भारतीय विज्ञान आज एक कपोल कल्पना बन कर रह गया है। पाश्चात्य वैज्ञानिकों की दुंदुभी चतुर्दिक् गुंजायमान है और बौधायन का शुल्व सूत्र और नागार्जुन का माध्यमिक सूत्र पाइथागोरस और आइंस्टीन की सापेक्षताह सिद्धांत के आगे पानी भर रहा है। पाश्चात्य देशों के और उनसे प्रेरित इतिहासकार अंग्रेजी आक्रमण को भारतीय रेनासाँ मनवा कर मैकाले को दांते से तुलनीय बना रहे हैं पर कभी आपने सोचा है कि अग्निवाण और ब्रह्मास्त्र से लैस उस युग में कोई लादेन, हिटलर , मुसोलनी , सद्दाम , आइसिस और किम जोंग क्यों नहीं हुआ? क्यों ये अस्त्र उपलब्ध होकर भी अपराधियों के हाथ नहीं लगे?अब आगे….ये अस्त्र शस्त्र सामान्यतया शारीरिक रूप से निर्बल , कृशकाय वनवासी और वगैर किसकी राजकीय सुरक्षा के शिष्यों के साथ या एकाकी रह रहे ऋषियों के पास होता था । ये गुरु योग्य शिष्य को प्रसन्न होकर ये अस्त्र उन्हें मंत्र रूप में दिया करते थे। अपात्र के शिष्य बनने पर ज्ञान वापस लेने, शाप देने और शक्ति के निष्फल कर देने का प्रावधान भी था। कर्ण को मिले शाप, अस्त्र के अनुचित प्रयोग के कारण अश्वत्थामा को कष्ट पूर्ण अमरता का अभिशाप, अब्राह्मण राक्षसों के पास ब्रह्मास्त्र का न होना…. यह बताता है कि अस्त्र की भयावहता और उसके अनाधिकृत प्रसार को रोकने का भी उचित प्रबंध था इसलिए इतने भीषण आयुध भी कभी भी किसी को निरंकुश नहीं होने देते थे।दिव्यास्त्रों को जल बनाकर पी लेने वाले दधीचि और आवश्यकता पड़ने पर उनका अस्थि दान आज भी विश्व शांति के लिए ऋषियों की प्रतिबद्धता का प्रमाण है।

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