके घोंसले उजाड़ दिए गए, अंडे फोड़ दिए जाते थे और इस प्रकार पहले ही दिन 2.5 लाख गौरैया मार दी गईं, उनकी लाशों की माला बनाई जाने लगी, ये बर्बरता यहीं नही रुकी, अब निशाना सभी पक्षियों को बनाया जाने लगा क्योंकि सरकार के आदेश को माओ की सनकी जनता ने अपने तरीके से समझ लिया। 2 साल में चीन से लगभग गौरैया विलुप्त हो गईं, बाकी पक्षियों प्रजातियां भी विलुप्ति की कगार पर आ गईं।

मृत गौरैया की मालाएं

प्रकृति की खाद्य शृंखला का ये टूटना चीन के लिए भारी विनाश लेकर आ गया, क्योंकि सनकी माओ ने ये नही सोचा कि चिड़िया केवल अनाज नही, कीटों को भी खाती है, चिड़िया मर जाने से कीटों की संख्या भयानक रूप से बढ़ने लगी खास तौर पर टिड्डियाँ, ये तेज़ी से फसलों को चट करने लगी, एक ही रात में टिड्डियाँ कई हैक्टेयर खेतों की फसल चाट जाती थीं, नतीजा ये की पूरे चीन में अकाल और भुखमरी ने पैर पसार लिए, केवल 3 साल (1958 – 1961) में ही 3 करोड़ से ज्यादा लोग उस सनकी माओ के पागलपन के कारण मारे गए, कई जगहों पर तो भुखमरी का दौर इतना भयानक था कि चीनी लोग नरभक्षी हो गए और एक दूसरे को खाने लगे, कमाल की बात है कि आज भी चीन इसे प्राकृतिक घटना मानता है, इस घटना के विषय मे लिखी पुस्तकें आज भी प्रतिबंधित हैं।

चीन की सबसे बड़ी भुखमरी का दौर

क्यों? थे न माओ चच्चा महान? उनकी इसी महानता के कारण वामपंथी उन्हें अपना बाप बनाये बैठे हैं।

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